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फ़लस्तीनियों को ग़ज़ा से निकालकर मिस्र और जॉर्डन में बसाया जाना चाहिए?

ग़ज़ा से फ़लस्तीनियों को बाहर निकालने और दूसरी जगह ले जाने के मुद्दे का पांच प्रमुख अरब देशों ने विरोध किया है.

इस मुद्दे पर मिस्र की राजधानी काहिरा में मिस्र, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, क़तर, फ़लस्तीनी प्राधिकरण और अरब लीग के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात हुई है.

बैठक में इन सभी देशों के विदेश मंत्रियों का कहना है कि वो फ़लस्तीनियों को जबरन ग़ज़ा से बाहर निकालने और कहीं और बसाने के ख़िलाफ़ हैं.

इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि फ़लस्तीनियों को ग़ज़ा से निकालकर मिस्र और जॉर्डन में बसाया जाना चाहिए.

फ़लस्तीनी विस्थापित

अब इन देशों के नेताओं का कहना है कि मिस्र और जॉर्डन से ग़ज़ा के लोगों को अपने यहां रखने को लेकर जो बात कही गई है वो सही नहीं है और इससे इलाक़े की स्थिरता के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है.

समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार एक साझा बयान में इन नेताओं ने कहा कि “फ़लस्तीनियों को विस्थापन के ज़रिए एक जगह से निकालने या उन्हें उनकी ज़मीन से निकालने को बढ़ावा देना” फ़लस्तीनी नागरिकों के “अधिकारों का हनन होगा.”

मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फ़तेह अल-सीसी ने कहा कि “फ़लस्तीनी लोगों को उनकी ज़मीन से निकालना अन्याय है और हम इसमें भाग नहीं ले सकते.”

इन नेताओं का कहना था कि वो ट्रंप प्रशासन के साथ काम करने को तैयार हैं ताकि मध्य पूर्व में शांति स्थापित की जा सके और दो राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर इस मुश्किल का हल निकाला जा सके.

विस्थापित

ट्रंप का प्रस्ताव क्या है?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि मिस्र और जॉर्डन जैसे पड़ोसी देश ‘गज़ा की सफ़ाई के लिए’ (क्लीन आउट) फ़लस्तीन के लोगों को अपने देश में रख लें.

ट्रंप ने कहा कि उन्होंने यह अनुरोध जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला से किया है और रविवार को मिस्र के राष्ट्रपति से भी इस संबंध में अनुरोध करने की उनकी योजना है.

ग़ज़ा को “विध्वंस की जगह” बताते हुए ट्रंप ने कहा, “आप शायद डेढ़ लाख लोगों की बात कर रहे हैं, और हम बस उस पूरी जगह को साफ़ कर देंगे.” उन्होंने कहा कि यह क़दम “अस्थायी या “दीर्घकालिक” कुछ भी हो सकता है.

हमास और फ़लस्तीनी प्राधिकरण दोनों ने ट्रंप के इस प्रस्ताव की निंदा की है. वहीं जॉर्डन और मिस्र ने भी ट्रंप के इस विचार को नामंज़ूर कर दिया है.

ट्रंप ने एयरफोर्स वन विमान में पत्रकारों से बात करते हुए यह टिप्पणी की थी.

उन्होंने कहा, “वहां (ग़ज़ा में) लगभग सब कुछ नष्ट हो चुका है और लोग मर रहे हैं. इसलिए मैं कुछ अरब देशों के साथ मिलकर किसी अन्य स्थान पर उनके लिए घर बनाना चाहूंगा, जहां वे शांतिपूर्वक रह सकें.”

यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने मिस्र से औपचारिक रूप से अनुरोध किया है या नहीं, लेकिन मिस्र के विदेश मंत्रालय ने ऐसे किसी भी प्रयास को अस्वीकार कर दिया है.

डोनाल्ड ट्रंप का लम्बा इतिहास रहा है कि वो ऐसे विचार सामने रखते हैं जो कभी पूरे नहीं हो सकते हैं.

