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पुतिन ने अमेरिका को अफ़्रीका से बाहर निकाला

24/25 जून की रात को रूस के अंदर अचानक बग़ावत भड़कने की ख़बरें सोशल मीडिया पर फैल गयी थीं, हालात को देख कर उस वक़्त लग रहा था कि ये पुतिन के लिए बहुत बड़ा मसला खड़ा हो गया है, दिन निकला, शाम हुई और रात आयी,,,रूस में भड़की बग़ावत को दबा दिया गया था, उस वक़्त एक नाम वेगनर का सामने आया था और एक नाम था वेगनर के चीफ प्रॉग्जिन का, बाग़ी कमांडर प्रॉग्जिन ने पुतिन के सामने घुटने टेक दिया थे, जिसके बाद ख़बरें आयी थीं कि वेगनर के लड़ाके और उनका कमांडर बेलारूस कूच कर गए हैं, बीच-बीच में वेगनर आर्मी के पोलैंड पर हमले की तैयारियों को लेकर भी रिपोर्ट आती रही, बता दें कि वेगनर पुतिन की प्राइवेट आर्मी है, जिसका कमांडर प्रॉग्जिन था, बग़ावत के बाद पुतिन ने प्रॉग्जिन की जगह दूसरे व्यक्ति को वेगनर की कमान सौंप दी थी, वेगनर मिडल ईस्ट के सीरिया, यमन, इराक में मौजूद है जहाँ वो अमेरिकी सेना से टक्कर ले रही है, इसके आलावा अफ्रीका के कई देशों में वेगनर का बहुत बड़ा और मज़बूत नेटवर्क फैला हुआ है

दुनियांभर की ख़ुफ़िया एजेंसियां, भारत के कई समाचार चैनल वेगनर ग्रुप और प्रॉग्जिन को लेकर यूक्रेन, पोलैंड से जुडी तैयारियां दिखाते रहे जबकि पुतिन ने प्रॉग्जिन को अफ्रीका से अमरीका का बिस्तर बाँधने के काम पर लगा दिया था, वेगनर ग्रुप ने अफ्रीका में अमेरिका के आखिरी किले को ढा दिया है, अफ़्रीकी देश नाइजेर में सैनिक बग़ावत करवा कर पुतिन ने अमेरिका की कमर तोड़ दी है, ये अमेरिका के ग्रुप का अंतिम देश था जहाँ अब वहां की सेना ने कब्ज़ा कर लिया है, और ये खेल हुआ है रूस और चीन के इशारे पर, जिसे अंजाम दिया है पुतिन की प्राइवेट आर्मी वैगनर ने यूक्रेन की जंग कई मोर्चों पर लड़ी जा रही है, रूस, चीन, साउथ कोरिया, ईरान मिल कर अमेरिका और उसके गठबंधन को बड़े झटके दे रहे हैं

नाइजर के तख्तापलट से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में खलबली

नाइजर में सैन्य कब्जे की घोषणा के बाद से ही क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय समुदाय बौखलाया हुआ है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पश्चिम अफ्रीका में लोकतंत्र और जिहादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

बुधवार को जब सैनिकों ने सत्ता अपने हाथ में लेने का ऐलान किया तो राष्ट्रपति बाजौम ने विरोध करने की कोशिश की लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया. नाइजर में फ्रांस और अमेरिका दोनों का ही सैन्य अड्डा है और डर इस बात का है देश में यह राजनीतिक फेरबदल रूस के हक में जा सकता है. अफ्रीकी संघ ने नाइजर के हालात पर गहरी चिंता जताई है और रविवार को आपातकालीन बैठक बुलाई है.

