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बिहार : दबंगों ने मांझी और रविदास समुदाय से आने वाले कुल 34 परिवार के घर जला दिए, क्या है पूरा मामला

शोभा देवी चार महीने की गर्भवती हैं.

मैं जब उनसे मिली तो शाम के चार बज रहे थे. अपने बढ़े हुए पेट के आकार को दुपट्टे से छुपाए शोभा नवादा के डीएम आशुतोष कुमार वर्मा और एसपी अभिनव धीमान के भारी भरकम प्रशासनिक अमले से कुछ दूर खड़ी हैं.

वो बताती हैं, “सुबह थोड़ी फरी (लइया) मिली थी, वही खाकर आज का दिन कटा है. पूरा घर जल गया. आधार कार्ड, वोटर कार्ड, गेहूँ, चावल, सारा कपड़ा लत्ता जल गया. अब इन सब की चिंता करें कि पेट के बच्चे की?”

बिहार के नवादा की शोभा देवी उनमें से एक हैं, जिनका घर कथित तौर पर दबंगों ने जला दिया.

बीती 18 सितंबर की शाम को घटी इस घटना में दबंगों ने मांझी और रविदास समुदाय से आने वाले कुल 34 परिवार के घर जला दिए थे.

नवादा एसपी अभिनव धीमान ने बीबीसी को बताया, “ इस मामले में नंदू पासवान सहित 28 नामजद अभियुक्त हैं, जिनमें से 15 लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है. अभियुक्तों के पास से 3 देसी कट्टा, 6 बाइक, 3 कारतूस, 1 पिलेट बरामद हुई है. बाक़ी अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है. पीड़ित पक्ष और अभियुक्तों के बीच ज़मीनी विवाद चल रहा था.”

क्या है पूरा मामला

ये मामला बिहार के नवादा ज़िले के मुफ़स्सिल थाना क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाले देदौर गाँव का है. यहाँ नदी किनारे बसे दलित टोले के 34 घर को आग लगाकर कथित दबंगों ने जला दिया.

लक्ष्मनीया देवी का घर भी जल चुका है. अपने जले हुए घर (फूंस की झोपड़ी) के सामने वो खाट लगाए बैठी हैं. वो अपने रिश्तेदारों के यहाँ से आए पुराने कपड़ों की पॉलीथीन को अस्त होते सूरज की बची खुची रोशनी में देख रही है.

मुझको देखते ही लक्ष्मनीया आँख झुकाकर धीरे से कहती है कि उन्होंने कभी पुराने कपड़े नहीं पहने.

घटना के बारे में वो बताती हैं, “शाम के वक़्त नंदू पासवान, फेकन, नगीना, नागेश्वर पासवान (सभी अभियुक्त) अपने लोगों के साथ आया और सब घरों पर पेट्रोल डालकर लहकाने (जलाने) लगा. हम सब लोग अपना जीवन लेकर भागे यहाँ से. वापस आए तो मेरा आधार कार्ड, पासबुक, 15 हज़ार रुपए, कपड़ा लत्ता सब जल गया. पति को पैर में पैरालिसिस मारे हुए है. उसकी 10 हज़ार की दवा हम बोधगया से लाए थे. वो भी जल गई.”

विजय कुमार रविदास का घर भी जल गया है. जले हुए घर के बाहर रखे बर्तनों में जलने के चलते पीले पड़ चुके चावल, दाल और आटा रखा है. एक एल्यूमीनियम की छोटी तश्तरी में उन्होनें अपनी जली हुई एक मुर्गी प्रशासन के लिए सबूत के तौर पर रख छोड़ी है.

वो कहते है, “मेरी औरत तीनों बच्चों को खाना खिला रही थी. उसी बीच सड़क से 200 आदमी फ़ायरिंग करते हुए आए. मेरी औरत ने ये देखा तो डर गई और तीनों बच्चों को लेकर भाग गई. हम लोन का पैसा लौटाने के लिए घर में पैसा रखे हुए थे, वो सब जल गया.”

