इतिहास

बाइबिल की कथाओं का ऐतिहासिक साक्ष्यों से मिलान : क्या आपको इन घटनाओं की सही तारीख या सही वर्ष याद है?

बाइबिल की कथाओं का ऐतिहासिक साक्ष्यों से मिलान करना एक मुश्किल काम है. नए शोध से पता चलता है कि भूचुंबकीय यानी जियोमैग्नेटिक आंकड़े बाइबिल के सैन्य अभियानों की तारीखों को बताने में मदद कर सकते हैं.

यादें अस्थाई होती हैं. हो सकता है कि आपको अपनी वह यात्रा याद हो जब परिवार के साथ आप किसी समुद्र के किनारे गये हों या फिर बचपन में जब आपने तैरना सीखा हो. क्या आपको इन घटनाओं की सही तारीख या सही वर्ष याद है? अगर आपने ये सब बातें कहीं लिखी नहीं हैं तो इनका सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं, वास्तविक तारीख याद कर पाना संभव नहीं है.

बिल्कुल यही दिक्कत सांस्कृतिक स्मृतियों और इतिहास के संबंध में आती हैं. और आप जितना पीछे जाते हैं, यह जानना उतना ही मुश्किल होने लगता है कि कोई घटना वास्तव में कब हुई थी.

1200-500 ईसा पूर्व में लौह युग लेवंट अस्पष्ट कालक्रम की ऐतिहासिक अवधि का एक अहम उदाहरण है. यह वही समय था जब निकट पूर्व, उत्तर अफ्रीका और यूरोप में कई संस्कृतियों ने जन्म लिया जो मूल रूप से हिब्रू बाइबिल की कहानियों के माध्यम से सामने आईं.

पवित्र ग्रंथों में उल्लिखित घटनाओं का वास्तविक इतिहास से मिलान करना शोधकर्ताओं के बीच एक विवादास्पद मुद्दा रहा है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में यरुशलम के तेल अवीव विश्वविद्यालय और हिब्रू विश्वविद्यालय में पुरातत्वविद योआव वाकनिन कहते हैं, “इसे लौह युग कालक्रम बहस कहा जाता है. बाइबिल में उल्लिखित घटनाओं के कालक्रम के बारे में यह बड़ा तर्क है.”

वाकनिन का अपने सहयोगियों के साथ हाल ही में एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ है. इस शोध में उन लोगों ने ‘जियोमैग्नेटिक डेटिंग’ नाम के एक नये तरीके का प्रयोग किया है जिसके तहत आयरन एज लेवंट के दौरान हुई प्रमुख घटनाओं को जोड़कर देखा जाता है.

इतिहास को एक साथ कैसे जोड़ा जाता है
कोई ऐतिहासिक घटना कब और कहां हुई, यह जानने के लिए इतिहासकार और पुरातत्वविद प्रमुख रूप से सूचनाओं के दो स्रोत का इस्तेमाल करते हैं.

बर्लिन स्थित पेर्गेमॉन म्यूजियम में क्यूरेटर हेलेन ग्रीज कहती हैं, “हम लोगों को हिब्रू बाइबिल के अलावा असीरियन और मिस्र के ग्रंथों के माध्यम से प्राचीन लेवंट युग के कालक्रम के बारे में काफी कुछ पता है.”

हालांकि जिन लिखित स्रोतों से इनके बारे में जानकारी मिली है वो उन घटनाओं के हजारों या सैकड़ों वर्ष बाद लिखे गये हैं जब ये घटनाई घटी होंगी. इस वजह से इनकी प्रामाणिकता को सत्यापित करना बड़ा मुश्किल हो जाता है.

उदाहरण के लिए कुछ ग्रंथ, जैसे मिस्र में कर्नाक मंदिर स्थित ट्राइंफल रिलीफ जिसमें फराओ शोशेंक प्रथम द्वारा 900 ईसापूर्व में यहूदी भूमि की विजय गाथा को दर्शाया गया है, एक अहंकारी राजा के अहंकारी दावों से थोड़ा ज्यादा हो सकता है.

शोधकर्ता पुरातात्विक स्थलों से मिले मिट्टी के बर्तनों के अवशेषों से भी घटनाओं की तिथियों का आकलन कर सकते हैं. इन बर्तनों के अवशेषों और अन्य पुरावशेषों की कई पर्तें होती हैं और जितना इनकी गहराई में जाएंगे, उतने ही पुराने इतिहास की जानकारी मिलेगी.

डीडब्ल्यू से बातचीत में ग्रीज कहती हैं, “लेकिन दिक्कत यह है कि यह सापेक्षिक कालक्रम होता है. इससे हम यह तो जान सकते हैं कि कौन सी घटना पहले की है और कौन सी बाद की लेकिन इससे घटना की वास्तविक तिथि का पता नहीं चलता कि यह घटना कब हुई.”


चुंबकत्व और आग के सहारे तिथियों की जानकारी
वाकनिन और उनके साथियों का शोध पिछले हफ्ते पीएनएएस में प्रकाशित हुआ है जिसमें उन लोगों ने घटनाओं की तिथि पता लगाने के लिए एक नये वैज्ञानिक तरीके का विवरण दिया है, खासकर आग से जुड़े तरीके का.

शोधकर्ताओं ने आर्कियोमैग्नेटिक डेटिंग नाम की एक प्रक्रिया का जिक्र किया है जो चुंबकत्व का प्रयोग करने वाली एक विधि है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, पुरावशेषों के तिथि निर्धारण में यह तरीका किसी भी अन्य तरीके से कहीं ज्यादा सटीक परिणाम देता है.

