साहित्य

बहु मैं भी अपने बेटे की इकलौती मां हूं…..!!….@लक्ष्मी कुमावत की क़लम से

तुमसा नहीं देखा
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बहु मैं भी अपने बेटे की इकलौती मां हूं…..!!
कितनी खुश थी आज सुमेधा जी। आज बेटे का प्रमोशन हुआ है तो बीमार होने के बावजूद भी अपने हाथों से रसोई में मैं जाकर उसकी पसंद का खाना और खास हलवा बनाने में लगी हुई थी। आखिर उनके बेटे सुजॉय को उनके हाथ का बना हुआ हलवा बहुत पसंद आता था। बचपन में जब भी वो बहुत खुश होता था तो मां से हलवा जरूर बनवा कर खाता था।
हलवा बनाकर बर्तन में निकाल कर अभी रखा ही था कि बाहर कार के हॉर्न की आवाज आई। सुमेधा जी ने फटाफट जाकर दरवाजा खोला तो सामने सुजॉय की पत्नी भव्या, उसकी मम्मी मधु जी और छोटी बहन सुनीति थी। सुमेधा जी को सब को एक साथ देख कर बड़ी हैरानी हुई पर वे बोली कुछ भी नहीं।
इतने में सुजाॅय भी कार पार्क करके आ गया। और आते ही सुमेधा जी के गले लग गया। सुमेधा जी ने सुजॉय को बहुत-बहुत बधाई दी और उसके बाद सभी को अंदर लिवा आई। सभी को हॉल में बिठाकर सुमेधा जी फटाफट रसोई में गई और सबसे पहले घर में काम करने वाली कमला को सभी को पानी सर्व करने के लिए कहा।
सबको पानी सर्व करने के बाद वे अपने हाथों का बना हुआ गरमा गरम हलवा एक कटोरी में डाल कर सुजाॅय के लिए ले आई। और एक चम्मच में हलवा लेकर सुजाॅय के मुंह की तरफ बढ़ाते हुए बोली,
” बेटा आज बहुत खुशी की बात है। जो तेरा सपना था, आज वो पूरा हुआ। बहुत मेहनत की थी तूने इसके लिए, इसलिए आज मैंने तेरी पसंद का खाना बनाया है और देख खास तेरे लिए ये हलवा बनाया है। ले मुंह मीठा कर।”
इससे पहले कि सुजाॅय कुछ कहता या वो हलवा मुंह में लेता, भव्या बीच में बोल पड़ी,
” अरेरे मम्मी जी, ये क्या कर रही है आप? सुजॉय ये नहीं खाएगा। और खाना बनाने से पहले कम से कम पूछ तो लेती, हम लोग तो बाहर पार्टी करके आए हैं। सुजाॅय भी खाना खा पी कर आया है।”
भव्या की बातों को सुनकर सुमेधा जी के हाथ वहीं रुक गए। उन्होंने प्रश्न भरी नजरों से सुजॉय की तरफ देखा तो सुजॉय ने कहा,
” हां मम्मी आज प्रमोशन मिलने की खुशी में भव्या और सुनीति पार्टी मांग रहे थे तो सोचा आज बाहर ही खाना खा लेते हैं”
सुनकर सुमेधा जी कटोरी लेकर आपस रसोई की तरफ जाने लगी तो सुजॉय ने रोक लिया,
” अरे पर मम्मी हलवा लेकर कहां जा रही हो? मेरे पेट में इतनी जगह तो है कि मैं आपके हाथ का बना हलवा खा सकता हूं। जब तक आपके हाथ का बना हुआ मीठा मुंह में नहीं जाएगा, तब तक लगेगा ही नहीं कि कुछ करके दिखाया है।”
और सुमेधा जी के हाथों से कटोरी लेकर दो-तीन चम्मच हलवे के फटाफट अपने मुंह में रख लिए। ये देखकर जहाँ सुमेधा जी की आत्मा तृप्त हो गई, वही भव्या चिढ़ गई। उस समय तो भव्या कुछ नहीं बोली, लेकिन रात को कमरे में भव्या इस बात पर सुजॉय से बहस करने को तैयार हो गई,
” जब आते समय सुनीति ने आपसे कहा कि चलिए जीजा जी गोलगप्पे खाते हुए चलते हैं तो आपने क्या कहा कि मेरे पेट में बिल्कुल जगह नहीं है। लेकिन यहां अपनी मां के हाथों का बना हुआ हलवा खाने के लिए पेट में जगह बन गई। यही कद्र है मेरे परिवार की”
भव्या की बात सुनकर सुजॉय को भी गुस्सा आ गया तो उसने कहा,
” मैं तुम्हारे परिवार के साथ ही पार्टी करने गया था जबकि मेरी मां घर पर ही थी। तब तुम्हें इसका ख्याल नहीं आया था। माँ ने बीमार होते हुए भी मेरे लिए हलवा बनाया, ये नहीं दिख रहा। सिर्फ दो-तीन चम्मच हलवे के खा लिए तो उसमें क्या गलत कर दिया। माँ तो खुश हो गई ना।”