ज़मीन के विवाद का मामला

इस बस्ती में ज़्यादातर मांझी और रविदास जाति के लोग रहते हैं. तकरीबन 60 घर की इस बस्ती में ज़्यादातर घर फूंस की छोटी-छोटी झोपड़ियाँ हैं.

ये सभी लोग बेहद ग़रीब हैं, जिसकी पुष्टि घर के जले हुए अवशेषों को देखकर की जा सकती है. जला हुआ चूल्हा, आग की तपिश से टेढे हुए एल्यूमीनियम के बर्तन, जल चुकी बकरी, जली हुई खाट यहां आपको दिखेगी.

इस घटना में किसी व्यक्ति के ज़ख़्मी होने की सूचना नहीं है. घटना में कम से कम आठ पालतू जानवर जले है, जिनके जले शरीर से अभी भी धुआं निकल रहा है.

इस दलित बस्ती में रहने वालों का दावा है कि यहाँ ये लोग साल 1964 से रह रहे हैं. ये लोग बताते हैं कि ये ज़मीन सईदा खातून निशा उर्फ़ रज़िया बेगम की है, जो किसी नवाब साहब की बेटी है.

बस्ती के वीरेंद्र प्रसाद बताते है कि ये 15 एकड़ 59 डेसीमिल ज़मीन का विवाद है.

वो कहते हैं, “ रजिया बेगम ने ये ज़मीन किसी को नहीं दी थी तो ये जमीन अनाबाद बिहार सरकार है. 1964 में दलित लोगों ने इस ज़मीन पर क़ब्जा कर लिया. फिर हम लोगों ने ये ज़मीन अपनी मेहनत से जोती और वही खा रहे है.”

अनाबाद बिहार सरकार की ज़मीन का मतलब खासमहल, भूदान से मिली ज़मीन है.

इस ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर 90 के दशक में विवाद शुरू हुआ. जिसको लेकर टाइटल सूट का केस मुंसिफ़ कोर्ट नवादा में (केस नंबर 22/95) दायर है.

इस केस में याचिकाकर्ता वीरेन्द्र प्रसाद है.

वो बताते हैं, “मैंने रमजान मियां पर केस किया है. रमजान मियां अपनी ज़मीन के साथ-साथ बस्ती की भी ज़मीन बेचने लगा. तब मैंने ये केस किया. केस के बावजूद ज़मीन की ख़रीद बिक्री हुई. दबंगों ने ये ज़मीन लिखा ली. केस जब चल रहा था, तो ज़मीन की ख़रीद बिक्री नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन ख़रीद बिक्री भी हुई और म्यूटेशन भी हो गया. मैंने तो केस किया था रमजान मियां पर. उनकी मृत्यु कई साल पहले हो चुकी है.”

नवादा प्रशासन के रिकार्ड में इस ज़मीन की जमाबंदी (एक तरह से ज़मीन का रिकार्ड) रमजान मियां पिता चुल्हन मियां की है.

नवादा के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अखिलेश कुमार ये जानकारी देते हुए बताते है, “ये रैयती ज़मीन है और जमाबंदी रमजान मियां के नाम पर है. बाक़ी अभी केस चल रहा है. इसलिए कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती.”

साज़िश के आरोप

नवादा प्रशासन के रिकार्ड के मुताबिक़ रमजान मियां इस ज़मीन के मालिक है. लेकिन इस दलित टोले के लोग इसे अमाबाद बिहार सरकार की ज़मीन बताकर अपना दावा करते है.

इस बीच इस ज़मीन पर अपने मालिकाना हक़ का दावा कई लोग कर रहे है. इस मामले में नामजद अभियुक्त और उनके परिवार का भी विवादित ज़मीन के एक हिस्से पर दावा है.

नंदू पासवान प्राण बिगहा गाँव के रहने वाले हैं, जिसकी दूरी इस दलित बस्ती से तकरीबन दो किलोमीटर है.

नंदू पासवान के पक्के घर के बाहर छह महिलाएँ काग़ज़ लेकर बैठी हैं. महिलाओं के हाथों में दिख रहा काग़ज़ लगान रसीद है.

इन महिलाओं का दावा है कि ये लगान रसीद उसी ज़मीन की है, जहाँ पर ये दलित बसे हैं.

