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बशर अल-असद को अपनों ने बनाया बलि का बकरा : सीरिया में असद की सत्ता का पतन हो चुका है, असद अब मॉस्को में हैं : रिपोर्ट

क़रीब एक दशक से रूस की सैन्य ताक़त की मेहरबानी से बशर अल असद सीरिया की सत्ता पर काबिज़ थे.

बीते 24 घंटों में जो कुछ हुआ है, वो हैरान करने वाला है.

सीरिया में असद की सत्ता का पतन हो चुका है. असद पद देश छोड़ चुके हैं और मॉस्को में हैं.

रूसी न्यूज़ एजेंसी और सरकारी टीवी ने क्रेमलिन के सूत्रों के हवाले से कहा है कि रूस ने असद और उनके परिवार को मानवीय आधार पर शरण दे दी है.

कुछ ही दिनों के भीतर क्रेमलिन का सीरिया प्रोजेक्ट एक नाटकीय घटनाक्रम में भरभरा कर गिर गया है. और रूस इसे रोकने में विफल साबित हुआ है.

रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि वो सीरिया के नाटकीय घटनाक्रम पर नज़र रख रहा है.

 

 

रूस के लिए झटका

असद का पतन रूस के लिए एक बड़ा झटका है.

साल 2015 में मुसीबत में पड़े असद की मदद के लिए रूस ने हज़ारों सैनिक भेजे थे.

रूस का मुख्य उद्देश्य अपने आप को एक ग्लोबल पॉवर के रूप में पेश करना था.

सोवियत दौर के बाद ये पश्चिमी देशों की ताक़त को चुनौती देने की व्लादिमीर पुतिन की पहली बड़ी कोशिश थी.

और ऐसा लगता है कि ये प्रयास सफल रहा था.

साल 2017 में राष्ट्रपति पुतिन सीरिया के हेमिम एयर बेस पर गए थे और कहा था कि वो अपने मिशन में सफल रहे हैं.

उस दौर में रूसी हवाई हमलों में आम लोगों की मौत की ख़बरों के बावजूद रूसी रक्षा मंत्रालय विदेशी मीडिया के अपनी सैन्य ताक़त दिखाने के लिए सीरिया ले जाता था.

ऐसे ही एक ट्रिप में एक अधिकारी ने मुझे बताया था कि रूस सीरिया में ‘लंबे समय तक’ रहने वाला है.

बात सिर्फ़ सम्मान की नहीं…

लेकिन ये बात सिर्फ़ सम्मान की ही नहीं थी.

सैन्य मदद के बदले सीरिया ने रूस को हेमिम का हवाई अड्डा और तार्तुस का नोसैनिक अड्डा 49 साल की लीज़ पर दिया था.

रूस ने भूमध्यसागर इलाक़े में अपने पैर जमा लिए थे. ये दोनों अड्डे अफ़्रीका में मिलने वाले सैन्य ठेकों के लिए अहम बन गए थे.

रूस के लिए अब एक बड़ा सवाल ये है – इन अड्डों का अब क्या होगा?

रूस ने जिस बयान में ये कहा गया है कि असद मॉस्को में आ गए हैं, उसी में इस बात का ज़िक्र भी है कि रूस सीरिया के हथियारबंद विपक्ष के संपर्क में भी है.

सरकारी टीवी के एंकर ने कहा है कि सीरिया में विपक्ष के नेताओं ने वहाँ रूस के सैन्य अड्डों और राजनयिक मिशन की सुरक्षा की गारंटी दी है.

विदेश मंत्रालय ने कहा है सीरिया में उनके अड्डे इस वक़्त हाई अलर्ट पर हैं.

मंत्रालय ने ये भी दावा किया है कि इस समय उन्हें कोई गंभीर ख़तरा नहीं है.

बशर अल-असद सीरिया में रूस के सबसे बड़े हिमायती थी.

रूस ने उन पर बहुत भरोसा किया था.

मॉस्को में अधिकारी असद के तख़्तापलट को उनकी विदेश नीति के लिए एक झटके के रूप में पेश करने से नहीं बच पाएंगे.

