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बाबरी मस्जिद ढाने में अहम् क़िरदार निभाने वाली कट्टरपंथी साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण मिला : रिपोर्ट

भारत सरकार ने गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले पद्म पुरस्कारों का एलान किया था.

पद्म पुरस्कार 2025 की इस सूची में 7 पद्म विभूषण, 19 पद्म भूषण और 113 पद्म श्री पुरस्कार शामिल हैं.

पुरस्कार पाने वालों में एक नाम साध्वी ऋतंभरा का भी है. उन्हें सामाजिक कार्य के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

उन्हें सम्मान मिलने के बाद सोशल मीडिया पर इसे लेकर एक बहस शुरू हो गई है.

एक तरफ सरकार पर पद्म पुरस्कारों का राजनीतिकरण करने का आरोप लग रहा है. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस फ़ैसले का स्वागत भी कर रहे हैं. .

इस बीच साध्वी ऋतंभरा ने पद्म भूषण दिए जाने पर कहा है, “मुझे सबसे बड़ा पुरस्कार तभी मिल गया था जब 22 जनवरी को रामलला राम मंदिर में विराजे थे.”

किसने क्या कहा?

केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने कहा, “साध्वी ऋतंभरा जी को पद्म भूषण पुरस्कार घोषित होना हर्ष की बात है. राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़कर उन्होंने इस आंदोलन के माध्यम से देश में जागृति का कार्य किया.”

वहीं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने साध्वी ऋतंभरा को पद्म पुरस्कार दिए जाने पर सवाल उठाए हैं.

उन्होंने एक्स पर लिखा, “मोदी सरकार के कार्यकाल में पद्म पुरस्कार राजनीतिक तमाशा बन गए हैं.”

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दयाशंकर मिश्रा, “बीजेपी प्रचारक साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण संविधान के प्रति सरकार की सोच-समझ का स्पष्ट उदाहरण है.”

वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लिखा, “साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण दिया गया है. उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस में सक्रिय रूप से भाग लिया था और सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक ‘आपराधिक कृत्य’ बताया है. इस घटना से पहले उन्होंने नफ़रत से भरे भाषण दिए थे.”

लेखक उदय महूरकर ने एक्स पर कहा, “साध्वी ऋतंभरा जी को पद्म भूषण से सम्मानित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की सराहना करता हूँ.”

“उन्होंने सामाजिक सेवा सहित अपने कई कार्यों के ज़रिए विभाजनकारी ताकतों के ख़िलाफ़ राष्ट्र की सांस्कृतिक और धार्मिक चेतना को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.”

देश की मशहूर लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने एक्स पर लिखा, “हम सबकी दीदी साध्वी ऋतंभरा जी को पद्म भूषण पुरस्कार घोषित होना सभी के लिए अत्यंत हर्ष की बात है. राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़कर उन्होंने जिस तरह देश में जागृति का कार्य किया और एक सच्चे संत की भांति लोक कल्याण के लिए जीवन समर्पित कर दिया.”

मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, “नफ़रत फैलाने वाली, दुर्गा वाहिनी की संस्थापक, शीर्ष नेताओं को राखी बांधने वाली, बाबरी मस्जिद विध्वंस में भागीदार, साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. भारतीय गणतंत्र पर कब्ज़ा लगभग पूरा हो गया. क्या विपक्ष देख रहा है?”

पत्रकार विजैता सिंह ने लिखा, “साध्वी ऋतंभरा को “सामाजिक कार्य” श्रेणी में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है. उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस में भाग लिया था और उन पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने एक आपराधिक मामले में आरोप भी लगाया था.”

भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा अपराधों पर रिपोर्ट करने वाले स्वतंत्र पत्रकार अशरफ हुसैन ने एक्स पर लिखा, “ये साध्वी ऋतंभरा हैं. बाबरी मस्जिद के खिलाफ आडवाणी द्वारा निकाली गई रथ यात्रा में इन्होंने खूब ‘हेट स्पीच’ दी थी. अब मोदी सरकार ने साध्वी ऋतंभरा को ‘समाज सेवा’ के लिए पद्म पुरस्कार देने की घोषणा की है.