लगान रसीद पर खेसरा संख्या 2278/2470 अंकित है. बता दें कि दलित बस्ती के बाहर भी एक फटा पोस्टर ज़मीन पर पड़ा है, जिसमें यही खेसरा संख्या अंकित है.

नंदू पासवान के घर के चार सदस्यों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.

नंदू पासवान की बहु सरिता भारती कहती हैं, “हमारे दादा ससुर ने किसी मुस्लिम से ये ज़मीन ख़रीदी थी और हम लोग इस पर खेती भी किए थे. ये लोग हमारी ज़मीन पर जाकर बस गए. हमारा कहना है कि कोर्ट जैसा फ़ैसला सुनाएगा, हम वैसा करेंगे. लेकिन ये लोग साज़िश करके हमारे लोगों को फँसा दिए. अगर हम लोग कांड करते, तो घर में मर्द क्यों रहते. पुलिस दरवाज़ा तोड़कर हमारे घर के पुरूषों को पीटते हुए ले गई है.”

सरिता भारती के पास बैठी सुलैना देवी के मंझले बेटे को भी पुलिस ले गई है. वो कहती हैं, “हमारे सारे घर वाले निर्दोष हैं, लेकिन हम लोगों को साज़िश करके फँसाया गया है.”

नंदू पासवान के पिता का नाम सौखी पासवान है. इस परिवार का दावा है कि सौखी पासवान और उनके तीन भाइयों सहदेव, जगदीश और सुमेश्वर ने ये ज़मीन ख़रीदी थी.

इस मामले में दर्ज प्राथमिकी में नवादा के मुफ़स्सिल थाना क्षेत्र के लोहानी बिगहा गाँव और नालंदा ज़िले के रहुई थाना क्षेत्र के भी अभियुक्त हैं.

क्या विवाद पुराना है?
लोहानी बिगहा और रहुई से नामजद अभियुक्त यादव समाज और बेलदार जाति से आते हैं. बेलदार बिहार में अति पिछड़ा कैटेगरी में आते हैं.

ऐसे में क्या इस घटना में जाति का भी कोई एंगल है? एसपी अभिनव धीमान कहते है, “अभी जाति एंगल के बारे में कोई पुष्टि नहीं करूंगा. अभी इस मामले को हम ज़मीनी विवाद के तौर पर देख रहे है.”

हालाँकि ये देखा जाना भी ज़रूरी है कि ज़मीनी विवाद ने इतना हिंसक रूप कैसे अख़्तियार कर लिया?

दलित बस्ती में रहने वालों का दावा है कि पहले भी यहाँ गोली चलती रही है.

चंदा देवी जिनका घर जला है वो बताती हैं, “हम लोगों की तीन पीढ़ी यहाँ पर रही है. ये लोग यहाँ आकर पहले भी गोली चलाएं और गाली दिए है लेकिन पुलिस कुछ नहीं की.”

लक्ष्मनीया देवी भी कहती हैं, “ बीते साल भी यहाँ गोली छूटा तो प्रशासन ने रुपया खाकर कोई कार्रवाई नहीं की. यहाँ के बच्चों ने प्रशासन को खोखा ढूँढकर भी दिया था, लेकिन प्रशासन ने उसको दबा दिया. उनका काम दबाने का नहीं, बल्कि न्याय देने का था.”

ये सवाल पूछे जाने पर नवादा डीएम और एसपी इससे इनकार करते हैं.

नवादा एसपी अभिनव धीमान कहते हैं, “व्यवहार न्यायालय नवादा में संबंधित ज़मीन को लेकर टाइटल सूट चल रहा है, लेकिन पहले किसी भी तरह की हिंसा या कोई ट्रिगरिंग मोमेंट रिपोर्ट नहीं हुआ है थाने में.”

डीएम आशुतोष कुमार वर्मा भी कहते हैं, “इन लोगों के बीच में गुटीय तनाव है या कुछ है, ऐसी जानकारी हमें किसी स्रोत से नहीं थी. अचानक इतनी बड़ी घटना कैसे घट गई, ये हमारे लिए विश्लेषण का विषय है.”