” अच्छा! तुम्हारी मां की फिक्र है, लेकिन मेरी बहन के इमोशन्स की कोई फिक्र नहीं। अरे इतना तो तुम्हारी मां को सोचना चाहिए था कि इकलौते बेटे बहू है, तो उन्हीं की खुशी में खुश हो ले। लेकिन नहीं, बीच-बीच में अपनी टांग जरूर अड़ाती है।”
दोनों अपने कमरे में बहस कर रहे थे और ये बातें बाहर सुमेधा जी को सुनाई दे रही थी। सुनकर बड़ा दुख हो रहा था। जहां तक हो सके वो भी कोशिश करती थी। कभी भी अपने बेटे बहू की जिंदगी में इंटरफेयर नहीं करती थी। लेकिन उसके बावजूद भी कुछ लोग समझना ही ना चाहे तो उसका क्या करें? इतना प्यार और अपनापन देने के बावजूद भी भव्या को हमेशा समस्या ही रही। यहां तक कि समधन जी भी उसके साथ होती थी लेकिन कभी अपनी बेटी को नहीं समझाती थी।
जब भी कोई बात होती भव्या यही मुद्दा उठाती। इकलौते बेटे बहू है, कुछ तो मां को भी ख्याल रखना चाहिए। हमारी खुशियों के बारे में सोचना चाहिए। पर नहीं, उन्हें तो खुद से ही फुर्सत नहीं। आए दिन बीमारी का बहाना लेकर बैठी रहेगी और फालतू के खर्चे कराती रहेगी।
अभी पिछले महीने की ही बात है। भव्या ने घर पर किटी पार्टी ऑर्गेनाइज की थी। उसकी सारी सहेलियों को बुलाया था। पर उस दिन कमला के घर में जरूरी काम आ गया तो वो काम पर नहीं आ पाई। बस फिर क्या था, भव्या ने सुमेधा जी को काम करने के लिए कह दिया। दो तीन लोगों का खाना बनाना अलग बात है लेकिन इतने लोगों का नाश्ता? आखिर उनसे कैसे बनता इसलिए उन्होंने कह दिया,
” बहु नाश्ता बाहर से मंगवा लो। क्यों बेवजह परेशान होती हो?”
उनकी बात सुनकर भव्या बोली,
” अरे मम्मी जी मैं आपकी इकलौती बहू हूं। क्या आप मेरी खुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती? आपके इकलौते बेटे की पत्नी की खुशी आपके लिए कोई मायने नहीं रखती? मेरी सहेलियां क्या बाहर का खाएगी? नहीं नहीं, आपको तो खाना बनाना ही पड़ेगा”
” देख बहू, अभी मैं हां कर दूं और फिर बीच में ही सब कुछ छोड़ दूं, इस से अच्छा है कि तू या तो बाहर तेरी किटी ऑर्गेनाइज कर ले या फिर किसी महाराज को कह कर घर में खाना बनवा ले। इतने लोगों का खाना तो मुझसे नहीं बन पाएगा”
जब सुमेधा जी ने साफ साफ शब्दों में कहा तब भी भव्या बहुत नाराज हुई थी। हालांकि उसने अपनी किटी बाहर रेस्टोरेंट में ऑर्गेनाइज कर ली, पर तीन दिन तक सुमेधा जी से बात तक नहीं की।
कुछ दिन बाद भव्या की किसी सहेली की शादी थी। उस दिन सुमेधा जी की तबीयत सुबह से ही थोड़ी खराब थी। जब शाम को सुजॉय घर आया तो भव्या शादी में जाने को तैयार थी तो सुजॉय ने कहा,
” अरे पर माँ की तबीयत खराब है। ऐसे में हम कैसे जा सकते हैं? “
भव्या जानबूझकर सुमेधा जी को सुनाते हुए बोली,
” अरे थोड़ी बहुत तबीयत खराब है। अभी फिलहाल तो सब ठीक लग रहा है और वैसे भी कमला घर पर ही है। भला माँ जी अपने इकलौते बेटे बहू को क्यों रुकेगी आखिर उनकी इकलौती बहू की खुशी की बात जो है”
आखिर सुमेधा जी क्या कहती? उन्होंने सुजॉय को जाने के लिए कह दिया। भव्या और सुजॉय शादी में रवाना हो गए। वो लोग अभी शादी में पहुंचे ही थे कि आधे घंटे बाद ही घर से कमला का फोन आ गया कि सुमेधा जी की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई हैं।
फोन रख कर सुजाॅय फटाफट भव्या के पास गया और बोला,
” हमें अभी इसी समय घर निकलना होगा, माँ की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई है”
सुनकर भव्या का मुंह बन गया लेकिन बोल भी क्या सकती थी इसलिए सुजॉय के साथ घर रवाना हो गई। घर आकर देखा तो सुमेधा जी अपने कमरे में निढाल सी पड़ी हुई थी। सुजाॅय उन्हें लेकर फटाफट हॉस्पिटल गया तो पता चला कि उनका बीपी लो हो गया था। जब बीपी नार्मल हो गया तो दो घंटे बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
