साहित्य

पापा का प्रेम जीत गया और ताई जी हार गई

Madhu Singh
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अंतरा आज बहुत नर्वस थी। घर मे काफी मेहमान भी आये हुऐ थे। अंतरा की सगाई थी आज।
अंतरा तू अभी तक तैयार नही हुई तेरी यही आदत मुझे पसन्द नही है।सारा सामान फैला कर रखा है तूने मम्मी गुस्सा कर रही थी अंतरा पर या शायद खुद को काम मे व्यस्त दिखाने की कोशिश थी। अकेली बेटी को आज लड़के वाले देखने आ रहे थे। ऊपर से उनकी हैसियत से भी ऊपर के लोग थे वो। मगर जब सीमा ने राजीव को देखा था तब से ही मन बना लिया था कि यही मेरे घर का दामाद बनेगा। राजीव सीमा की एक सहेली के दूर के रिश्ते का था। फैमिली काफी अच्छी थी। लड़का भी अकेला और जॉब भी करता था सॉफ्टवेयर इंजीनियर था बस मन को बहुत भाया और अपनी पसंद पर कभी शक नही करती थी अंतरा की माँ ।

सुन री बड़ी ताई जी मां को तेज तेज से बुला रही थी मगर माँ पता नही किन ख़यालो में डूबी थी या फिर मेरी बारात तक के सपने देख लिये होंगे। जो भी हो ऐसी माँ मिली तो ख़ुशनसीब बन गयी हूँ मैं! कितनी परवाह करती है बचपन से लेकर आज तक सिर्फ मेरी हर ख़्वाहिशों को पूरा किया। या यूं कहें कभी ये रोना नही रोया की उनको एक बेटा क्यों नही हुआ !

दादी तो कभी कभी बोल भी देती तो माँ दादी को बोल देती कि ये अंतु भी मेरा राजा बेटा ही है दादी को बुरा लगता मगर जब बड़े ताऊ जी के इकलौते बेटे ने उनको घर से निकाल दिया तब से दादी ने कभी कुछ नही बोला मां को या फिर शायद कुछ सवालों के जबाब उनको वक़्त ने दे दिया।उस घटना के बाद ताऊ जी और ताई हमारे साथ शिफ्ट हो गये। मां कभी कभी बताया करती थी कि जब ताई जी को बेटा हुआ था तब दादा जी और दादी ने बहुत बड़ी दावत की थी जिसमे दूर दूर के रिश्तेदार भी बुलाये गये थे और दादा जी ने तो नौटंकी का कार्यक्रम भी आयोजित किया था। ताई और ताऊ को तो पँख ही मिल गये बेटे के रूप में। ताई की मनमानी चल रही थी। विमलेश भैया से 4 साल छोटी थी मैं। विमलेश भैया एकलौते होने का फायदा जमकर उठाते ।और ज़िद तो इतनी करते की कभी कभी दादा जी गुस्सा भी करते मगर ताई जी भइया का पक्ष लेती और हाथ नचाकर कहती घर का चिराग है कुलदीपक है और ये इतनी जमीन ज़ायदाद का क्या फायदा जब अपना बच्चा ही दुखी रहे।फिर पापा की शादी हुई तब मेरी मां यानी सीमा 19 वर्ष की थी। चूल्हे चौके से लेकर कूटना पीसना भी करती इंटर पास थी उस जमाने मे भी।माँ को उपन्यास बहुत पसंद थे।पापा तब लखनऊ में रहकर पढ़ते थे। हर हफ्ते आते थे तब भी इतना समय नही मिलता कि एक दूसरे से बात भी कर पाते। 1 साल बीत गया पापा की पढ़ाई पूरी हो गयी थी और पापा की नौकरी भी मिल गयी लखनऊ में ही । मां को रोज चिट्ठी लिखते थे। और उन शब्दों में पापा के प्यार को समझने की पूरी कोशिश करती माँ। लेकिन ताई ताऊ चाहते ही नही थे कि पापा भी अपना परिवार आगे बढ़ाए। और ताई को मुफ्त की नौकरानी मिल गयी थी।ऊपर से दादी के ताने कि कहां से ये बांझ बहु ले आये सब।अब दादी को कौन समझाता कि कभी ढंग से बातचीत तक हो नही पाती फिर परिवार का ख्याल कैसे करते। खैर पापा ने दादा जी से एक प्रस्ताव रखा कि वो अपनी पत्नी को भी साथ रखना चाहते हैं।पहले तो कुछ नाराज भी हुए फिर बेटे की खुशी में ख़ुशी ढूंढ़ ली दादी को भी ज्यादा समस्या नही हुई।मगर ताई जी ने खूब हुड़दंग किया। मगर पापा का प्रेम जीत गया और ताई जी हार गई।