द कन्वर्सेशन ने इस मुद्दे पर कुछ विशेषज्ञों से भी बात की है. जैसा कि लुंड यूनिवर्सिटी की करिन अगस्टेम ने बताया, “ट्रम्प के प्रस्ताव को पूरे मध्य पूर्व में अविश्वास के साथ देखा गया है. पूरे क्षेत्र में इसकी व्यापक रूप से आलोचना की गई है क्योंकि यह संभावित ‘दूसरा नकबा’ है.” साल 1948 में इसराइल के एक देश के तौर पर एकतरफा घोषणा के बाद फ़लस्तीनियों का विस्थापन हुआ था जिसे अल नकबा कहा जाता है.

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का प्रस्ताव ‘जातीय सफ़ाए के समान होगा.’

वाशिंगटन डीसी के अरब सेंटर में फ़लस्तीन-इसराइल कार्यक्रम के प्रमुख यूसुफ़ मुनैयर ने इस सप्ताह की शुरुआत में अल जज़ीरा से कहा कि ट्रंप के “अपमानजनक” बयान की निंदा की जानी चाहिए क्योंकि यह सभी मानदंडों और बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करता है.

मुनैयर ने कहा, “ट्रंप हर तरह की बातें कहते हैं.” उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान को संदेह की दृष्टि से देखा जाना चाहिए.

एयरफोर्स वन पर अलग-अलग टिप्पणियों में ट्रंप ने कहा कि उन्होंने इसराइल को दो हज़ार पाउंड के बम की आपूर्ति पर पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन की लगाई गई रोक को हटा दिया है.

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “इसराइल ने इसके लिए भुगतान किया है और वे लंबे समय से इसका इंतज़ार कर रहे थे.”

अमेरिका अब तक इसराइल को हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, जिसने उसे दुनिया की सबसे तकनीकी रूप से आधुनिक सेनाओं में से एक बनाने में मदद की है.

लेकिन ग़ज़ा में युद्ध के कारण अमेरिका से इसराइल को हथियारों की आपूर्ति कम करने या बंद करने की मांग फिर से उठने लगी, क्योंकि इस क्षेत्र में अमेरिकी हथियारों से काफ़ी विनाश हुआ है.

काहिरा में अरब देशों की बैठक

अरब देशों का विरोध

मिस्र के विदेश मंत्रालय ने इस योजना का विरोध किया है, “चाहे वह लोगों को बसाने, ज़मीन पर कब्ज़ा करने या फ़लस्तीनियों को विस्थापित कर उनको अपनी ज़मीन से बेदखल करने के अस्थायी या दीर्घकालिक तरीके़ के तौर पर हो.”

जॉर्डन के विदेश मंत्री ने कहा कि उनका शासन फ़लस्तीतियों को विस्थापित करने के मुद्दे को नामंज़ूर करने के लिए “दृढ़ और अटल” है.

अरब न्यूज़ के मुताबिक़ काहिरा में हुई बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में सऊदी अरब, मिस्र, जॉर्डन, क़तर, संयुक्त अरब अमीरात, फ़लस्तीनी प्राधिकरण और अरब लीग के विदेश मंत्रियों और अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के कदम से क्षेत्र में स्थिरता को ख़तरा होगा, इससे संघर्ष बढ़ेगा और शांति की संभावनाएं कमज़ोर होंगी.

अरब मंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र के साथ एक अंतरराष्ट्रीय बैठक आयोजित करने की मिस्र की योजना का भी स्वागत किया, जो ग़ज़ा के पुनर्निर्माण पर केंद्रित होगा, जो इसराइल और हमास के बीच 15 महीने के युद्ध के दौरान बुरी तरह तबाह हो गया है. हालांकि इस बैठक के लिए अभी तक कोई तारीख़ तय नहीं की गई है.

7 अक्तूबर 2023 को हमास ने इसराइल पर हमला किया था, जिसमें क़रीब 1200 लोग मारे गए थे और 251 लोगों को बंदी बना लिया गया था. उसके बाद से शुरू हुए युद्ध को रोकने के लिए इसराइल और हमास के बीच हुए समझौते के बाद ग़ज़ा में युद्धविराम लागू है.

ग़ज़ा में हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि इसराइल के हमलों में 47,200 से अधिक फ़लस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें से अधिकांश आम नागरिक हैं.

