नई दिल्ली:14 मई 2018 की तारीख दुनिया के इतिहास में एक स्याह दिन के रूप में लिखी जाएगी क्योंकि अमेरिका ने अपने इज़रायली दूतावास का उदघाटन येरुशलम में दुनिया को ठेंगा दिखाते हुए किया जिसके परिणाम में फिलिस्तीनी मुसलमानों विरोध प्रदर्शन किया जिसमें ढाई हज़ार के लगभग लोग घायल और 58 शहीद होगए हैं।
इस मानव नरसंहार पर अब दुनियाभर में बेचैनी फैल गई है तुर्की ने तीन दिवस्य राष्ट्रीय शोक की घोषणा कर दी है और शुक्रवार को तुर्की के राष्ट्रपति बड़ा ऐलान करेंगे,अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) गाजापट्टी सीमा पर फिलीस्तीनी प्रदर्शनकारियों और इजरायली सेना के बीच हिंसक झड़पों पर संज्ञान लेते हुए आपात बैठक बुलाने जा रहा है।
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर संवाददाताओं से बातचीत में यूएन में फिलीस्तीन के स्थाई पर्यवेक्षक रियाद मंसूर ने कहा कि यह बैठक संभावित रूप से अगले 24 घंटों के भीतर होगी. मंसूर ने कहा, “हम इजरायली सेना द्वारा नागरिकों पर बलप्रयोग की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं.”
#BREAKING: UN Security Council to hold emergency meeting on escalating Israeli-Palestinian conflict pic.twitter.com/eXxLhQoYaz
— China Xinhua News (@XHNews) May 14, 2018
58 फिलीस्तीनी नागरिकों की हुई मौत
मंसूर ने कहा कि इस हिंसा में 585 फिलीस्तीनी नागरिकों की मौत हो गई, जिसमें आठ से 16 साल की उम्र के बच्चे भी शामिल हैं. इसके साथ ही 2500 से अधिक लोग घायल हो गए।
अमेरिका भी कर रहा है शांति बनाने के लिए मेहनत
अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों ने सोमवार (14 मई) को कहा था कि यरुशलम में अमेरिका का नया दूतावास खोलने को लेकर अरब देशों में नाराजगी के बावजूद वे इजरायली-फिलिस्तीनी शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर कड़ी मेहनत कर रहे हैं. दूतावास खोलने की पूर्व संध्या पर विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा कि उन्हें दशकों से चल रहे संघर्ष को खत्म करने के प्रयासों में सफलता हासिल करने की उम्मीद है, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन ने कहा कि इससे शांति प्रकिया आसान चाहिए।
वॉशिंगटन में फिलिस्तीनियन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख हुसाम जमलत ने इसे ‘‘रंगभेद’’ की ओर एक और कदम बताया. अन्य अरब देशों की राजधानियों में फिलिस्तीनी लोग विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं. पोम्पिओ ने कहा कि वह इस बात से अवगत हैं कि आने वाले दिनों में क्षेत्र में अमेरिकी दूतावासों और नागरिकों की सुरक्षा पर खतरा पैदा हो सकता है.