Related Articles
तभी उनकी निगाह बराबर में बैंच पर बैठी महिला की ओर गई और….
Ravindra Kant Tyagi ===================== ————— बिछोह ——— लन्दन के सेंट्रल पार्क का मौसम ऐसा ही था जैसा अकसर होता है. धुंध के गोले से हर तरफ तैर रहे थे. कंपकंपा देने वाली ठण्ड ने चारों तरफ एक सन्नाटा सा पसरा रखा था. फिर भी इक्का दुक्का लोग गर्म कपडे कसकर लपेटे हुए टहल रहे थे. […]
साहिर लुधियानवी…..कभी-कभी
Farooque Rasheed Farooquee ============ . साहिर लुधियानवी कभी-कभी कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाॅंव में गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी अजब ना था कि मैं बेगाना-ए-अलम होकर […]
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे….”गोपालदास नीरज”
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे नींद भी खुली न थी कि हाए धूप ढल गई पाँव जब तलक उठे कि ज़िंदगी फिसल गई पात-पात झड़ गए कि शाख़-शाख़ जल गई चाह तो […]