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पीएफ़आई पर प्रतिबंध, और सरकार की आंखों का तारा कट्टरपंथी हिन्दुत्वादी संगठन आज़ाद : रिपोर्ट

बीते दिनों पूरे भारत में पीएफ़आई के कार्यालों पर पड़े छापों और सैकड़ों कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यूएपीए के तहत इस पर प्रतिबंध लगाते हुए दावा किया है कि वे ‘देश में असुरक्षा होने की भावना फैलाकर एक समुदाय में कट्टरता को बढ़ाने के उद्देश्य’ से गुप्त रूप से काम कर रहे हैं।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत सरकार ने कथित रूप से आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठनों से संबंध होने के चलते ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ (पीएफ़आई) व उससे संबद्ध कई अन्य संगठनों पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया है। पीएफआई और उसके नेताओं से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी के बाद सरकार ने यह क़दम उठाया है। आतंकवाद रोधी क़ानून ग़ैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रतिबंधित संगठनों में रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफ), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइज़ेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल विमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन (केरल) के नाम शामिल हैं। पीएफआई की स्थापना 19 दिसंबर 2006 को ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी’ और ‘नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट’ (एनडीएफ) के विलय से हुई थी और एनडीएफ की स्थापना अयोध्या में बाबरी मस्जिद की शहादत और उसके बाद 1993 में हुए दंगों के बाद हुई थी। इस 16 साल पुराने संगठन के ख़िलाफ़ मंगलवार को सात राज्यों में छापेमारी के बाद 150 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया या गिरफ़्तार किया गया था।


समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार भारत के गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है, ‘पीएफआई और उसके सहयोगी खुले तौर पर सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक संगठन के रूप में काम करते हैं, लेकिन वे समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टरपंथी बनाने के लिए एक गुप्त एजेंडा चला रहे हैं ताकि लोकतंत्र की अवधारणा को कमज़ोर कर सकें और देश के संवैधानिक सरकार व संवैधानिक ढांचे के प्रति सरासर अनादर दिखाते हैं।’ अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि पीएफआई के कार्यकर्ता देश भर में कई आतंकवादी कृत्यों और कई लोगों की हत्या में शामिल रहे हैं। यह नृशंस हत्याएं सार्वजनिक शांति भंग करने और जनता के मन में आतंक का शासन पैदा करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए की गईं। वहीं पीएफ़आई पर मोदी सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बाद विवाद भी खड़ा हो गया है। जानकार हल्कों का कहना है कि पीएफ़आई पर लगाए गए सभी आरोप अभी तक केवल आरोप ही हैं कोई भी सबूत ऐसा नहीं मिला है जो इन आरोपों को सिद्ध करता हो, वहीं कट्टरपंथी हिन्दू संगठन जो लगातार और खुले आम भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं और देश में आतंक का माहौल पैद कर रहे हैं उनपर न केवल कोई कार्यवाही नहीं हो रही है बल्कि वे देश की सरकार की आंखों का तारा बने हुए हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी इसपर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि अगर देश में किसी संगठन पर सबसे पहले प्रतिबंध लगना चाहिए तो वह आरएसएस है। जिसपर स्वयं सरदार पटेल ने भी प्रतिबंध लगाया था।