यहाँ से शुरू हुआ मां और पापा की ज़िन्दगी का सफर।
उस समय नौकरी तो थी मगर बड़े शहर का खर्चा बहुत अधिक था तो मां बहुत किफायती से घर चलाती । 2 बार दादी भी आई। मां को एक बेटा हुआ मगर किस्मत ने धोखा किया और खून की कमी की वजह से मां को बचा लिया मगर बेटे को नही बचाया जा सका। इतनी दुख की घड़ी में सिर्फ पापा और दादी जी थे जो मां के साथ थे ताई ताऊ को तो मन ही मन जलन हुई जब सुना कि बेटा हुआ है मगर मरा हुआ। ताऊ ताई के नकली आंसू सब पहचान गये। मां को सख्त हिदायत दी गयी थी कि अब कोई संतान हुई तो मां की ज़िन्दगी का कोई भरोसा नही ये सुनकर पापा की आँखों मे आंसू आ गये। धीरे धीरे समय गुजरने लगा अब काफी कुछ बदलाव आ गया था। दादी और मां दोनो लोग काफी मन्नत और मनौती करती रहती । माँ पापा को दूसरी शादी करने को बोलती मगर पापा कुछ नही कहते बस शांत रहते दादी भी कुछ नही बोलती ।शायद उनको भी पता था कि उनकी बहू बांझ नही है। माँ को कई बार चुपके चुपके रोते देखा था पूजाघर में दादी ने। उन्होंने बंटवारा करा दिया ताकि ताई ताऊ की बेइमानी पर उनको शक था। ताऊ जी ने विरोध किया मगर दादी के आगे कुछ नही चली उनकी।उसके बाद दादी दादा का बंटवारा भी किया मगर दोनो लोग मां ने अपने हिस्से में मांग लिया। समय गुजरता गया ।4 साल बीत गए। और एक चमत्कार हुआ माँ प्रेग्नेंट हुई और फिर 9 महीने बाद मेरा जन्म हुआ । सब इसको किस्मत ही समझ रहे थे।पापा मम्मी की प्यारी अंतु मतलब मैं अंतरा इस दुनिया मे आ गयी थी। पापा ने शानदार पार्टी रखी घर मे और सब को निमंत्रण भेजा गया। और ताई ताऊ भी आये पूरे घर के लिए मैं लाड़ली थी। दादा दादी की और माँ पापा तो अक्सर झगड़ जाते थे मेरे लिये पापा कहते मैं इसको गोद लूंगा मां कहती मैं गोद लूंगी। धीरे धीरे मैं बड़ी होके स्कूल जाने लगी और सारा समय दादा दादी के साथ गुजारती। और फिर कालेज गर्ल भी बन गयी। शादी का निमंत्रण आया था ताऊ के घर से विमलेश भैया की शादी थी। हम सब गये वहाँ। घर का माहौल बहुत ही घुटन भरा था।गंदगी और अस्त व्यस्त सामान देख कर दादी के मुंह से निकला महारानी जी को प्रपंच से फुर्सत मिले तब तो घर सवारेगी।10 मेहमानों के सामने शर्मिंदा कर दिया । न कोई खाने पीने की व्यवस्था बस मेकअप और लाली लिपस्टिक से फुरसत ही नही मिलती। मां ने बहुत साथ दिया ताई का। बारात भी निपट गयी हम वापस घर आ गए। कुछ दिन बाद पैसे चोरी हो गए ताई के और उनके घर मे भयानक तमाशा हुआ और उनको घर से निकाल दिया। पापा के समझाने पर वह दोनो लोग हमारे घर रहने आ गए। और मन की कड़वाहट भी कम हो गयी । और दादी का स्वास्थ्य ठीक नही रहता तो बस उनकी आखिरी इच्छा है कि वो कन्यादान कर ले बस इसीलिये आज सगाई का कार्यक्रम चल रहा है। मेरी माँ को डायरी लिखने का शौक है। उनकी डायरी चुपके से पढ़ती गयी और जान भी नही सकी वो।

‘गाड़ी का हार्न सुनकर पापा बाहर निकले और उनके आदर सत्कार में जुट गए। मेरे सास ससुर राजीव( मेरे पतिदेव) उनके दिल्ली वाली मामी मौसी और कुल मिलाकर 8 लोग आये मुझे देखने। बहुत नर्वस थी। मैं चाय लेकर आई उन्होंने बस कुछ खास नही पूछा था मुझसे बस एक सवाल किया सुनकर दिल खुश हो गया वो ये कि हम एक बेटी घर लेने आये हैं जो हमारे साथ ख़ुश रहे और हमारी फैमिली को संभाले। राजीव चुपके से देख लेता अंतरा को शादी भी तय हो गयी।

आज मेरी शादी है मैने भी पूरा मेकअप करवा कर आज दुल्हन के लिबास में हूँ।अपनी सुंदरता पर नाज़ हो रहा था। सभी कार्यक्रम पूरे हुए और सात वचन और फेरे भी। विदाई का वक़्त आ गया सब से बिछड़ने के गम था रोये जा रही थी मैं घर से कुछ दूर ही पहुँच पायी थी और ऐसा लग रहा था कि मेरा सब कुछ छूट गया।

‘मेरे आँसुओ को पोछते हुए बोले कि क्या कोई गलती कर दी मैने जो इतना रोये जा रही हो।और भरोसा करो अंतु मैं कभी भी कोई तकलीफ नही दूंगा तुम्हे । बस इस रिश्ते को बचाये रखना और मेरे परिवार को अपना बना लेना।उनके स्पर्श ने मुझे कुछ पल के लिए सोच के समंदर में गोते लगा रही थी कि एक ब्रेकर आया और मैं राजीव से टकरा गयी।हमारा सफर बहुत ही अच्छा गुजर रहा है। राजीव में मैं कही न कही अपने पापा को ढूंढती हूँ उसके हर फैसले का सम्मान करती हूं।और मुझे गर्व है अपनी मां पे की उन्ही की वजह से हीरे जैसा पति मिला। मैं अपनी गृहस्थी को बखूबी निभा रही हूँ।बेटियों में कभी फर्क न करे। बेटियों को बोझ न समझे !

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