सुमेधा जी अब पहले से थोड़ी बेहतर थी। सुजॉय सहारा देकर कमरे लाया और लेटा दिया। इधर भव्या भरी बैठी थी। उसे तो ऐसा लग रहा था जैसे सुमेधा जी नाटक कर रही है। भला दो घंटे में ही कैसे तबीयत ठीक हो गई। अब वो इस बात का आर या पार का फैसला चाहती थी। पर सुजॉय के सामने नहीं।
दूसरे दिन भी उसे सुबह से बस इसी बात का इंतजार था कि कब सुजॉय जाए और कब वो सुमेधा जी को दो बातें सुनाए। जब सुजॉय चला गया तो उसने यह भी देखा कि वो ऑफिस गया है या आसपास ही। सीधे सुमेधा जी के कमरे में जाकर चिल्लाना शुरु कर दिया,
” आपको शर्म नहीं आती। आपसे अपने इकलौते बेटे बहू की खुशियां भी नहीं देखी जाती। शादी में पहुंचे नहीं कि आपने कॉल करवा दिया। और ऐसी कौन सी तबीयत खराब हो रही थी जो दो घंटे में ही ठीक हो गई। इससे अच्छा तो दो घंटे इंतजार ही कर लेती। दो घंटे बाद घर आ ही जाते ना हम लोग। फिर आराम से निढाल होकर पड़ जाती। जब देखो बस अपने बेटे को फोन करके परेशान करती रहती है। इकलौता बेटा है तो क्या सिर पर चढ़कर नाचेंगी आप”
उसकी बात सुनकर सुमेधा जी हैरान रह गई। फिर थोड़ा संभल कर बोली,
” बहु भला मैं तुम्हारी खुशियों से क्यों परेशान होऊँगी। मेरी सचमुच तबीयत खराब थी”
पर फिर भी भव्या का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ। वो और जोर से चिल्लाते हुए बोली,
“अरे सच में तबीयत खराब थी तो थोड़ा सा सब्र कर लेती। इतनी देर में मर थोड़ी ना जाती, जब देखो मेरे पति को फोन लगा देती हो”
” बस कर बहु, बहुत बोल लिया तूने। अगर तेरा पति मेरा इकलौता बेटा है तो ये मत भूल कि मैं भी तेरे पति की इकलौती मां हूं। उससे नहीं बोलूंगी तो किससे बोलूंगी?”
” देखती हूँ कि कैसे? अब या तो आपका ही रिश्ता रहेगा या फिर मेरा “
“ठीक है, दरवाजा खुला हैं। तुम जा सकती हो “
अचानक सुजाॅय की आवाज सुनकर भव्या ने पलट कर देखा तो सुजॉय पीछे खड़ा था। साथ ही उसकी मम्मी और बहन भी। लेकिन अब तो बात निकल चुकी थी इसलिए भव्या ने रोते हुए अपनी मम्मी से कहा,
” देखा मम्मी आपने। अपनी मां के लिए सुजॉय मेरे साथ कैसा बिहेवियर करता है। बस, बहुत हुआ। आज तो फैसला होकर रहेगा। या तो यह औरत है इस घर में रहेगी या मैं। मुझे सास नाम का झंझट मेरी जिंदगी में नहीं चाहिए”
लेकिन इससे पहले भव्या की मां कुछ कह पाती, सुजॉय ही बोला,
” अच्छा! फिर ठीक है। मुझे भी सास नाम का झंझट नहीं चाहिए। पर शर्त ये है कि तुम भी अपनी मां से नहीं मिलोगी और मैं भी अपनी मां से नहीं मिलूंगा। शर्त मंजूर है तो बोलो। तब तो मैं भी तैयार हूं। और दूसरा ऑप्शन भी है मेरे पास कि मां तो इसी घर में रहेगी। हां तुम्हें मेरे साथ रहने की इच्छा है तो हम दोनों किराए के कमरे में रहने चलेंगे। अब मेरी सैलरी में से आधी सैलरी तो मम्मी के पास आएगी क्योंकि बेटा होने के नाते मुझे भी खर्चा देना पड़ेगा। आप आधी सैलरी में ही किराया, सेविंग, घर का खर्चा तुम करो सको तो देख लो। शर्त मंजूर है तो बोलो”
अब ना तो भव्या से कुछ बोलते बने, ना ही उसकी मम्मी ने कुछ कहा। आखिर जिसे ऐशो आराम की जिंदगी जीने की आदत हो गई हो वो भला ऐसी जिंदगी सोच कर ही सिहर जाता है। बस थोड़ी देर में ही भव्या के आंसू गायब हो चुके थे और वो चुपचाप चाय नाश्ते की तैयारी करने चली गई। वो दिन था और आज का दिन है। आज तक भव्या ने सुमेधा जी को परेशान नहीं किया।
@दीदी लक्ष्मी कुमावत जी की कलम से
#वत्स …❤…