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फुलवारी!

अरूणिमा सिंह
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फुलवारी!
खेत, खलिहान, बगिया, गृह वाटिका के बाद घर की सबसे जरूरी फुलवारी होती है!
फूलों का शौक रखने वाले इन्हें घर के दरवाजे के सामने, दुआर के आरी आरी (किनारे किनारे), घर की तरफ जाने वाली कच्ची राह पर, मन्दिर के चारों ओर, तुलसी मैया के आस पास, भोले बाबा के थान के किनारे, पेड़ो के चारों तरफ इत्यादि सभी जगहों पर अद्धे ईंट को गाड़ कर सुंदर सी क्यारी बनाकर फुलवारी बनाए रखते हैं।

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इन घरों के पास से गुजरो तो घर के सम्पन्न होने का एहसास अनायास ही हो जाता है। ये संपूर्ण घर मन्दिर समान लगते हैं।
जिन्हें फूलों का इतना अधिक शौक नहीं होता है उनके भी नल के पास, भोले बाबा के थान के पास या अन्यत्र इधर उधर जगहों पर पीले, गहरे कत्थई रंग, नारंगी रंग के प्रजाति वाले गेंदा फूल तो उगे, लगे मिल ही जाएंगे।

एक तो ये गेंदा फूल में बीजों की अधिकता होती है जो इधर उधर झड़ जाते हैं और उपयुक्त जलवायु व नमी पाकर स्वत उग आते हैं और पनप जाते हैं।

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जब ये उग ही आते हैं तो गृह स्वामी इन्हें नहीं उखड़ते हैं आखिर फूल भला किसे नहीं भाते हैं!
यूं भी प्रतिदिन सुबह नहाने के बाद सूर्य देवता और भोले बाबा को जल अर्पित करते समय इन फूलों की आवश्यकता पड़ती है।
गांव में गुड़हल, पीले कनेर, गेंदा फूल, गुलाब, बेला, मोगरा, रातरानी, चम्पा , दसबजिया जैसे फूल, तुलसी मैया, मरूवा, नींबू घास, पुदीना जैसे औषधीय पौधे तो आपको मिलेंगे ही मिलेंगे।

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जिन्हें पेड़ पौधों का शौक है उनके घर की फुलवारी में तो अब तमाम प्रकार की रंग बिरंगे पत्तियों वाले सजावटी पौधे, सजावटी फूल भी मिलेंगे।
आप कभी फूलों की दुकान के पास से गुजरिए। फूल तो आपको उनका मूल्य चुकाकर खरीदने पर ही मिलेंगे परन्तु ईश्वर के द्वारा बांटी गई, उन फूलों में डाली गई सुगंध का मूल्य तो फूल दुकान के मालिक भी नहीं ले सकते हैं वो आपको उधर से गुजरते हुए बिन मूल्य चुकाए ही मिल जाएगी।
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अरूणिमा सिंह

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