साहित्य

प्रेम जनमेजय….गंगा के किनारे का छोरा बना व्यंग्य का बादशाह!

जयचंद प्रजापति · ·
गंगा के किनारे का छोरा बना व्यंग्य का बादशाह (प्रेम जनमेजय)
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साहित्य की नगरी इलाहाबाद ने एक से एक महान साहित्यकार का जन्म दिया है। यहां की मिट्टी ऐसी है कि हर विधा का लेखक कवि मिलेंगे। इसी समृद्धशाली शहर में व्यंग्य की दुनिया में एक बादशाहत हासिल करने वाले व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय का जन्म इलाहाबाद के कमला नेहरू अस्पताल में 18 मार्च 1949 को हुआ था।

एक ऐसा व्यक्तित्व अपने आप में समेटे हैं। हिंदी साहित्य का व्यंग्य विधा। व्यंग्य की धार पैदा कर देने में महारथ हासिल करने वाले प्रेम जनमेजय की शुरुआती पढ़ाई इलाहाबाद में हुई, आगे की पढ़ाई दिल्ली से बीए आनर्स, एमए हिंदी तथा पीएचडी सब कर डाले दिल्ली से। 42 साल तक शिक्षण कार्य किया। विदेश भी गए।

प्रेम जनमेजय जी का कहना है। बचपन में साहित्य से कोई नाता नहीं रहा है। मेरे घर में भी कोई साहित्यकार नही था। गुल्ली डंडा खेलने वाले प्रेम जनमेजय के पिताजी दारागंज घूमाने ले जाते वक्त निराला जी का घर दिखाते और कहते कि ऐसे ही तुमको भी बनना है।


’व्यंग्य यात्रा’ मासिक पत्रिका का संपादन भी किया। व्यंग्य को नई ऊंचाईयां देने में लग गए। इनके व्यंग्य की रचना अपने आप में सहजता समेटे रहता है।बहुत ही सादगी में व्यंग्य लिखते हैं कि गहरा असर करता है। अंदर तक झकझोर देती है।

हरिशंकर परसाई की व्यंग्य को खूब पढ़ते और इस तरह से उनके अंदर से व्यंग्य के बाण ऐसे निकले की इलाहाबादी छोरा व्यंग्य के बादशाह हो गए। व्यंग्य श्री सम्मान,हरिशंकर परसाई स्मृति पुरस्कार तथा अट्टहास सम्मान और कई सम्मान पुरस्कार मिले हैं।

इनकी पुस्तकें राजधानी में गंवार,बेशर्ममेव जयते, मैं नही माखन खायो,आत्मा महाठगिनी, डूबते सूरज का अंत आदि कई प्रसिद्ध संग्रह रहे हैं। बाल साहित्य में भी विशेष रुचि रही है। शहद की चोरी, अगर ऐसा होता, नल्लुराम बाल साहित्य की पुस्तके रही हैं।

मासूम से चेहरे वाले व्यंग्यकार अपने आसपास से व्यंग्य निकाल कर रख देते है। इनकी मेहनत रंग लाई है। व्यंग्य को नया मुकाम देने का काम प्रेम जनमेजय ने किया है। हमारे इलाहाबाद के हैं।हम भी इलाहाबाद के हैं। आज उनका जन्मदिन है। उनके जन्मदिन की ढेर सारी बधाई।

…… जयचन्द प्रजापति ’जय’
प्रयागराज