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#बिमलरॉय…’दैया रे दैया रे चढ़ गयो पापी बिछुआ’…

Pratibha Naithani
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बिमल रॉय
‘दैया रे दैया रे चढ़ गयो पापी बिछुआ’ गीत हम सबने कभी ना कभी सुना ही होगा। फिल्म मधुमति का यह कर्णप्रिय गीत आज़ भी उतना ही ताज़ा लगता है, जितना रिलीज के वक्त लगभग आधी सदी पहले। इस फिल्म की शूटिंग रानीखेत (उत्तराखंड) के मझखाली गांव में हुई थी। फिल्म के निर्देशक बिमल रॉय इस अनजान जगह शूटिंग कर रहे थे कि एक संगीत आयोजन के सिलसिले में लैंसडाउन जाते हुए रंगकर्मी मोहन उप्रेती की टीम से उनका सामना हो गया । मोहन उप्रेती और उनकी पत्नी नईमा ख़ान से उन्होंने सुना ‘ओ दरी हिमाला दरी पा छुमा छूम दरी’, और यहीं पर जन्म हो गया लाजवाब ‘पापी बिछुआ का’। इस गीत के फिल्मांकन में कलाकारों की वेशभूषा और समूह नृत्य में भी कुमांऊनी लोक- संस्कृति की झलक है।


लोककथा और गीतों को सहेजने का काम कर रहे मोहन उप्रेती तब थिएटर और लोक संगीत में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत थे, अतः फिल्म में यह गीत बिमल रॉय की फिल्मों के संगीत का पर्याय बन चुके सलिल चौधरी के नाम पर दर्ज़ हुआ। इसी फिल्म का एक और गीत ‘आजा रे परदेसी’ है, जिसके अंत में नायक- नायिका दिलीप कुमार और वैजयंती माला का एक- दूसरे को देखकर दिल खिल जाने के प्रतीक रूप में जो पीला फूल दिखाया गया है, वह ‘फ्योंली’ है, एक पहाड़ी फूल जिस पर कई कहानियां और लोकगीत प्रचलित हैं। इसमें यूं तो कोई ख़ुशबू नहीं होती, मगर मधुमति के बहाने बड़े पर्दे पर दिख जाने से यह पहाड़ी दर्शकों की याद में आज़ भी गुलाब सा महकता है। रुपहले पर्दे से उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों की जान-पहचान की इसे पहली शुरुआत भी कहा जा सकता है।

सूखी ज़मीन पर बारिश की बूंदों का उल्लास जगाता ‘हरियाला सावन ढोल बजाता आया’ , ‘आ जा री आ निंदिया तू आ’ लोरी , बिदेशिया के दर्द को बयान करता मन्ना डे के स्वर में ‘मौसम बीता जाए’ जैसे गीतों से सजी बलराज साहनी के जीवंत अभिनय की मिसाल है, निर्देशक बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जम़ीन’।
इसके अलावा देवदास,परिणीता,मधुमति,परख,नर्तकी,अपराधी कौन,नौकरी,परिवार,मुक्ति ,बिराज बहू, बंदिनी, सुजाता जैसी उनकी कुछ सामाजिक संदेशपरक लोकप्रिय फिल्में हैं ,जो कहती हैं कि बिमल रॉय की अभिव्यक्ति के नज़रिए में विविधता और बारीकी ने हिंदी सिनेमा में मील के पत्थर गाड़ दिए।


ढाका, बांग्लादेश में जन्मे इस महान भारतीय फिल्म निर्देशक को गुज़रे जमाना बीत गया है , मगर उनकी फिल्मों का मौसम आज़ भी हरा-भरा है। 8 जनवरी, पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।