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बलराज साहनी साहब को जब जेल से शूटिंग करने के लिए आना पड़ता था…

जब साल 1953 में बलराज साहनी, को “दो बीघा जमीन” के लिए बिमल राय के सामने लाया गया तो वो बलराज साहनी को देखकर बहुत मायूस हुए क्योंकि बिमल राय को तलाश थी एक रिक्शा चालक और एक किसान की, लेकिन बिमल राय का चेहरा किसी अंग्रेज माफिक नजर आ रहा था और बोलते समय भी वो ऐसे बोल रहे थे जैसे किसी अंग्रेज को घोल कर पी गए हो…कहते है पहली नजर में बिमल राय ने बलराज साहनी को रिजेक्ट कर दिया था..लेकिन बलराज साहनी ने इस मुद्दे को बतौर चैलेंज लिया और कलकत्ता की सड़कों पर रिक्शा चलाने निकल गए… सात दिनो तक कलकत्ता की सड़कों पर पसीना बहाया.. ठोकरे खाई, और स्वारियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाया.. और जब सात दिन बाद दोबारा वो बिमल रॉय के सामने खड़े थे तो बलराज साहनी को देख कर बिमल रॉय की आंखों में एक अलग तरह की चमक थी… और उन्हे देख कर. यकायक उनके मुंह से निकल गया,”येस, यही है मेरी कहानी का नायक शंभू महतो”, और बिमल राय का ऐसा इंप्रेशन देखकर बलराज साहनी साहब बहुत उत्साहित हुए जैसे उन्हे उनकी मेहनत का फल मिल गया हो..


और जब बलराज साहनी के.आसिफ की दिलीप कुमार-नरगिस स्टारर ‘हलचल’ में जेलर का किरदार निभा रहे थे..तो उसी दौरान दुर्भाग्य से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया..बलराज साहनी को सरकार विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के इलज़ाम में गिरफ्तार किया गया था .. उस वक्त दौर चल रहा था सच्ची देश भक्ति का..उस दौर में मज़दूर के हक़ और शोषण के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने वाले को कम्युनिस्ट समझा जाता था और ऐसे लोगों को जेल में ठूंस दिया जाता था.. अब बलराज जेल में थे और . बलराज साहब के घर में खाने के लाले पड़े थे…. ऐसे में के आसिफ आगे आए और… उन्होंने उस दौर के हुकुमरानों से बात की और बात करके इस मसले का एक हल निकाला..उन्होंने बलराज साहब के लिए विशेष अनुमति ली,

इस दौरान उन्हें शूटिंग के लिए बलराजसाहब को रोज़ाना कुछ घंटों के लिए जेल से रिहा किया जाने लगा. अब बलराज साहब आते तो जेल से थे लेकिन शूटिंग करते समय वो जेलर की वर्दी में होते थे.. उनकी ऐसी अवस्था देख कर सेट पर उनका मजाक भी उड़ाया गया… उन्हे कहा जाता के एक्टिंग आपके बस की बात नहीं. दरअसल कहा जाता है के जेल में कई दिन बिताने की वजह से उनके चेहरे का रंग काला पड़ गया था था उनका वजन भी काफी कम हो गया था..और इसी की वजह से इन परिस्थितियों का उनके किरदार पर भी असर साफ साफ दिखने लगा था… लेकिन शुक्र है के सत्ता के हुक्मरानों को बलराज साहनी की सच्चाई जल्द ही नज़र आ गई और उन्हें रिहा कर दिया गया.. तब उनके दिन फिर बदलने शुरू हुए .. बलराज साहनी हमेशा से एक संजीदा कलाकार रहे हैं और उनकी जिंदगी के बारे में ज्यादातर गोपनीयता ही बनी रही.. बहुत कम उनके बारे में लिखा गया या उनकी जिंदगी के बारे में ज्यादा मालूमात हासिल भी नहीं होती..13 अप्रैल 1973 को उन्हे एक जबरदस्त हार्ट अटैक आया और केवल 59 साल की उमर में एक सितारा इस जहां से रुखसत हो गया.. बलराज साहनी साहब को साल 1969 में पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.. लेकिन ऐसे गरीब इंसान और उच्वर्गीय कलाकार को मिला सम्मान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को भी याद रखना चाहिए..