साध्वी ऋतंभरा

कौन हैं साध्वी ऋतंभरा

ऋतंभरा पंजाब के ग़रीब मंडी दौराहा गांव के एक परिवार में पैदा हुई जिन्हें निचली जाति का समझा जाता है.

मनोविश्लेषक सुधीर कक्कड़ अपनी किताब ‘द कलर्स ऑफ़ वायलेंस’ में बताते हैं, “16 साल की उम्र में ऋतंभरा को हिंदू पुनरुत्थान के लिए काम कर रहे कई ‘संतों’ में से प्रमुख स्वामी परमानंद के प्रवचन सुनकर एक आत्मिक अनुभव हुआ.”

इसके बाद ही वो हरिद्वार के उनके आश्रम चली गईं और वहीं पर भाषण देने की कला विकसित की.

वो इतनी पारंगत हो गईं कि विश्व हिंदू परिषद ने उन्हें राम मंदिर आंदोलन के दौरान अपना प्रवक्ता बनाया.

सितंबर 1990 में गुजरात के सोमनाथ से राम मंदिर के लिए रथ यात्रा शुरू हुई. इसे एक महीने में 10,000 किलोमीटर का रास्ता तय कर अयोध्या पहुंचना था.

बीजेपी के अपने अनुमान के मुताबिक दस करोड़ से ज़्यादा लोगों ने रथ यात्रा के अलग-अलग हिस्सों में भाग लिया. इसी दौरान ऋतंभरा ने अपने नाम के साथ ‘साध्वी’ जोड़ लिया.

वृंदावन में साध्वी ऋतंभरा का वात्सल्यग्राम नाम का आश्रम है.

राम जन्मभूमि आंदोलन का प्रमुख चेहरा

1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन में हिंदू औरतों ने बढ़ के हिस्सा लिया. इस आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा साध्वी ऋतंभरा भी थीं.

आंदोलन के भड़काऊ संदेश को उकेरते उनके भाषणों के ऑडियो टेप बनाकर एक-एक रुपए में बेचे जाते थे और बीजेपी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं के घरों में बांटे जाते थे.

इनकी लोकप्रियता हिंदुओं में इतनी थी कि इतिहासकार तनिका सरकार अपनी किताब ‘हिंदू वाइफ़, हिंदू नेशन’ में लिखती हैं, “अयोध्या के पंडितों ने मंदिरों में अपने रोज़ाना तय पूजा-पाठ को स्थगित कर इनके ऑडियो कैसेट के भाषणों को बजाना शुरू कर दिया.”

बाबरी मस्जिद विध्वंस से एक साल पहले, 1991 में दिल्ली में लाखों लोगों की रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण को विश्व की कोई ताकत नहीं रोक सकती.”

छह दिसंबर 1992 को जब कारसेवक बाबरी मस्जिद पर चढ़ गए थे, तब साध्वी ऋतंभरा, बीजेपी के शीर्ष नेताओं और कई साधु-संतों के साथ मंच पर थीं.

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने अपनी किताब “युद्ध में अयोध्या” में उस दिन की आंखों देखी लिखी है.

उनके मुताबिक साध्वी ऋतंभरा कारसेवकों को संबोधित करते हुए कह रही थीं कि वो इस शुभ और पवित्र काम में पूरी तरह लगें.

उन पर विध्वंस के आपराधिक षड्यंत्र रचने और दंगा भड़काने का मुकदमा भी चला.

30 सितंबर 2020 को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था.

ऋतंभरा के भाषणों में हिंदू धर्म पर मुसलमानों के आक्रमण और मुस्लिम समुदाय के प्रति घृणा साफ झलकती है.

पद्म पुरस्कार किसे दिया जाता है?

पद्म पुरस्कार की शुरुआत साल 1954 में हुई थी. साल 1978, 1979 और 1993 से 1997 को छोड़कर ये पुरस्कार हर साल गणतंत्र दिवस पर घोषित किए जाते हैं.

ये पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिए जाते हैं. असाधारण एवं विशिष्ट सेवा के लिए पद्म विभूषण दिया जाता है.

उच्च कोटि की विशिष्ट सेवा के लिए पद्म भूषण और विशिष्ट सेवा के लिए पद्मश्री पुरस्कार मिलता है.