ग़ज़ा के 20 लाख लोगों में से अधिकांश पिछले 15 महीनों के युद्ध में विस्थापित हो गए हैं, और ग़ज़ा का ज़्यादातर बुनियादी ढांचा नष्ट हो गया है.

संयुक्त राष्ट्र ने पहले अनुमान लगाया था कि ग़ज़ा में 60% संरचनाएं क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुकी हैं और इनको फिर से बनाने में में दशकों लग सकते हैं.

रफ़ाह सीमा
हमास ने क्या कहा

ग़ज़ा में ही हमास के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य बासेम नईम ने बीबीसी को बताया, “ग़ज़ा पट्टी में हमारे फ़लस्तीनी लोगों ने बिना अपनी ज़मीन छोड़े 15 महीने तक मौत और विनाश को सहन किया. इसलिए वो किसी भी प्रस्ताव या समाधान को स्वीकार नहीं करेंगे, भले ही यह पुनर्निर्माण के नाम पर अच्छे इरादे से किया जाए, जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के प्रस्तावों में घोषित किया गया है.”

उन्होंने कहा, “जिस तरह हमारे लोगों ने दशकों से विस्थापन और वैकल्पिक मातृभूमि की सभी योजनाओं को विफल किया है, उसी प्रकार वे ऐसी योजना को भी विफल करेंगे.”

फ़लस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने ग़ज़ा पट्टी से फ़लस्तीनियों को विस्थापित करने के मक़सद से बनाई गई किसी भी योजना की कड़ी निंदा की और इस पर असहमति जताई है.

ट्रंप की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर, दक्षिणी शहर ख़ान यूनिस में विस्थापित व्यक्ति अबू याह्या रशीद ने कहा, “हम ही अपने भाग्य और अपनी इच्छाओं का फैसला करते हैं. यह ज़मीन हमारी है और हमारे पूर्वजों की ऐतिहासिक संपत्ति है. हम इसे मरने के बाद ही छोड़ेंगे.”

दशकों से चली आ रही अमेरिकी विदेश नीति में ग़ज़ा को मुख्य हिस्सा बनाकर फ़लस्तीनी राष्ट्र के निर्माण की बात कही गई है. हालांकि इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू इसे ख़ारिज कर चुके हैं.

हालाँकि ग़ज़ा के लोगों को पड़ोसी देशों में भेजने के विचार को नेतन्याहू सरकार के कट्टरपंथी दक्षिणपंथी सदस्य लंबे समय से आगे बढ़ा रहे हैं.

उत्तरी ग़ज़ा

ज्यूविश पावर पार्टी के नेता और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतमार बेन-ग्वीर ने कहा कि वो “ग़ज़ा से जॉर्डन और मिस्र में लोगों को स्थानांतरित करने की पहल के लिए” ट्रंप की सराहना करते हैं.

बेन ग्वीर ने हाल ही में ग़ज़ा युद्ध विराम के विरोध में अपने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.

उन्होंने एक्स पर लिखा, “प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से हमारी एक मांग स्वैच्छिक इमिग्रेशन को बढ़ावा देना है.”

वर्तमान इसराइली वित्त मंत्री, अति-दक्षिणपंथी बेज़ेलेल स्मोत्रिक ने भी कहा है कि फ़लस्तीनियों को पड़ोसी देशों में प्रवास करना चाहिए ताकि ग़ज़ा में यहूदी बस्तियां फिर से स्थापित हो सकें.

द कन्वर्सेशन के मुताबिक़ सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन की लियोनी फ़्लेशमैन के अनुसार, यह जोड़ी अरब विरोधी विचारधारा और यहूदी लोगों के उस अधिकार के मसीहाई विश्वास पर यक़ीन करती है, जिसे वो “ग्रेटर इसराइल” कहते हैं.

यह एक यहूदी राज्य को संदर्भित करता है जिसमें वेस्ट बैंक भी शामिल होगा, जिसे वे “यहूदिया और सामरिया” कहते हैं. साथ ही इसमें ग़ज़ा, जॉर्डन, लेबनान, मिस्र, सीरिया, इराक़ और सऊदी अरब का हिस्सा भी शामिल है.

