साहित्य

“पितृदोष….BY-#लक्ष्मी कांत पाण्डेय

लक्ष्मी कांत पाण्डेय

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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“पितृदोष….
अचानक फोन की डिस्प्ले पर बेटे का फोन नम्बर नाम सहित देखकर राधिका चोंकी….
फोन…हां फोन से ही तो उसने अपने बेटे होने की खानापूर्ति की जब उसके बाबूजी बीमारियों से अस्पताल मे जीवन मृत्यु के बीच झूल रहे थे…और उनके निधन पर भी फोन से ही….
खैर….
हैलो….
हैलो मां कैसी हो
मे ठीक हूं तुम कैसे हो दीपक बेटा…ठीक हो
अरे कहाँ मां…..सब….
मां ये पितृदोष कया होता है
पितृदोष…. तुझे लंदन में पितृदोष का ध्यान कैसे आया वहां कौन से पंडित जी मिलते है…
ओफ्फो मां….तुम वहीं की वही पडी हो….आवाज मे तल्खी लिए दीपक बोला…
हां…सच कहा …तुम जैसा छोड गये थे मे उसी घेरे में ही हूं…
खैर ये पितृदोष का ख्याल क्यों आया तुम्हें…
मां…..जब से पिताजी दुनिया छोड़ कर गये है यहां बिजनेस मे घाटा ही घाटा हो रहा है घर मे बच्चों का पढाई मे रिजल्ट भी अच्छा नहीं आ रहा…और भी बहुत परेशान रहता हूँ..


तो इंटरनेट पर पंडित जी से बातचीत की तो उन्होंने पितृदोष बताया….
उपाय हरिद्वार में होगा…पंडित जी से बातचीत में बडा बिल आया….
आप ही बता दो पितृदोष और उसका उपाय…
दीपक बेटा ये पितृदोष उन पिता की वजह से होता है जो दिनरात अपने बच्चों की फरमाइश उनकी जरुरतों के लिए खुद को खत्म कर देते है ये सोचकर की वो बच्चे बुढापे मे जब वह चल नही पा रहे होगे तो उनकी लाठी बनेंगे उनके अकेलेपन के साथी बनेगे जैसे वो बचपन में उनकी फरमाइश जिदे पूरी कर रहे है वो बुढापे मे उनकी……
मगर समय और संस्कार नही दे पाने के परिणाम स्वरूप वही बच्चे बडे होकर उसी पिता को आँखे दिखाते हैं उन्हें बीमारी मे अकेले मरता छोड जाते है यहां तक जिन कंधों पर बैठकर वो बच्चे दुनिया देखते है अंत समय में उन्हें कंधा देने भी नही आते…
और अंजान कंधों पर अपनी अंतिम यात्रा पर चले जाते है…
कहकर चुप हो गई….
दोनों और एकदम सन्नाटा सा हो गया….
माँ….माँ….माँ
हां बेटा….और इसका उपाय तुझे क्या बताऊं बेटा…बस अपने बच्चों को समय और संस्कार जरूर देना वरना वो भी एकदिन पितृदोष के अपराधी बन जाएंगे….कहकर सुबक पडी….
वहीं दूसरी ओर भी रोने की आवाजें आ रही थी शायद देर से ही सही दीपक को आज पिता की अहमियत का एहसास उनके खोने के बाद हो गया था….!!
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✍️ लक्ष्मी कांत पाण्डेय