भारत सरकार के मुताबिक इन पुरस्कारों को दिए जाने का मकसद किसी खास काम को मान्यता प्रदान करना है. ये पुरस्कार कला, साहित्य, शिक्षा, खेल-कूद, चिकित्सा, समाज सेवा, विज्ञान, सिविल सेवा, व्यापार समेत कई क्षेत्रों में विशिष्ट काम करने के लिए दिया जाता है.

सरकार के मुताबिक चयनित किए जाने वाले व्यक्ति की उपलब्धियों में लोक सेवा का तत्व होना चाहिए.

पद्म पुरस्कार समिति का गठन हर साल प्रधानमंत्री करते हैं. पद्म पुरस्कार समिति जिन लोगो को पुरस्कार देने की सिफारिश करती है उन्हें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के सामने रखा जाता है.

नाम का एलान होने के दो से तीन महीने के अंदर राष्ट्रपति भवन में पुरस्कार समारोह आयोजित किया जाता है.

पुरस्कार में राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और मुहर से जारी किया गया एक प्रमाण पत्र और एक मेडल शामिल होता है.

हर पुरस्कार विजेता के संबंध में संक्षिप्त ब्यौरे वाली एक स्मारिका भी समारोह के दिन जारी की जाती है.

पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति को मेडल का एक रेप्लिका भी दिया जाता है, जिसे वे अपनी इच्छानुसार किसी भी कार्यक्रम में पहन सकते हैं.

भारत सरकार के मुताबिक पद्म पुरस्कार कोई पदवी नहीं हैं और इसे निमंत्रण पत्रों, पोस्टरों, किताबों पर पुरस्कार विजेता के नाम के आगे या पीछे नहीं लिखा जा सकता है.

पुरस्कार विजेताओं को कोई नकद भत्ता और रेल या हवाई यात्रा में रियायत नहीं मिलती है.

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पद्म पुरस्कार की श्रेणियां

साल 1954 में दो पुरस्कार का गठन किया गया था, भारत रत्न और पद्म विभूषण। बाद में, पद्म विभूषण को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया:
पद्म विभूषण: असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है।
पद्म भूषण: उच्च कोटि की विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है।
पद्म श्री: किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है।

 

139 पद्म पुरस्कारों की घोषणा: शारदा सिन्हा समेत सात को पद्म विभूषण
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को पद्म पुरस्कारों का एलान कर दिया गया है। इसके तहत पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री से सम्मानित किए जाने वाली हस्तियों के नामों का एलान किया गया। इस बार राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति ने 139 पद्म पुरस्कारों को मंजूरी दी है।

साल 2025 के पद्म पुरस्कारों की घोषणा
विनोद धाम, जो एक आविष्कारक और उद्यमी हैं, को पद्म भूषण पुरस्कार दिया गया है, जबकि चेतन चितनीस और आशुतोष शर्मा को पद्म श्री मिलेगा। वहीं प्रमुख तकनीकी विशेषज्ञ और यूनिवर्सल सर्विस बस (यूएसबी) और एक्सेलेरेटेड ग्राफिक्स पोर्ट (एजीपी) के निर्माता अजय वी भट्ट को भी पद्म श्री पुरस्कार मिलेगा। भौतिक विज्ञानी एमडी श्रीनिवास, कृषि वैज्ञानिक सुरिंदर कुमार वासल और अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान के निदेशक सेठुरामन पंचानाथन भी पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त करेंगे। इंजीनियर से प्रशासक बने पवन कुमार गोयनका, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रचार और स्वीकृति केंद्र के अध्यक्ष और महिंद्रा एंड महिंद्रा के पूर्व प्रबंध निदेशक को भी पद्म श्री मिलेगा।

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डॉ. बिबेक देबरॉय को मरणोपरांत पद्म भूषण पुरस्कार

