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पवित्र क़ुरान के अनादर के बाद, तुर्किए के कारण स्वीडन की नाटो सदस्यता खटाई में पड़ गई : रिपोर्ट

स्वीडिश विदेश मंत्री टोबियास बिलस्ट्रॉम का कहना है कि पवित्र क़ुरान के अनादर के बाद, नाटो सदस्यता प्रक्रिया के संबंध में तुर्किए और स्वीडन के बीच बातचीत को निलंबित कर दिया गया है।

स्वीडिश विदेश मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि स्वीडन की सरकार, तुर्किए के साथ बातचीत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही थी। और उन्हें अब भी उम्मीद है कि उनके देश की नाटो सदस्यता प्रक्रिया गर्मी के मौसम में पूरी हो जाएगी।

इस बीच, तुर्किए विरोधी प्रदर्शनों और इस्लाम विरोधी कार्यवाहियों पर तुर्किए द्वारा स्वीडन की कड़ी आलोचना के कारण, फ़िनलैंड ने पहली बार घोषणा की है कि वह स्वीडन के बिना ही नाटो में शामिल होने का प्रयास करेगा।

फ़िनलैंड की इस घोषणा से ऐसा लगता है कि वह नाटो सदस्यता के लिए स्टॉकहोम से अलग रास्ता अपना रहा है, ख़ासकर स्वीडन और तुर्किए के बीच बढ़ते तनाव और स्वीडन के भड़काऊ क़दमों ने नाटो में स्वीडन की सदस्यता के लिए अंकारा के सकारात्मक वोट की संभावना को कम कर दिया है।

स्वीडन और फ़िनलैंड ने यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद 2022 में नाटो में शामिल होने का अनुरोध किया था, जिसके लिए इस पश्चिमी सैन्य संगठन के सभी 30 सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक है। तुर्किए भी नाटो का सदस्य है, इसलिए इन दोनों दशों की सदस्यता के लिए उसकी भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

नाटो में स्वीडन और फिनलैंड की सदस्यता के लिए तुर्किए ने कई शर्तें रखी थीं। अंकारा ने विशेष रूप से उन कुर्दों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही की मांग की है, जो इन देशों में तुर्किए के विरुद्ध गतिविधियों में शामिल हैं।

नाटो सदस्यता के लिए तेज़ और आसान प्रक्रिया के बारे में स्वीडन और फ़िनलैंड की शुरुआती धारणा के विपरीत, अब यह स्पष्ट हो गया है कि तुर्किए का गंभीर विरोध एक बड़ी रुकावट खड़ी कर रहा है। विशेष रूप से पिछले दिनों एक प्रदर्शन के दौरान स्टॉकहोम में तुर्क दूतावास के सामने क़ुरान को जलाए जाने की घटना के बाद मतभेद और बढ़ गए हैं। इस घटना के बाद तुर्किए ने स्वीडन के साथ जारी बातचीत की प्रक्रिया को रोक दिया था।

स्वीडिश सरकार ने दोनों देशों के बीच संबंधों पर इस आक्रामक और अपमानजनक क़दम के प्रभाव को कम करने की एक कोशिश भी की। स्वीडिश प्रधान मंत्री ने इस अपमानजनक कृत्य के बाद कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं, लेकिन धार्मिक पवित्र पुस्तकों को जलाना एक बहुत ही अपमानजनक कार्य है। लेकिन उनके इस बयान से साफ़ ज़ाहिर हो गया कि स्वीडन सरकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बहाने, इस्लाम विरोधी कृत्यों और इस्लामोफ़ोबिया को बढ़ावा देना जारी रखेगी।