साहित्य

“पापा! ताईजी को शायद कैंसर है…..

Saheli Magazine
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#कहानी- गांठ
“पापा! ताईजी को शायद कैंसर है!” बेटा धड़धड़ाते हुए कमरे में घुसा.
“कहां से चले आ रहे हो रिपोर्टर बने हुए? पता भी है क्या बोल रहे हो..?” मैंने महसूस किया कि दिसंबर की ठंड में भी पसीना मेरी कनपटी भिगो रहा था.
“डाॅक्टर अंकल हैं ना, संतोष अंकल… मिले थे अभी पार्क‌ में! बता रहे थे ताईजी के गले में, यहां पर एक गांठ है छोटी-सी… कोई टेस्ट किया है चार दिन पहले, आज रिपोर्ट आएगी.” बेटे की आंखें भर आई थीं! मैं अपराधबोध से भरा हुआ शून्य में ताक रहा था.
बच्चों के छोटे-छोटे झगड़े, बड़ों के बीच वैमनस्यता पैदा करते हुए एक परिवार को दो भागों, दो घरों में बांट चुके थे; वो भी इस तरह से कि एक ही मकान में रहते हुए, आज भाभी के बारे में दूसरों से ख़बर मिल रही है! संतोष और मैं हमजोली हैं, उसने भी मुझे नहीं बताया… कांपते कदमों से कब हम पति-पत्नी सीढ़ी चढ़ गए, पता ही नहीं चला.
“अरे! ख़ुश रहो, ख़ुश रहो… देखो मधु, कौन आया है.” मैं और सुमन चरण-स्पर्श के लिए झुके, तो भइया भावुक होकर हड़बड़ा गए. भाभी ने आकर सुमन को गले लगा लिया.
“संतू ने बताया सुबह रोहन को कि आज रिपोर्ट आनेवाली है…” मेरा मन भीगा जा रहा था, जी कर रहा था भइया से लिपट जाऊं.
“ओह! अच्छा… वैसे मना किया था संतोष से, किसी को ना बताए, लेकिन पेट का कच्चा है… खैर! रिपोर्ट तो आ गई.” भइया ने क़ाग़जों का एक पुलिंदा मेज़ पर से उठाया.
“भगवान की दया से सब ठीक है… कुछ नहीं निकला रिपोर्ट में…”
मेरे दिल से जैसे एक पत्थर हट गया! सुमन ना जाने कौन-सा मंत्र बुदबुदाती हुई भाभी को लेकर ‘ग्यारह नारियल की मनौती’ पूरी करने निकल पड़ी, मैं भी नीचे जाने लगा.
“तुम कहां चले? ये लोग आ जाएं मंदिर से, फिर नाश्ता करते हैं!” कितने दिनों बाद भइया ने उसी पुराने अधिकार से मुझे टोका!
“संतू के क्लीनिक जा रहे हैं भइया, दो घूंसों में डॉक्टरी निकाल देंगे! फैमिली डॉक्टर है, तमीज़ से रहे… एक ज़रा-सी गांठ को कैंसर बता दिया, हद है!”
“साथ चलेंगे उसको धन्यवाद देने.” भइया मेरे बगल में आकर बैठ गए.
“संतू गांठ को समझ नहीं पाया, वो उसकी ग़लती है, लेकिन ये तो सोचो, उसकी इसी नासमझी ने हमारी आपसी गांठ तो सुलझा दी!” – लकी