धर्म

बच्चों की परवरिश….By-फ़ारूक़ रशीद फ़ारुक़ी

Farooque Rasheed Farooquee

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. बच्चों की परवरिश
औलाद की मोहब्बत में बहुत बड़ा इम्तिहान है। मां-बाप अगर अपनी औलाद का रिश्ता अल्लाह और रसूल (स०) से नहीं क़ायम करते, उनकी दीनी तरबियत नहीं करते तो वह अपनी औलाद पर ज़ुल्म करते हैं। अपने बच्चों को यह बताना चाहिए कि ज़िन्दगी का मक़सद अल्लाह और अल्लाह के रसूल (स०) के हुक्मों पर अमल करना है। अफ़सोस की बात है कि हमारी कोशिश यह होती है कि हमारे बच्चे दुनिया का इल्म हासिल करें। बच्चों को बताया जाता है कि वह ऐसा ओहदा हासिल करें जिसमें उन्हें बहुत दौलत मिले, बहुत इज़्ज़त और अख़्तियार मिले, ख़ूब रिश्वत मिले। ऐसी परवरिश का नतीजा यह होता है कि बच्चों को सही राह कभी नहीं मिल पाती।

मां-बाप को यह अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि उनके दीनदार बच्चों का वुजूद उनके लिए हमेशा के सवाब का ज़रिया बनेगा। वही बच्चे अल्लाह के दरबार में नजात यानी बख़्शिश की वजह बनेंगे जिनकी इस्लामी तरबियत की गई होगी। बच्चों को यह समझाएं कि दीन को दुनिया के उसूलों पर नहीं दुनिया को दीन के उसूलों पर चलाना है। बच्चों के दिल में यह बात उतर जाए कि आख़िरत सबसे बड़ी सच्चाई है और दुनिया आख़िरत में कामयाबी हासिल करने के लिए इम्तिहान देने की एक जगह है। इम्तिहान के कमरे में कोई एशो-आराम की ज़रूरत महसूस नहीं करता।

बच्चों की परवरिश अगर इस्लामी नहीं है तो क़यामत के दिन बच्चे अपने मां-बाप को अपनी गुमराही की वजह बताएंगे और अल्लाह से अपने मां-बाप की शिकायत करेंगे। आप बच्चों की ख़ुशी के लिए अपना वक़्त और अपना माल ख़र्च करते हैं उन्हें दुनिया में कामियाब बनाते हुए ख़ुद बूढ़े हो जाते हैं। आपके हाथ क्या आता है? यही कि जब आप मर जाएं तो ये बच्चे आपकी नमाज़-ए-जनाज़ा भी ना पढ़ सकें, क़ब्र पर फ़ातिहा तक ना पढ़ सकें। दुआ-ए-मग़फ़िरत का तरीक़ा भी ना जानते हों! अगर यह मोहब्बत है तो कैसी मोहब्बत है? अगर यही अंजाम है तो कितना अफ़सोसनाक अंजाम है? आज ही से बच्चों की इस्लामी तरबियत का इरादा कर लें और सारे रिश्ते सिर्फ़ अल्लाह के वास्ते रखें।

(फ़ारूक़ रशीद फ़ारुक़ी)