फ्लेशमैन बताते हैं, “वेस्ट बैंक और ग़ज़ा पट्टी बाइबिल के समय में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के स्थल थे और कई इसराइली राजवंश का घर थे. बाइबिल में, भगवान ने अब्राहम के वंशजों को यह भूमि देने का वादा भी किया है.”

फ्लेशमैन लिखते हैं कि यही कारण है कि स्मोत्रिक और बेन ग्वीर मानते हैं कि यहूदी लोगों को पूरे ग्रेटर इसराइल को बसाने का अधिकार ईश्वर ने दिया है.

इस तरह की टिप्पणियों से फ़लस्तीन के लोगों में आक्रोश है और इसराइल के साथ एक आज़ाद फ़लस्तीनी राष्ट्र की स्थापना जैसे “दो-राज्य समाधान” के समर्थकों को निराशा होगी.

फ़लस्तीनियों में यह डर है कि राष्ट्रपति ट्रंप के आस-पास के लोग उन्हें मध्य पूर्व की नीति के मामले में अधिक कट्टर दिशा में धकेल रहे हैं.

इस महीने ट्रंप ने ईसाई धर्मावलंबी माइक हकाबी को इसराइल में अगले अमेरिकी राजदूत के रूप में नामित किया है, उन्होंने फ़लस्तीनी राज्य के अस्तित्व के विचार को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया.

उन्होंने एक अमेरिकी टेलीविज़न इंटरव्यू में कहा, “फ़लस्तीनियों को ग़ज़ा में मौक़ा मिला है और देखिए वहां क्या हुआ.”

ग़ज़ा

ग़ज़ा में संघर्ष का इतिहास

साल 1967 में ग़ज़ा इसराइल के कब्ज़े में आ गया था. साल 2005 में इसराइल ने इस पट्टी से अपने सैनिकों और निवासियों को वापस बुला लिया, लेकिन ग़ज़ा के हवाई क्षेत्र, समुद्र तट और सड़कों पर उनका नियंत्रण बना हुआ है.

हकाबी की टिप्पणियां मध्य पूर्व में छह दशकों की अमेरिकी नीति के विपरीत हैं, जिसमें अमेरिका ने लंबे समय तक “दो-राष्ट्र समाधान” की अवधारणा को आगे बढ़ाया है.

अमेरिका ने पहले कहा था कि वह ग़ज़ा या क़ब्ज़े वाले पश्चिमी तट से फ़लस्तीनियों के किसी भी जबरन विस्थापन का विरोध करता है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार बीस लाख से अधिक फ़लस्तीनी शरणार्थी जॉर्डन में रहते हैं, जिनमें से अधिकांश को वहां की नागरिकता मिल चुकी है.

ये लोग क़रीब साढ़े सात लाख फ़लस्तीनियों में से कुछ के वंशज हैं, जो साल 1948 में इसराइल के गठन के समय हुए संघर्षों के कारण अपने घरों से भाग गए थे या उन्हें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था.

इसराइल के साथ युद्ध शुरू होने के बाद से हज़ारों फ़लस्तीनी मिस्र भाग गए हैं, लेकिन उन्हें वहां शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं दी गई है.

इसराइल के कुछ दक्षिणपंथी लोग ग़ज़ा में अपनी बस्तियां बसाना चाहते हैं. इसराइल ने साल 2005 में उनकी एकतरफा वापसी का आदेश दिया था, जिनमें 21 बस्तियों को नष्ट कर दिया गया था और सेना ने क़रीब 9,000 लोगों को वहां से निकाला था.

ट्रंप की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब इसराइल और हमास के बीच युद्ध विराम समझौते को लेकर सहमति बनी है और विस्थापित लोग उत्तरी ग़ज़ा में अपने घरों को लौट रहे हैं.

उत्सुकता से घर लौटने का इंतज़ार कर रहे एक फ़लस्तीनी ने बीबीसी को बताया, “वहां कुछ भी नहीं है. कोई जीवन नहीं है, सब कुछ नष्ट हो चुका है. लेकिन फिर भी अपनी धरती, अपने घर लौटना एक बड़ी ख़ुशी है.”

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