पार्सटुडेः ग़ज़्ज़ा में नरसंहार की शुरुआत के बाद से, इस्राईली शासन ने कम से कम 103 पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को मार डाला है। इनमें से ज़्यादातर लोग ऐसी स्थिति में मारे गए हैं कि जब वे यह कोशिश कर रहे थे कि ग़ज़्ज़ा में होने वाले जघन्य अपराधों को दुनिया के सामने पेश कर सकें। वहीं कुछ लोगों को उनके घरों में निशाना बनाया गया और उनके साथ-साथ उनके परिवार वालों को भी मौत के घाट उतार दिया गया।
जानबूझकर किए जा रहे पाश्विक हमलों और विनाशकारी परिस्थितियों के बावजूद, सैकड़ों पत्रकार और मीडियाकर्मी अभी भी अपने फ़र्ज़ को पहचानते हुए ग़ज़्ज़ा से रिपोर्टिंग कर रहे हैं और दुनिया को इस्राईल और उसके समर्थक आक़ाओं द्वारा किए जाने वाले ज़ुल्मों से आगाह कर रहे हैं। यह उन्ही बलिदानी और निडर पत्रकारों की मेहरबानी है कि हम ग़ज़्ज़ा में घटने वाली घटनाओं की वास्तविकता को बाहर से देख पा रहे हैं। साथ ही पश्चिमी मीडिया की उन झूठी और बेबुनियाद ख़बरों को चुनौती दे सकते हैं जो आम तौर पर इस्राईली शासन के समर्थन में समाचार कवर करते हैं।
फ़िलिस्तीनियों के साथ ग़ैर इंसानी सुलूक
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा है कि फ़िलिस्तीनियों का अमानवीयकरण (dehumanization) यह एक ऐसी साफ़ और मुख्य हथकंड़ा है कि जिसे पश्चिमी मीडिया के ज़रिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। पश्चिमी मीडिया इस तरह के बर्बतापूर्ण और हैवानियत से भरे जघन्य अपराधों को कि जो फ़िलिस्तीनियों पर हो रहे हैं उसे सही दिखाने के लिए सबसे पहला काम यही करता है कि किसी भी तरह से फ़िलिस्तीनियों का अमानवीयकरण कर दिया जाए। जब उनके इंसान होने पर ही हम शक पैदा कर देंगे तो फिर उनपर होने वाले सभी ज़ुल्मों को आसानी के साथ सही दिखा सकेंगे।
नरसंहार की शुरुआत के बाद से, इस्राईली मंत्रियों और राजनेताओं द्वारा कई आधिकारिक बयान, इंटर्व्यू और सोशल मीडिया पोस्ट किए गए हैं जो फ़िलिस्तीनियों के अमानवीयकरण को प्रदर्शित करते हैं। 7 अक्टूबर, 2023 के बाद के दिनों में, ज़ायोन शासन के राष्ट्रपति “इसहाक हर्ज़ोग” ने कहा कि न केवल हमास , बल्कि, हिंसा के लिए “एक राष्ट्र” ज़िम्मेदार है, और इस्राईल उनसे लड़ेगा। 9 अक्टूबर, 2023 को इस्राईली रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने फ़िलिस्तीनियों को “मानव जानवर” कहा और कहा कि इस्राईली सेना “उसी के अनुसार” कार्य कर रही है। 16 अक्टूबर, 2023 को इस्राईली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस्राईली केनेसेट (संसद) में एक आधिकारिक भाषण में कहा था कि, (This is a war between the children of light and the children of darkness) “यह जंग प्रकाश के बच्चों और अंधेरे के बच्चों के बीच है।” इस्राईली प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि “यह युद्ध मानवता और जंगल के क़ानून के बीच का है।”
उपनिवेशवाद के श्वेत बच्चे
यह शब्द गहरी जड़ें रखता है जो श्वेत या सफ़ेद लोगों के अधिकारवाद और कोलोनियल शासकों की सत्ता से संबंधित है।
वास्तव में, यह भाषा एक समानता रखती है जो दक्षिण अफ्रीका में सफेद अल्पसंख्यक द्वारा बहुसंख्यक काले लोगों के संदर्भ में और ब्रिटिश द्वारा हिंदुओं के संदर्भ में, और व्यापक रूप से, विशेषज्ञों द्वारा पूरे विश्व में शासकों के संदर्भ में उपयोग किया गया है। वास्तव में, यह वही भाषा है जिसका उपयोग दक्षिण अफ़्रीक़ा में श्वेत अल्पसंख्यकों द्वारा काले बहुमत के संदर्भ में, अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों के संदर्भ में, और अधिक व्यापक रूप से, दुनिया भर के शासकों द्वारा स्वदेशी लोगों के संदर्भ में किया जाता है।
हत्या और जनसंहार को मनोरंजन बनाना
