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बाइडन प्रशासन ने सऊदी क्राउन प्रिंस को पत्रकार जमाल ख़ाशुक़्जी की हत्या और PM मोदी को गुजरात दंगों में उनकी भूमिका में क़ानूनी संरक्षण प्राप्त है, क्यों कहा?

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को पत्रकार जमाल ख़ाशुक़्जी की हत्या को लेकर मुक़द्दमे में क़ानूनी संरक्षण प्रदान करने को सही ठहराने के लिए अमरीकी बाइडन प्रशासन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों में उनकी भूमिका के लिए मुक़द्दमे से दी गई छूट का हवाला दिया है।

पिछले गुरुवार को अदालत में अमरीकी न्याय विभाग ने कहा कि क्राउन प्रिंस को ख़ाशुक़्ज़ी की मंगेतर और अधिकार समूह डेमोक्रेसी फॉर द अरब वर्ल्ड नाओ द्वारा उनके ख़िलाफ दायर 2018 के मुक़द्दमे से क़ानूनी संरक्षण प्राप्त है।

अमरीकी विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को बताया कि क्राउन प्रिंस के सरकार के मुखिया यानी प्रधानमंत्री बनने से उन्हें सीधे ही संरक्षण प्राप्त हो गया जो कि इस वर्ष की शुरुआत में नियुक्त किए गए थे।

जब उनसे पूछा गया कि क्या पहले भी किसी मामले में ऐसा हुआ है, तो अमरीकी विदेशमंत्रालय के उप-प्रवक्ता वेदांत पटेल ने जवाब दिया कि यह पहली बार नहीं है कि अमरीकी सरकार ने विदेशी नेताओं को संरक्षण प्रदान किया है और चार उदाहरणों को सूचीबद्ध किया।

उन्होंने कहा कि 1993 में हैती में राष्ट्रपति एरिस्टाइड, 2001 में जिम्बाब्वे में राष्ट्रपति मुगाबे, 2014 में भारत के प्रधानमंत्री मोदी और 2018 में डीआरसी के राष्ट्रपति कबीला कुछ उदाहरण हैं, यह एक सतत अभ्यास है, जिसे हमने राज्य के प्रमुखों, सरकार के प्रमुखों और विदेश मंत्रियों को उपलब्ध कराया है।

पटेल उन घटनाक्रमों को याद कर रहे थे जो 2005 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी को अमरीकी वीज़ा देने के इनकार से शुरू हुआ था, जिसमें 2002 के गुजरात दंगों के समय ‘राज्य संस्थाओं की निष्क्रियता‘ के लिए मोदी को ज़िम्मेदार माना था।

2014 की चुनावी जीत के बाद मोदी को वाशिंगटन द्वारा जल्दी ही निमंत्रण दिया गया था. सुलह के संकेत आम चुनाव से पहले ही दिखने लगे थे, जब अमरीकी राजदूत मोदी के साथ दो घंटे की बैठक के लिए अहमदाबाद गए थे।

प्रधानमंत्री के तौर पर अमेरिका की अपनी पहली यात्रा से ठीक पहले एक अमेरिकी संघीय अदालत ने मोदी को एक मुकदमे का जवाब देने के लिए समन जारी किया, जिसमें उन पर गुजरात दंगों के संबंध में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।

तीन हफ्ते बाद अक्तूबर 2014 में तत्कालीन अमरीकी अटॉर्नी प्रीत भरारा ने न्यूयॉर्क में संघीय अदालत को बताया कि अमरीकी सरकार ने निर्धारित किया है कि भारतीय ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक विदेशी सरकार के मौजूदा प्रमुख के रूप में अमरीकी अदालतों के अधिकार क्षेत्र से संरक्षण प्राप्त है।