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बथुआ!एकदम प्राकृतिक, पौष्टिकता से भरपूर आहार!

Suraj Gaur
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❤️🤍💚बथुआ!
सर्दियां शुरू हुई नहीं कि घर में बथुआ की घुसपैठ हो गई।
बथुआ धरती मां की तरफ से हमारे लिए एक सर्वोत्तम उपहार है।
एकदम प्राकृतिक, पौष्टिकता से भरपूर आहार जो आपको निःशुल्क उपलब्ध होता है।

यूं नवोधुआ नवोधुआ बथुआ मिल जाए तब तो स्वाद सौ गुना अधिक बढ़ जाता है।
शाम को डालिया उठाइए और गेहूं, मटर, चना, सरसों के खेतों में या फिर आलू की मेढ़ो पर, गृह वाटिका में लगी सब्जी की क्यारियों में घूम लिजिए।

आपके उपयोग के लिए पर्याप्त मात्रा में डालिया भर बथुआ मिल जाएगा।

जब हम सब छोटे थे तब सभी सखियों की तीन बजे से ही बथुआ खोटने जाने की प्लानिंग होने लगती थी।
सभी सखी जल्दी जल्दी दोपहर के खाए बर्तन धोकर, घर में झाड़ू लगा कर, लकड़ी कंडा रख कर, सब्जी काटकर, मसाला पीसकर रख देती थी और मसाला पिसते समय ही हरी मिर्च और लहसुन धनिया पत्ती वाला तीखा नमक भी पीसकर कागज में पुड़िया लेती थी।

इधर काम खत्म हुआ उधर मौनी या सिकौहुली उठाई और सबके घर के बाहर वाली सड़क पर खड़ी होकर आवाज लगाई। सभी जनी अपनी अपनी मौनी संभालकर चल पड़ती थीं।

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सबसे पहले गन्ने के खेत से गन्ना तोड़ा जाता और चुहते हुए फिर खेत की तरफ निकलती। जिधर अच्छा बथुआ नर्म नर्म बथुआ देखा उधर ही खोटने के लिए पसर गई।

बथुआ जड़ से उखाड़ कर मुट्ठी भर लेती थी और फिर एक साथ मुट्ठी भर बथुए की जड़ मरोड़ कर तोड़ कर फिर मौनी में रखती थीं ताकि घर जाकर बथुआ साफ करने की आवश्यकता न पड़े।

दोनों समय के भोजन में डालने भर का बथुआ जब सभी खोट लेती थी तब घर की तरफ निकलती थीं।

राह में चलते चलते एक दो मूली उखाड़ी जाती, टमाटर तोड़े जाते, गोभी उखाड़ ली जाती, धनिया पत्ती खोटी जाती ताकि सुबह फिर सब्जी बनाने के लिए इन सब को तोड़ने खेत में न आना पड़े।

राह में किसी के खेत में बोया चना या मटर देखा उधर ही जल्दी जल्दी दो गाल भर कर चने पत्ती का साग खोट कर मुंह में डाला साथ में लाया तीखा नमक डाला और खा लिया।

मूली उखाड़ी थी गेहूं सींचने के लिए चल रहे ट्यूबेल के गर्म गर्म पानी में मूली धोई और घर से लाए नमक संग एक दो मूली वही बैठकर निपटा दिया।

यूं हम सिर्फ बथुआ खोटने नहीं जाते थे बल्कि इसी बहाने ढेर सारी मस्तियां करने भी जाते थे।

सर्दियों में तैयार सरसों बथुआ न जाने कितने घरों की अर्थ व्यवस्था को भी सुधार देता था। थोड़ी सी उड़द दाल डाली और ढेर सारा बथुआ डालकर सगपहिता बना दिया जिससे दाल की काफी बचत हो गई।

सरसों साग और बथुआ मिलाकर साग बनाया तो सब्जी खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ी और बचत हो गई।

जब से बथुआ उगना शुरू होता है तबसे लेकर बथुआ में फूल बीज जब तक नहीं आ जाते हैं तब तक इसका साग और सगपहिता बनाकर खाया जाता है।
सारी सर्दियां हमारे भोजन का रंग हरा ही मिलता है।

पहले तो बथुआ का सिर्फ साग या सगपहिता ही बनता था अब तो लोग इसका पराठा, पूड़ी भी बनाते खाते हैं जो काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट होती है सुबह के नाश्ते का बेहतरीन विकल्प होता है।

(धन्यवाद )🙏🏻 सूरज गौर😊

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