फ़िलिस्तीनियों का अमानवीयकरण करने के उद्देश्य से इस्राईली सैनिकों ने सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो और तस्वीरें शेयर की हैं कि जिसमें उनके द्वारा फ़िलिस्तीनियों पर किए जा रहे बर्बतापूर्ण अपराधों को साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। इन वीडियो में, ज़ायोनी सैनिकों को अक्सर ख़ुशी-ख़ुशी फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ युद्ध अपराध करते हुए देखा जा सकता है, और उन्हें “अमानव” कहा जाता है।
एक फ़िल्म में, एक ज़ायोनी सैनिक अपनी दो वर्षीय बेटी को जन्मदिन एक “धमाका” तोहफ़े के तौर पर दिया। कुछ सेकंड बाद, उनके पीछे एक फ़िलिस्तीनी आवासीय इमारत में विस्फोट हो गया।
एक दूसरी वीडियो में देखा जा सकता है कि इस्राईली सैनिक कैसे फ़िलिस्तीनियों के खाने-पीने के सामान को ऐसी स्थिति में जला रहे हैं कि जब फ़िलिस्तीन का बच्चा-बच्चा भुखमरी का शिकार है। केवल इतना ही नहीं, उन फ़िलिस्तीनियों का भी मज़ाक उड़ाते हुए दिखाया गया है कि जिनके कपड़े उतरवा दिए गए, जिनकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई है और एक साथ बंदी बनाकर रखा गया है।
ऐसी स्थिति में अब वे जो लोग इस्राईली शासन का समर्थन करते हैं वे भी इन वीडियो को शेयर करने की वजह से इस्राईली सैनिकों की बेशर्मी से चिंतित दिख रहे हैं। मिसाल के तौर पर यहां तक कि इस्राईली समर्थक ब्रिटिश निर्माता पियरे मॉर्गन ने भी कहा: “इस्राईली सैनिक इस प्रकार की संवेदनशील चीज़ें करते हुए ख़ुद की वीडियो क्यों बना रहे हैं?” “जब इतने सारे बच्चे ग़ज़्ज़ा में मारे जा रहे हैं, तो यह उन्हें निर्दय दिखाता है।” यहां ऐसा साफ़ मालूम होता है कि मॉर्गन इस्राईली सैनिकों द्वारा किए जाने वाले जघन्य अपराधों को लेकर चिंतित नहीं हैं, बल्कि उनके द्वारा बनाए गए वीडियोज़ के शेयर होने से चिंतित हैं।
पश्चिमी मुख्य स्ट्रीम मीडिया
इस्राईली राजनेताओं और ज़ायोनी सैनिकों द्वारा फ़िलिस्तीनियों का अमानवीयकरण पश्चिमी मुख्य स्ट्रीम मीडिया में भी मौजूद है। इसका एक ताज़ा और स्पष्ट उदाहरण थॉमस फ्रीडमैन का न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए लिखा गया एक ऑर्टिकल है, जिसका शीर्षक है “अंडरस्टैंडिंग द मिडिल ईस्ट थ्रू द एनिमल किंगडम।” पशु साम्राज्य के माध्यम से मध्य पूर्व को समझना। अपने ऑर्टिकल में, फ्रीडमैन ने पश्चिम एशियाई क्षेत्र की पूरी आबादी की तुलना विभिन्न कीड़ों से की है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना शेर से की है। वह इन शब्दों के साथ अपने ऑर्टिकल को ख़त्म करता है कि “कभी-कभी मैं सीएनएन देखते समय मध्यपूर्व के बारे में सोचता हूं। वैसे अन्य समय में, मैं एनिमल प्लैनेट को प्राथमिकता देता हूं”
यह बहस पश्चिम एशिया के व्यक्ति को एक असंस्कृत और क्रूर समूह के रूप में प्रस्तुत करता है जो पश्चिमी सभ्यता के हमले की प्रतीक्षा में है और उनमें शैतानी इरादे हैं, और इसे अमूल्य मानता है।
40 बच्चों के सिर काटने का महाझूठ!
फ़िलिस्तीन के बारे में पश्चिमी मीडिया के तअस्सुब का आख़िरी निशानी यह है कि वह इस्राईल की हर करतूत और अपराध को सही ठहराने की कोशिश करता है। पश्चिमी मीडिया की यह भी कोशिश होती है कि इस्राईल के ज़रिए फैलाए जाने वाले झूठ को इस तरह पेश करे कि जैसे वह सच ही है। यह 7 अक्टूबर के बाद स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां सीएनएन, फ्रांस24 और द इंडिपेंडेंट जैसे प्रमुख मीडिया प्लेटफार्मों के पत्रकारों ने हमास के जियालों द्वारा 40 बच्चों के सिर काटने की कहानी पर बड़े पैमाने पर रिपोर्ट की। कई पत्रकारों ने अपना झूठ उजागर होने के बावजूद अपनी मूल रिपोर्ट वापस नहीं ली। हां कुछ ने केवल इतना ही लिखा कि इन दावों की सच्चाई के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है।