बलि का बकरा

इसके बावजूद अधिकारी इसके लिए बलि का बकरा तलाश रहे हैं.

रविवार की रात रूस के सरकारी टीवी ने अपने साप्ताहिक शो में सीरियाई सेना पर निशाना साधा और उसे विद्रोहियों के ख़िलाफ़ नहीं लड़ने का दोषी ठहराया.

टीवी एंकर येवगेनी किसेलेव ने कहा, “हर कोई देख सकता है कि सीरियाई अधिकारियों के लिए स्थिति नाटकीय होती जा रही है. लेकिन अलेप्पो में बिना लड़े मैदान छोड़ दिया गया. कई मज़बूत सैन्य ठिकानों में आत्मसमर्पण कर दिया गया. ये सब तब हुआ जब सरकारी सैनिकों के पास बेहतर हथियार थे और उनकी संख्या हमलावरों से कई गुना थी. यह एक रहस्य है.”

एंकर ने दावा किया कि रूस को “हमेशा सीरिया में सुलह की गुंज़ाइश थी.”

आख़िर में एंकर ने कहा, “बेशक सीरिया में जो हो रहा है, हम उसके प्रति उदासीन नहीं हैं. लेकिन हमारी प्राथमिकता रूस की अपनी सुरक्षा है. और वो है यूक्रेन में चल रहा हमारा विशेष सैनिक अभियान.”

ये रूसी जनता के लिए एक स्पष्ट संदेश है.

रूस ने नौ साल बशर अल-असद को सत्ता में बनाए रखने के लिए संसाधन झोंके.

इसके बावजूद रूस के लोगों से ये कहा जा रहा है कि उनके पास चिंता करने के लिए और भी अहम चीज़ें हैं.

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स्टीव रोज़नबर्ग
पदनाम,बीबीसी रूस संपादक

सीरिया की सेना चंद दिनों के भीतर ही कैसे हार गई विद्रोहियों से जंग

सामिया नस्र
पदनाम,बीबीसी न्यूज़ अरबी

कई लोगों को सीरिया में इतनी तेज़ी से हालात बदलने का अंदेशा नहीं था. चंद ही दिनों में ताक़तवर दिखने वाले राष्ट्रपति बशर अल-असद कुर्सी छोड़कर मॉस्को जा चुके हैं.

कुछ ही दिन पहले देश के उत्तर में स्थित शहर इदलिब में मौजूद हथियारबंद विपक्षी गुट हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में सरकार के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू हुई.

एक के एक बाद इस गुट ने कई बड़े शहरों को अपने कब्ज़े में ले लिया.

अभी हफ़्ता भर पहले ही बशर अल-असद ने ‘आतंकवादियों को कुचलने’ की क़सम खाई थी.

लेकिन जिस गति से ज़मीनी हालात पलटे हैं उससे सीरियाई मामलों पर नज़र रखने वाले अधिकांश लोगों आश्चर्यचकित हैं.

इस सारे घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े किए हैं.

सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि विद्रोही लड़ाकों की इस हैरान कर देने वाली गति को सीरिया की सेना क्यों नहीं रोक पाई. सेना एक के बाद एक कई शहरों से पीछे क्यों हटती रही? इसके पीछे क्या वजहें हो सकती हैं?

1500 टैंक, लड़ाकू विमान और बख़्तरबंद वाहन…

वर्ष 2024 के 145 देशों के ग्लोबल फ़ायर पॉवर इंडेक्स के अनुसार, सैन्य ताकत के मामले में सीरिया अरब जगत में छठे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साठवें स्थान पर है. इस रैंकिंग में सैनिकों की संख्या, सैन्य उपकरण, मानव संसाधन और रसद वगैरह को ध्यान में रखा जाता है.

सीरियाई सेना को अर्धसैनिक बलों और सिविल मिलिशिया का पूरा समर्थन था. ये फौज सोवियत संघ के ज़माने के उपकरणों और रूस जैसे सहयोगियों से मिले सैन्य साज़ो-सामान पर निर्भर थी.