आर्कियोमैग्नेटिक विधि कैसे काम करती है, इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र समय के साथ बदलता रहता है. दूसरे, जब ये पुरावशेष सैकड़ों डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किए जाते हैं तो इनमें मिट्टी जैसे छोटे चुंबकीय यौगिक पृथ्वी के बदलते चुंबकीय क्षेत्र से संरेखित हो जाते हैं यानी एक पंक्ति में आ जाते हैं.

वाकनिन कहते हैं, “उस जमाने में शहरों का निर्माण कच्ची ईंटों से हुआ था जिन्हें धूप में सुखाया गया था. जब उन्हें तेज आग में गरम किया जाता है, तो ईंटों में मौजूद फेरोमैग्नेटिक खनिज कंपास की सुइयों जैसे चुंबकीय क्षेत्र के साथ संरेखित हो जाते हैं. जब यह ठंडे होते हैं, तो उनसे चिपक जाते हैं. यह आग लगने के समय का सूचक होता है.”

इसी ‘टाइम लॉक’ के परीक्षण के जरिए शोधकर्ता किसी ऐतिहासिक घटना के सही समय की पहचाने करने में सक्षम हुए.\

लगता है फराओ शोशेंक झांसा नहीं दे रहे थे
मूल रूप से, इतिहासकारों को इस बात पर संदेह था कि क्या फराओ शोशेंक प्रथम ने 900 ईसापूर्व के आस-पास वास्तव में लेवंट को बलपूर्वक जीत लिया था.

वाकनिन कहते हैं, “ज्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि शोशेंक ने लेवंट पर आक्रमण के दौरान किसी भी चीज को नष्ट नहीं किया. बल्कि यहूदी शहरों ने बिना कुछ नष्ट किए वापस जाने के एवज में शोशेंक को दौलत दी.”

बहरहाल, विकनिन कहते हैं कि नई आर्कियोमैग्नेटिक डेटिंग विधि की मदद से हो सकता है कि फराओ अपनी विनाशकारी प्रवृत्ति के बारे में सही बता रहे हों.

वाकनिन ने अपने शोध के दौरान यहूदी शहर टेल बेथ-शीन के विनाश के प्रमाण का भी अध्ययन किया. उस जगह की खुदाई करने वालों के मुताबिक शहर को 830 ईसापूर्व के आस-पास नष्ट कर दिया गया था. बाइबिल में इसी से मेल खाती हुई एक घटना का जिक्र है जिसमें अराम दमिश्क के राजा हजाएल के नेतृत्व में यहूदी शहर की राजधानी पर सैन्य हमला किया गया था.

वाकनिन ने टेल बेथ-शीन शहर की ईंटों के नमूने लिये जो किसी तरह की आग में जल गए थे. इन नमूनों से उन्होंने जो जियोमैग्नेटिक डेटा इकट्ठा किया, उसके मुताबिक, यह शहर इस घटना के करीब अस्सी साल पहले नष्ट किया गया था. इस हिसाब से यह तिथि 900 ईसापूर्व के आस-पास ठहरती है.

वाकनिन कहते हैं, “इस हिसाब से यह बात खारिज हो जाती है कि शहर का विनाश राजा हजाएल ने किया था. बल्कि आग लगने का समय शोशेंक के अभियान से मेल खाता है.”

वाकनिन और उनके सह-लेखक कहते हैं कि उनके शोध कार्य से यह नहीं साबित होता कि शोशेंक ने निश्चित तौर पर बेथ-शीन शहर को नष्ट किया था, बल्कि इससे यह पता चलता है कि आर्कियोमैग्नेटिक डेटिंग ऐतिहासिक घटनाओं के कालक्रम निर्धारण में किस तरह सहायक हो सकती है. साथ ही, इस्राएल और यहूदी शासकों के कालक्रम को लेकर चल रही बहस से भी पर्दा उठ सकता है.

ऐतिहासिक पहेली का एक और हिस्सा
जर्मन प्रोटेस्टेंट इंस्टीट्यूट फॉर आर्कियोलॉजी के डायरेक्टर डाइटर वीगर कहते हैं कि हालांकि जियोमैग्नेटिक डेटा हमें यह बताने में मददगार हो सकता है कि विनाश कब हुआ लेकिन इस विधि की कुछ कमजोरियां भी हैं. वो कहते हैं, “समस्या इनकी व्याख्या को लेकर है. जी हां, हम आग लगने और शहर के विनाश की तिथि तय कर रहे हैं, लेकिन यह डेटा हमें यह नहीं बताता कि यह घटना युद्ध के कारण हुई थी या आग किसी भूकंप जैसी आपदा की वजह से लगी थी.”

विनाश के वास्तविक कारणों को समझने के लिए इतिहासकारों और पुरातत्वविदों को अभी भी ऐतिहासिक ग्रंथों और पुरातात्विक निष्कर्षों के साथ-साथ आर्कियोमैग्नेटिक डेटिंग से मिली जानकारी को भी शामिल करना होगा.

वीगर कहते हैं कि जियोमैग्नेटिक डेटा इतिहास की तारीख की समस्या को नहीं सुलझा पाएगा लेकिन ऐतिहासिक पहेली को हल करने में एक और रास्ता निकाल सकता है.

अब आगे क्या?
वाकनिन उस समय का जिक्र करते हुए कहते हैं जब इस्राएलियों ने कनान की भूमि को बसाया था, “अगली परियोजना यह जानने की है कि कुछ सौ साल पहले क्या हुआ था. इस संबंध में बहस कहीं ज्यादा गर्म हैं.”

ग्रीज के मुताबिक, यह इतिहास और पुरातत्व का मामला है.

उनके मुताबिक, “हम निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि पहले क्या हुआ, लेकिन अतीत में जो कुछ भी हुआ होगा, उसकी संभावनाओं का पता तो लगा ही सकते हैं.”

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