सहेल पट्टी की अंतिम उम्मीद

सहेल इलाके में नाइजर ने लोकतंत्र की तरफ कदम बढ़ा कर उम्मीद जगाई थी. खासकर 2020 में पड़ोसी देश माली, बुर्किना फासो और चाड में सैनिकों के कब्जे के बाद यह और भी अहम था लेकिन अब हालात नाजुक हैं. बुधवार के कब्जे के बाद सहारा मरुस्थल के दक्षिणी इलाके के चारों देश में सैन्य शासक कुर्सी पर हैं. इसे देखते हुए पश्चिमी देश हरकत में आ गए हैं. नाइजर की सुरक्षा सेनाओं की मदद की जा रही है ताकि अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे इस्लामिक गुटों की सिर उठाने से रोका जा सके.

इस क्षेत्र में जिहादी ताकतों को रोकने के लिए, नाइजर पश्चिमी देशों की आखिरी उम्मीद जैसा था. माली और बुर्किना फासो में सैन्य शासन बहुत तेजी से रूस की तरफ झुकता चला गया. इस प्रक्रिया में यह देश फ्रांस से दूर होते चले गए. अमेरिका का कहना है कि उसने 2012 से नाइजर में सुरक्षा बढ़ाने के लिए 500 अरब डॉलर खर्च कर दिए हैं. इस देश में अमेरिका की मजबूत सैन्य उपस्थिति है जहां उसने हथियारों से लैस ड्रोन की तैनाती भी कर रखी है.

सैन्य सहयोगी

सुरक्षा के मसले पर असंतोष ने माली और बुर्किना फासो में हालात सैन्य शासन तक पहुंचा दिए है. हालांकि राजनीतिक हिंसा और संकट पर नजर रखने वाली संस्था आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट (एसीएलईडी) का कहना है कि इन देशों में मिलिट्री जुंटा आने के बाद से हिंसा और बढ़ी है. नाइजर इस मामले में अपने नागरिकों को बेहतर सुरक्षा दे सका है लेकिन चरमपंथी हमले और लूटपाट होती ही रहती हैं.

पश्चिमी अफ्रीका में फ्रांस ने लगभग एक दशक से घुसपैठ-निरोधी टुकड़ियां लगा रखी हैं लेकिन अब वह नाइजर में अपनी सैन्य ताकत झोंक रहा है. देश में लगभग 1,500 फ्रांसीसी टुकड़ियां हैं जिनके पास ड्रोन और लड़ाकू जहाज हैं. इनका मकसद उस वक्त नाइजर सेना की मदद करना है जब पड़ोसी देशों माली और बुर्किना फासो की सीमाओं के पास किसी तरह की हरकत का पता चले.

यूरोपियन यूनियन ने दिसंबर में तय किया था कि नाइजर में तीन साल के लिए एक सैन्य प्रशिक्षण मिशन लगाया जाएगा जिसमें जर्मनी की सेना हिस्सा लेगी. नाइजर में इटली के भी 300 सैनिक हैं.

लोकतंत्र को झटका

पश्चिमी अफ्रीकी आर्थिक गुट ईकोवास ने माना है कि नाइजर में बदले हालात, लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा झटका है. माली, गिनी, बुर्किना फासो में सेना का कब्जा और गिनी बिसाउ में कब्जे की कोशिश के बाद ईकोवास नेताओं ने इस बात पर जोर दिया था कि इस इलाके में अब लोकतंत्र पर इस तरह का हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा जिसने इस पट्टी को कू बेल्ट के नाम से मशहूर कर दिया है.

नाइजर इस इरादे की और क्षेत्रीय नेताओं की क्षमता की परीक्षा है कि वह किस तरह सैनिकों को तख्ता पलटने से रोकते हैं और उन्हें इस बात के लिए तैयार करते हैं कि वह देश में लोकंतत्र की वापसी होने दें. गिनी बिसाउ में इसी महीने हुई ईकोवास की एक बैठक में नेताओं ने इस बात पर दुख जताया कि संवैधानिक व्यवस्था लौटाने के प्रयासों में लगे मध्यस्थों के साथ माली और बुर्किना फासो का सैन्य शासन सहयोग नहीं कर रहा है. अब नाइजर में यह प्रयास एक नए सिरे से करना होगा.

एसबी/एनआर(रॉयटर्स)