ग्लोबल फ़ायर पॉवर के अनुसार, सीरिया की सेना के पास 1,500 से अधिक टैंक और 3,000 बख्तरबंद वाहन हैं. सेना के पास तोपखाना और मिसाइल सिस्टम तक भी हैं.

सीरियाई सेना के पास हवाई जंग लड़ने के लिए भी हथियार हैं. इसके पास लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर और प्रशिक्षण विमान हैं. इसके अलावा सेना के पास एक मामूली नौसैनिक बेड़ा भी है.

सीरिया की नेवी और एयर फ़ोर्स के पास लताकिया और टार्टस जैसे कई महत्वपूर्ण हवाई अड्डे और बंदरगाहें भी हैं.

आंकड़ों के हिसाब से तो सीरियाई सेना की स्थिति अच्छी लग सकती है, लेकिन ऐसे कई कारण हैं जिससे यह कमज़ोर साबित हुई है.

सीरियाई गृह युद्ध के शुरुआती दिनों की तुलना में इस सेना ने अपने हज़ारों लड़ाकों को खोया है. जब जंग छिड़ी थी तब सीरिया की सेना में तीन लाख के करीब सैनिक थे. अब ये संख्या आधी ही बची थी.

सैनिकों की संख्या में गिरावट दो वजहों से हुई है – पहली युद्ध में मौत और दूसरी बड़ी संख्या में सैनिकों का मैदाने जंग छोड़कर विद्रोहियों से हाथ मिलाना.

सीरिया की एयर फ़ोर्स को भी विद्रोहियों और अमेरिका के हवाई हमलों का सामना करना पड़ा जिससे वो बेहद कमज़ोर हो गई.

सैनिकों के लिए बस ‘तीन दिन की तनख़्वाह’

सीरिया के पास तेल और गैस के महत्वपूर्ण भंडार हैं लेकिन युद्ध के कारण उन भंडारों का दोहन करने की उसकी क्षमता में काफी गिरावट आई है.

देश के जो हिस्से पूरी तरह से असद सरकार के नियंत्रण थे वहां कि आर्थिक स्थिति में और गिरावट देखी गई. इसकी वजह थी अमेरिका का सीज़र एक्ट.

दिसंबर 2019 में लागू किए गए इस एक्ट के तहत किसी भी सरकारी निकाय या सीरियाई सरकार के साथ काम करने वाले व्यक्तियों पर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे.

कई रिपोर्टों में असद सरकार के सैनिकों को कम वेतन दिए जाने के संकेत मिले हैं. ऐसी रिपोर्टों में कहा गया है कि सैनिकों को हर महीने करीब 15 से 17 डॉलर के बराबर ही वेतन मिल पा रहा था. एक सीरियाई नागरिक के मुताबिक, “इतने पैसे तो ‘तीन दिनों के लिए भी पर्याप्त नहीं है.”

यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन में विदेशी मामलों के प्रोफ़ेसर फ़वाज़ गिरगिस का कहना है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान सीरिया में स्थिति में काफ़ी बदलाव आया है.

उनका मानना है, “अमेरिकी प्रतिबंध हैं जिनके कारण सीरिया में ग़रीबी आई. सैन्य अधिकारियों को भी उतना पैसा नहीं मिलता था जिसके वे हकदार हैं. उनके पास पर्याप्त भोजन नहीं था. कुल मिलाकर वे एक कठिन मनोवैज्ञानिक स्थिति में थे. इनमें से कई सैनिक भुखमरी के क़रीब थे.”

सीरियाई सरकारी समाचार एजेंसी के अनुसार, अल-असद ने पिछले बुधवार को सैनिकों के वेतन में 50 प्रतिशत की वृद्धि करने का एलान किया था.

इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से विपक्षी ताकतों के बढ़ते क़दमों के बीच सैनिकों का मनोबल बढ़ाना था.

लेकिन ऐसा लगता है कि यह क़दम बहुत देर से उठाया गया.

