धर्म

पढ़िए “शबे बरात” में क्या करना चाहिए और क्या नही ? शरीयत इस्लामी की रोशनी में

मुफ़्ती उसामा इदरीस नदवी

शबे बरात अल्लाह का दुनिया वालों पर एक इनाम है ये कोई त्यौहार या कोई रस्म नही है जिसको मनाया जाये या मुबारकबाद दी जाये बल्कि ये तो एक इबादत है जिसमें नरक से छुटकारा मिलता है और गुनाहों से मग़फ़िरत होती है,लेकिन मुसलमानों में इस रात को लेकर बहुत सारी कुरीतियों ने जन्म ले लिया है जो अल्लाह से और इबादत से दूर करने वाली हैं,उन तमाम बातों से बचना बहूत ज़्यादा ज़रूरी है।आइये जानते हैं शबे बरात किसे कहते हैं।

शबे बरात किसे कहते हैं ?

रमज़ान से पहले वाले महीने शाबान की पन्द्रहवी रात को शबे बरात कहा जाता है,शबे बरात का मतलब यह है कि अल्लाह इस रात में अपने बंदों को जहन्नुम यानी नरक सर आज़ाद करते हैं उन्हें बरी करते हैं,जिसके बारे में हज़रत मुआज़ बिन जबल रज़ि. ने रिवायत किया है कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि शाबान जब आधा हो जाता है तो रात में अल्लाह अपने सभी बंदों की तरफ मुतवज्जह (आकर्षित) होते हैं और अपनी सारी मख़लूक़ को माफ कर देतेे हैं सिवाय मुशरिक और दिल में किसी के लिये किना(बैर) रखने वाले के (इब्ने माजा)

फ़ज़ीलत वाली इस रात में तमाम बंदों को चाहिए कि वे अल्लाह की तरफ ज़्यादा से ज़्यादा मुतवज्जह होकर इबादत करें और अपने गुनाहों से तौबा करें,हज़रत अली रज़ि ने से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैही व्सल्लम ने इरशाद फरमाया की शाबान की पन्द्रहवीं रात आए तो अल्लाह के हुज़ूर में नवाफिल पढ़ा करो (इब्ने माजा हदीस नंबर 1388) हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहू अन्हा से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि : चार रातों में अल्लाह ख़ैर को खूब बढ़ा देते हैं; मिनजुमला उनमें शाबान की पन्द्रहवीं रात भी है (इब्ने माजा) इसलिए इस रात इबादत का खास एहतमाम किया जाना चाहिए।

शाबान की पन्द्रहवी रात शबे बरात में अल्लाह से अपने गुनाहों से गिड़गिड़ा कर तौबा करनी चाहिए और ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त अल्लाह की इबादत में गुज़ारना चाहिए,चाहे इकठ्ठा होकर ज़िक्र अज़कार किया जाये या अकेले करें बस इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि ये रहमत और मग़फ़िरत वाली रात दुनियादारी की बातों में हाथ से न निकल जाये।

क़ब्रिस्तान जाने का क्या हुक्म है ?

शबे बरात में क़ब्रिस्तान जाने का विशेष आयोजन किया जाता है और कई जगहों पर देखने मे आया है कि वहां दीप जलाये जाते हैं मोमबत्तियां और अगरबत्तियाँ लगाई जाती हैं,इस बारे में मुसलमानों को एक बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलय्ही व्सल्लम अपनी पूरी ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार पन्द्रह शाबान की रात यानी शबे बरात को क़ब्रिस्तान गए हैं और वो भी बिल्कुल चुपके से खामोशी से,यहां तक कि आपके बराबर में हज़रत आयशा रज़ि सोई हुई थी उन्हें तक खबर न हुई और न आप सल्लल्लाहू अलय्ही व्सल्लम ने उन्हें जगाया था,इस लिये मुसलमानों को क़ब्रिस्तान में मैले ठेले लगाना और मोमबत्ती अगरबत्ती जलाने से बचना चाहिए इन फालतू की चीज़ों के चक्कर में अनमोल और क़ीमती रात हाथों से निकल जाती है और खाली हाथ रह जाते हैं।

इस मुबारक और फ़ज़ीलत वाली रात में हुड़दंग बाज़ी करना या आतिशबाजी करने से इबादत करने वालो की इबादत में खलल पड़ता है और खलल डालने वाले गुनेहगार होंगे,बाइकों पर स्टंट करते हुए सड़कों पर घूमने वाले नोजवानों को इस रात में अपना वक़्त मस्जिद या अपने घर में बैठकर इबादत में गुज़ारना चाहिए क्योंकि पता नही ये शबे बारात किसकी ज़िन्दगी में आखरी बार आई हो,और हुड़दंग और हँगामें के चक्कर में सवाब से महरूम रह जाएं।

इस रात में किन किन कामों को करना चाहिए

इस मग़फ़िरत वाली रात में मुसलमानों को अपनी एक एक घड़ी का हिसाब रखते हुए ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करनी चाहिए,जैसे नफिल नमाज़ पढ़ी जाये,तस्बीह पढ़ी जाए,अल्लाह का ज़िक्र किया जाये, क़ुरआन पाक की तिलावत की जाये, इस प्रकार से अपनी रात को गुज़ारना चाहिए,चाय की दुकानों पर बैठकर या चौपाल लगाकर गप्पे नही लड़ाने चाहिए बल्कि मग़फ़िरत और जहन्नुम से छुटकारे के लिये इस रात में ज़्यादा से ज़्यादा इबादात करनी चाहिए।