सरकार से कितनी मदद मिली?
इस घटना के बाद घटना स्थल पर नवादा का पूरा प्रशासनिक अमला 19 सितंबर को कैंप किए हुए था. लेकिन राहत के इंतजाम नाकाफ़ी दिखते है. लोगों के लिए खान पान की व्यवस्था से लेकर रात में उनके सोने की व्यवस्था बीती शाम 6 बजे तक भी नहीं हो पाई थी.

डीएम आशुतोष कुमार वर्मा बीबीसी से बताते हैं, “34 परिवारों के घर जले हैं. पीड़ित परिवारों के लिए पैक्स भवन में ठहरने की व्यवस्था की गई है और यहाँ पर भी टेंट लगाया जाना है. लेकिन यहाँ जुट रही भीड़ के चलते नहीं हो पा रहा है. बाक़ी लोगों को सरकारी प्रावधानों के मुताबिक़ मुआवज़ा किश्तों में मिलेगा.”

लेकिन घटना के 24 घंटे बीत जाने के बाद भी लोगों को खाने में फरी, बिस्कुट, पॉव जैसी चीज़ें ही मिली थी. किसी तरह का सामुदायिक किचेन घटनास्थल पर नहीं दिखता. कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग पीड़ित परिवारों को आटा आलू चावल आदि दे रहे है लेकिन पीड़ितों की दिक़्क़त ये है कि वो आख़िर इसे किस चीज़ में पकाएं?

जैसा कि चंदा देवी कहती भी हैं, “अभी चावल आलू आटा मिला है लेकिन बर्तन तो सब जल गया. उसे पकाएँगे किसमें?”

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
इस घटना को लेकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति तेज़ हो गई.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस घटना की निंदा की तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे “एनडीए की डबल इंजन सरकार में जंगलराज का एक और प्रमाण” करार दिया है.

बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एनडीए का राज ‘दलित पिछड़ा विरोधी राज’ कहते हुए एनडीए को समर्थन दे रहे केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी और उनके बेटे को आरएसएस के स्कूल का विद्यार्थी बताया है. वहीं जीतन राम मांझी ने यादव समाज को आड़े हाथों लिया है.

उन्होंने अपने बयान में कहा, “यादव लोग एकाध दुसाध (पासवान) जाति के लोगों को मिलाकर घटना को अंजाम दिए है.” लोजपा (आर) प्रमुख चिराग पासवान ने नीतीश कुमार से मामले की न्यायिक जांच की मांग करते हुए दोषियों को कठोर सज़ा देने की मांग की है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते रहे है कि राज्य में होने वाले 60 फ़ीसदी अपराध की वजह भूमि विवाद है.

राज्य सरकार भूमि विवादों को सुलझाने के उद्देश्य से ज़मीन का सर्वे व्यापक स्तर पर करवा रही है.

वीरेंद्र प्रसाद इस विवादित ज़मीन के केस को लड़ रहे हैं, वो कहते हैं कि ज़मीन के सर्वे और प्रशासन की मिलीभगत के चलते ये घटना घटी है.

हालांकि अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अखिलेश कुमार इससे इनकार करते हुए कहते हैं, “ सर्वे का कोई प्रभाव नहीं है.”

नीतीश सरकार ने साल 2007 में दलितों में वर्गीकरण करके महादलित कैटेगरी बनाई थी. इसमें पहले पहल राज्य की 22 दलित जातियों में से 18 वंचित दलित जातियों को महादलित की कैटेगरी में रखा गया था.

बाद में साल 2008 में धोबी और पासी जाति को, साल 2009 में रविदास जाति समूह को और साल 2018 में जब लोजपा सुप्रीमो रामविसाल पासवान और नीतीश कुमार साथ आए तो पासवान जाति को भी महादलित कैटेगरी में शामिल कर दिया.

वैसे हाल के दिनों में एनडीए के दो प्रमुख घटक दलों यानी हम और लोजपा (आर) में महादलित कैटेगरी को मिलने वाले लाभ को लेकर वाद विवाद की स्थिति बनी है.

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सीटू तिवारी
पदनाम,बीबीसी संवाददाता, नवादा