असद के सहयोगियों ने खींचे अपने हाथ

फिर भी ये वाक़ई हैरान कर देने वाली बात है कि सशस्त्र विपक्ष के साथ हुई लड़ाई के दौरान कई सैनिक और अधिकारी अचानक मोर्चा छोड़ गए.

इसकी वजह से विपक्ष के लड़ाके अलेप्पो से दमिश्क तक तेजी से आगे बढ़ते रहे. सीरियाई सैनिक हमा और होम्स से गुजरते हुए सड़कों पर अपने सैन्य उपकरण और हथियार तक छोड़ते गए.

दमिश्क में बीबीसी संवाददाता बारबरा अशर ने भी बताया है कि शहर में कुछ सैनिकों ने अपनी सैन्य वर्दी उतारकर सिविल ड्रेस पहन ली है.

बेरूत में कार्नेगी मिडिल ईस्ट सेंटर के एक वरिष्ठ फेलो डॉ. यज़ीद सईग़ का कहना है कि सीरियाई सेना के पतन का कारण ‘लगभग पूरी तरह से असद की नीतियों की वजह से हुआ है.’

डॉ सईग़ कहते हैं कि सेना ने साल 2016 तक विपक्ष पर करीब मुकम्मल जीत हासिल कर ली थी जिसके बाद असद ने सत्ता में बने रहने के लिए इसका नाजायज़ इस्तेमाल किया.

डॉ सईग़ ने बताया, “इन नीतियों का असर सेना पर हुआ. हज़ारों सैनिकों को फ़ौज से निकाला गया. साथ ही लोगों के जीवन स्तर में भयानक गिरावट आई, व्यापक भ्रष्टाचार हुआ और भोजन तक की कमी हुई. यहां तक ​​कि सेना के लिए आपूर्ति भी प्रभावित हुई. इसकी वजह से सेना के शीर्ष पदों पर बैठे अल-असद के शिया अलावी समुदाय के जनरल अलग-थलग पड़ गए.”

सेना का मनोबल ईरान, हिज़्बुल्लाह और रूस से प्रत्यक्ष सैन्य सहायता के कम होने से भी गिरा. ये तीनों पक्ष पहले की तुलना में अब पर्याप्त रूप से हस्तक्षेप करने में सक्षम नहीं हैं. अपने सहयोगियों की ओर से बिना किसी तत्काल मदद के वादे से सेना के लड़ने की इच्छा ख़त्म हो गई.

लंदन की किंग्स कॉलेज में युद्ध अध्ययन में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर और ब्रिटेन के मिलिट्री एक्सपर्ट प्रोफ़ेसर माइकल क्लार्क के मुताबिक़, सीरिया की सेना विदेशी मदद पर निर्भर थी.

उनका कहना है, “सेना के प्रशिक्षण का स्तर काफ़ी ख़राब हो गया, साथ ही उनके अधिकारियों का नेतृत्व प्रदर्शन भी गिर गया. जब सेना की यूनिट्स का सामना हयात तहरीर अल-शाम के लड़ाकों से हुआ तो कई अधिकारी अपने सैनिकों समेत पीछे हट गए और कुछ भाग गए. जब ऑफ़िसर ही प्रभावी नेतृत्व देने में विफल हों तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सैनिक भाग जाएं.”

डॉ. सईग़ इस बात को ख़ारिज़ करते हैं कि ईरान, सीरिया और हिज़्बुल्लाह ने जानबूझकर सैन्य समर्थन की वापस ले लिया.

उनका कहना है, “अतीत में ईरान मैदानी समर्थन देने के लिए हिज़्बुल्लाह पर बहुत अधिक निर्भर था, लेकिन लेबनान में हिज़्बुल्लाह को हुए नुकसान के बाद, वो ऐसा करने में समर्थ नहीं था. सीरिया को सलाह मशविरा देने आने वाले ईरानी अधिकारियों की भी लगातार कमी हो रही थी. पिछले दशक के दौरान सीरिया पर इसरायली हमलों की वजह से ईरान ज़मीन या हवाई मार्ग से तत्काल बड़ी सेना भेजने में सक्षम नहीं बचा था.”

