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‘बन्दिनी’ विमल रॉय की अनमोल कृति…हत्या के लिए आजीवन कारावास #𝐁𝐚𝐧𝐝𝐢𝐧𝐢

𝐁𝐚𝐧𝐝𝐢𝐧𝐢 – (𝟏𝟗𝟔𝟑)
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हिंदी फिल्मो के मशहूर निर्माता और निर्देशक बिमल रॉय की फिल्म ‘बन्दिनी (1963)’ एक नारी प्रधान फिल्म है चूँकि ऐसी फिल्मे बनने का जोखिम हर कोई कोई नहीं लेना चाहता इसलिए ‘बन्दिनी’ को आप विमल रॉय की अनमोल कृति कह सकते है……….. यह फिल्म जरासंध (चारु चंद्र चक्रवर्ती) के बंगाली उपन्यास ‘तामसी’ पर आधारित है जो एक पूर्व जेल अधीक्षक था जिसने अपने करियर का अधिकांश समय उत्तरी बंगाल में जेलर के रूप में बिताया और अपने अनुभवों के कई काल्पनिक संस्करण लिखे….


फिल्म में कल्याणी (नूतन) जेल में एक महिला क़ैदी है जिस पर खून का इल्ज़ाम है जेल में ही एक बुढ़िया कैदी जिसे तपेदिक है कल्याणी स्वेच्छा से उसकी देखभाल करने को राज़ी हो जाती है….. उस बुढ़िया कैदी का इलाज करते करते जेल के डॉक्टर देवेन्द्र (धर्मेन्द्र) को कल्याणी से प्यार हो जाता है लेकिन कल्याणी अपने अतीत के कारण उसके प्यार को ठुकरा देती है ….

इस फ़िल्म में अशोक कुमार, धर्मेन्द्र , नूतन,तरुण बोस और असित सेन ,कानू रॉय ,बेला बॉस ,सुलोचना चैटर्जी ,इफ़्तेख़ार ने अभिनय किया था ……हालांके धर्मेन्द्र ने पहली फ़िल्म बिमल रॉय की बंदिनी साइन की थी लेकिन इस फ़िल्म को बनने में इतना समय लग गया था कि ये फ़िल्म धर्मेन्द्र की सातवीं फ़िल्म साबित हुई जब साल 1963 में बंदिनी रिलीज़ हुई तो इससे पहले धर्मेन्द्र 6 और फिल्मे कर चुके ………पहले बिमल रॉय नूतन की जगह पर अभिनेत्री वैजयन्ती माला को कल्याणी के रोल के लिए लेना चाहते थे लेकिन वैजयन्ती माला राजकपूर की पहली रंगीन फिल्म ‘संगम ‘ में बिज़ी थी इसलिए वैजयन्ती माला ने इस फ़िल्म को करने से इनकार कर दिया …..


जब नूतन को फ़िल्म ‘बंदिनी’ में साइन किया गया तब वो भी प्रेग्नेट थी लेकिन नूतन ने कल्याणी का किरदार जिस शिद्दत से निभाया है वो आपको फिल्म देखने से पता चल जाता है ये एक ग्लैमर रहित, चुनौती पूर्ण रोल था……………. हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रही एक महिला कैदी कल्याणी जो पीड़ित,निस्वार्थ, बलिदानी और मजबूत तो है लेकिन फिर भी अंदर से कमजोर है…….. उसे दो अलग-अलग पुरुषों, देवेन्द्र (धर्मेन्द्र), जेल के डॉक्टर और विकास (अशोक कुमार),में एक को चुनना है …..

इसी तरह बिमल रॉय धर्मेन्द्र को विकास घोष यानि अशोक कुमार वाला किरदार देना चाहते थे और शशि कपूर को जेल डॉक्टर देवेंद्र यानि धर्मेन्द्र वाला किरदार देना चाहते थे लेकिन बाद में उन्हें लगा कि विकास का किरदार फिल्म की रीढ़ है और उन्हें इसके लिए के लिए धर्मेन्द्र जैसे नए अभिनेता की बजाय कोई अनुभवी अभिनेता चाहिए था इसलिए इस किरदार के लिए हरफनमौला अशोक कुमार को लिया गया और धर्मेन्द्र को डॉक्टर डॉक्टर देवेंद्र का किरदार दिया गया लेकिन धर्मेन्द्र इस छोटे रोल में भी फिल्म में एक अलग ही आकर्षण पैदा कर गए….

इस फ़िल्म के संगीतकार सचिन देव बर्मन हैं तथा गीतकार ‘शैलेन्द्र’ और ‘गुलज़ार’ हैं यह गुलजार की भी पहली फिल्म है जो फिल्म फिल्म में सहायक निर्देशक के रूप में काम कर रहे थे उन्होंने शुरू में बिमल रॉय को गुलज़ार ने यह कहते हुए गीत लिखने से इनकार कर दिया था कि वह गीतकार नहीं बनना चाहते थे ………..लेकिन इसके बाद गुलजार ने नरमी दिखाई फिल्म के संगीत निर्देशक एस.डी.बर्मन ने उन्हें गाना लिखने के लिए मना लिया और उन्होंने लता द्वारा गाया हुआ गीत “मोरा गोरा आंग लाई ले” पांच दिनों में लिखा…… फिल्म में गुलज़ार ने मोरा गोरा अंग लैले के साथ गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाई है, जो शायद भारतीय सिनेमा के सबसे रोमांटिक गीतों में से एक है क्योंकि यह नायिका के प्यार की पहली झलक व्यक्त करता है ….

मोरा गोरा रंग लई ले, जोगी जब से तू आया, ओ पंछी प्यारे,अब के बरस भेजी को लता और आशा ने अपनी आवाज़ से अमर बना दिया लेकिन मुकेश की आवाज़ में ‘ओ जाने वाले हो सके तो’ और खुद सचिन देव बर्मन की ‘आवाज़ में मेरे साजन हैं उस पार’ फिल्म का आकर्षण है….

फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में बंदिनी को उस वर्ष छ: पुरस्कारों से नवाज़ा गया था सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के शीर्ष पुरस्कारों सहित कुल मिलाकर छह पुरस्कार जीते और इसे अभी भी इसे 1960 के दशक की एक कल्ट फिल्म माना जाता है ….फिल्म की मुख्य शूटिंग मुंबई के मोहन स्टूडियो में हुई थी लेकिन कुछ हिस्से वास्तविक नैनी सेंट्रल जेल यरवदा सेंट्रल जेल और भागलपुर सेंट्रल जेल में शूट हुए थे और कलाइमेक्स का स्टीमर वाला दृश्य वर्तमान झारखंड के साहिबगंज में गंगा नदी के तट पर शूट हुआ था..
वैसे, बंदिनी एक निर्देशक के रूप में बिमल रॉय की आखिरी फिल्म थी लेकिन उन्होंने एक निर्माता के रूप में बिमल रॉय प्रोडक्शंस के तहत एक और फिल्म बेनजीर (1964) भी पूरी की थी…..
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पवन मेहरा
‘सुहानी यादे बीते सुनहरे दौर की ‘✍️
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