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. बिबेक देबरॉय को मरणोपरांत पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। एक नवंबर 2024 को उनका निधन हुआ था। वह 2017 से प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे। बिबेक देबरॉय ने देश के नीति निर्माण में अहम भूमिका निभाई है। वह वित्त मंत्रालय की ‘अमृत काल के लिए बुनियादी वर्गीकरण और वित्तपोषण ढांचे की विशेषज्ञ समिति’ के अध्यक्ष भी थे। उन्होंने खेल, आर्थिक, सामाजिक असमानताएं, गरीबी, कानून सुधार और रेलवे सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अर्थशास्त्र के साथ ही वे इतिहास, संस्कृति, राजनीति और अध्यात्म के भी ज्ञाता थे। देबरॉय को उनके कार्यों और विचारों के लिए याद किया जाता है। 2015 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 2016 में उन्हें यूएस-इंडिया बिजनेस समिट की तरफ से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड और 2022 में उन्हें ऑस्ट्रेलिया इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स (एआईसीसी) की तरफ से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था।

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ओसामु सुजुकी को मरणोपरांत पद्म विभूषण
जापान के दिवंगत उद्योगपति ओसामु सुजुकी, जो सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के पूर्व प्रमुख थे, को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म विभूषण से मरणोपरांत सम्मानित किया गया है। ओसामु सुजुकी, जिन्होंने भारत में एक सफल ऑटोमोबाइल कंपनी बनाने में विश्वास किया, जबकि उस समय कोई भी ऐसा मानने के लिए तैयार नहीं था, को ‘व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में विशिष्ट और असाधारण सेवा’ के लिए पद्म विभूषण दिया गया है। उनका पिछले साल 94 वर्ष की आयु में निधन हो गए थे।

1981 में, ओसामु सुजुकी ने उस समय भारतीय सरकार के साथ साझेदारी करने का जोखिम उठाया और मारुति उद्योग लिमिटेड का गठन किया, जब भारत अभी भी लाइसेंस शासन के तहत बंद अर्थव्यवस्था था। उन्हें देश में ऑटोमोबाइल उद्योग को प्रोत्साहित करने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। मारुति उद्योग लिमिटेड बाद में मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड बन गई, जब सरकार ने 2007 में अपनी हिस्सेदारी समाप्त की और सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन ने बहुमत हिस्सेदारी रखी। ओसामू सुजुकी मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के निदेशक और मानद अध्यक्ष थे।

भारत को अपना दूसरा घर मानते थे ओसामु सुजुकी
ओसामु सुजुकी को भारत को अपने दूसरे घर के रूप में मानते थे, और उनकी दूरदृष्टि और नेतृत्व मारुति उद्योग लिमिटेड के निर्माण में महत्वपूर्ण थे। उन्होंने कहा था कि भारत को पहियों पर लाने का सपना पूरा करने में उन्होंने ‘कई भारतीय परिवारों को सस्ते, विश्वसनीय, कुशल और अच्छे गुणवत्ता वाले वाहन प्रदान करने’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ओसामु सुजुकी ने भारत के कई प्रधानमंत्रियों का विश्वास और समर्थन भी प्राप्त किया, जिनमें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं, जिनसे उनकी गहरी समझ थी।

ओसामु सुजुकी का जीवन परिचय
ओसामु सुजुकी का जन्म 30 जनवरी, 1930 को हुआ था। उन्होंने चुओ विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक किया और अप्रैल 1958 में सुजुकी मोटर कंपनी में शामिल हुए। नवंबर 1963 में उन्हें निदेशक नियुक्त किया गया और दिसंबर 1967 में निदेशक और प्रबंध निदेशक बने। वह जून 2000 में सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष बने। जून 2021 में उन्हें वरिष्ठ सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया, जबकि उनके बड़े बेटे तोशिहिरो सुजुकी ने कंपनी की कमान संभाली।

व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में इन्हें पद्म पुरस्कार
इस साल के व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में अन्य पद्म पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं में नल्ली साड़ी के कपड़ा व्यापारी नल्ली कुप्पुस्वामी चेत्ति (पद्म भूषण), जाइडस लाइफसाइंसेस के अध्यक्ष पंकज पटेल (पद्म भूषण), भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रचार और स्वीकृति केंद्र (आईएन-स्पेस) के अध्यक्ष पवन गोयनका (पद्म श्री), सेंटुरी प्लाईबोर्ड्स के अध्यक्ष सज्जन भजनका (पद्म श्री) और रेहवा सोसाइटी की सह-संस्थापक सैली होलकर (पद्म श्री) शामिल हैं।

 

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