“इसके अलावा इराक़ी सरकार और ईरान समर्थित लड़ाकों ने लगभग एक ही वक्त पर असद का सहयोग बंद कर दिया. ईरान को शायद ये अहसास हो गया था कि असद को बचाना असंभव हो गया है.”

एक सच ये भी है कि फरवरी 2022 की शुरुआत में ही यूक्रेन युद्ध की ज़रूरतों के कारण रूस ने लताकिया स्थित अपने बेस से बड़ी संख्या में अपने विमान और सेना को वापस बुला लिया था.

डॉ. फ़वाज़ इस बात से सहमत हैं कि ईरान, हिज़्बुल्लाह और रूस ने सैन्य समर्थन बंद कर दिया था. और यही ‘उन बुनियादी कारणों में से एक था जिसके कारण एक के बाद एक सीरियाई शहर विद्रोहियों के कब्ज़े में जाते गए.’

वह आगे कहते हैं, “सीरियाई सेना ने इस बार असद की सरकार को बचाने के लिए लड़ाई ही नहीं की. उल्टा सेना ने लड़ाई से हटने और हथियार पीछे छोड़ने का फैसला किया. इससे पता चलता है कि 2015 के बाद असद के लिए रूसऔर हिज़्बुल्लाह के ज़रिए ईरानी समर्थन कितना अहम था.”

‘ईरान के शाह जैसा हाल’

कई पर्यवेक्षकों ने ये भी बताया कि सशस्त्र विपक्षी गुटों ने ख़ुद को एकजुट किया और एक कमांड रूम बनाया. अपने ताज़ा अभियान के लिए उन्होंने तैयारी की. वो सीरियाई सेना की तुलना में अपनी स्थिति को मजबूत करने में सफल रहे.

इसके अलावा विपक्षी नेताओं की तरफ़ कुछ अहम बयान भी सामने आए. उन्होंने सीरियाई नागरिकों को भरोसा दिलाया कि विपक्ष सभी संप्रदायों का सम्मान करेगा. विशेषज्ञों की राय में ऐसे बयानों ने विपक्षी गुटों के मिशन को आसान बनाया.

डॉ. फ़वाज़ गिरगिस का मानना ​​​​है कि ये सारा घटनाक्रम” 1979 में ईरान के शाह के शासन के पतन जैसा है.”

उनका कहना है, “सीरियाई विपक्ष, इसके इस्लामवादी और राष्ट्रवादी दोनों पक्ष, दो सप्ताह से भी कम समय में सीरियाई शासन को नष्ट करने में सफल हुए हैं. असद की सरकार दरअसल अंतिम सांसें ले रही थी. और जब विपक्ष का हमला हुआ तो सेना धराशाई हो गई. सारा तंत्र यूँ ध्वस्त हो गया कि जैसे वह कोई ग्लास हाउस हो.”

बशर अल-असद के रूस में होने की हुई पुष्टि

इमेज कैप्शन,व्लादिमीर पुतिन और बशर अल-असद (फाइल फोटो)
रूस की स्टेट मीडिया ने पुष्टि की है कि बशर अल-असद और उनके परिवार को देश में शरण दी गई है.

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने दैनिक ब्रीफिंग में कहा, “राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने व्यक्तिगत रूप से ये निर्णय लिया है.”

हालांकि उन्होंने असद के ठिकाने की पुष्टि करने से इनकार कर दिया.

पेस्कोव ने साथ ये भी नहीं बताया कि व्लादिमीर पुतिन और असद आख़िरी बार कब मिले थे. उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में उनकी (पुतिन) असद से मिलने की योजना नहीं है.

उन्होंने कहा, “सीरिया में सताधारी लोगों के साथ संपर्क बनाए रखने के लिए रूस तैयार है.”

एचटीएएस के नेतृत्व में विद्रोहियों ने अलेप्पो, हमा और होम्स के बाद राजधानी दमिश्क पर रविवार को कब्ज़ा कर लिया था. इसके बाद विद्रोहियों ने कहा था कि सीरिया आज़ाद हो गया है.

इन सबके बीच बशर अल-असद सीरिया छोड़कर भाग गए थे.