धर्म

पवित्र क़ुरआन पार्ट-51 : नमाज़, इंसान को गुनाहों से पाक करने और ईश्वर की ओर से क्षमा दिलाने का साधन है?!

फ़ातिर का अर्थ चीरने वाला है और यहां पर फ़ातिर का अर्थ पैदा करने वाला है और इसकी गणना महान ईश्वर की विशेषताओं में होती है।

महान ईश्वर इस सूरे की दूसरी आयत में फरमाता है ईश्वर जो दयालुता लोगों के लिए खोल दे उसे कोई रोकने वाला नहीं है और जिसे वह रोक ले तो उसके बाद उसे कोई जारी करने वाला नहीं है वह अत्यंत प्रभुत्वशाली और तत्वदर्शी है।“

हर प्रकार की दया व कृपा का स्रोत महान ईश्वर है और वह जिसे भी इसका योग्य पाता है उसे अपनी दया व कृपा का पात्र बनाता है और जहां ज़रूरत होती है वहां अपनी कृपा का द्वार खोल देता है। अगर पूरी दुनिया के लोग मिल जायें और उस द्वार को बंद करना चाहें जिसे महान ईश्वर ने खोल दिया है तो नहीं बंद कर सकते। इसी प्रकार उसने जिस द्वार को बंद कर दिया है पूरी दुनिया के लोग मिलकर उसे खोलना चाहें तो नहीं खोल सकते।

रहमत व दया का अर्थ विस्तृत है और इसमें भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों आयाम शामिल हैं। यही कारण है कि इंसान कभी देखता है कि उसकी ओर समस्त विदित द्वार बंद हैं परंतु साथ ही यह एहसास भी करता है कि ईश्वरीय कृपा के द्वार खुले हुए हैं अतः वह प्रसन्न और खुशहाल होता है यद्यपि वह जीवन की कठिनाइयों में ग्रस्त ही क्यों न हो। ठीक इसके विपरीत इंसान कभी विदित रुप में समस्त द्वार अपनी ओर खुला देखता है परंतु ईश्वरीय कृपा के द्वार उसकी ओर बंद होते हैं और यह आभास करता है कि पूरी दुनिया उसके लिए एक अंधेरी जेल में परिवर्तित हो गयी है। यह वह चीज़ है जिसका विश्व के बहुत से लोग आभास करते हैं।

बहरहाल पवित्र कुरआन की इस आयत का अर्थ इंसान को इस प्रकार की शांति प्रदान करता है कि वह समस्त कठिनाइयों का सामना करता है और वह किसी भी समस्या व कठिनाइ से नहीं डरता है और न ही किसी भी सफलता पर घमंड करता है।

पवित्र कुरआन का यह सूरा हमें महान ईश्वर की प्रशंसा, उसकी महानता और उसकी असीम शक्ति की याद दिलाता है। इसी प्रकार यह सूरा हमें उस महान ईश्वर की याद दिलाता है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया है और वह सबको रोज़ी देता है। महान ईश्वर सूरे फ़ातिर की तीसरी आयत में कहता है हे लोगो! उन नेअमतों को याद करो जिन्हें ईश्वर ने तुम्हें दिया है क्या ईश्वर के अतिरिक्त कोई और है जो आसमान और ज़मीन से तुम्हें आजीविका देता है?”

महान ईश्वर सूरे फ़ातिर की चौथी आयत में महत्वपूर्ण बात की ओर संकेत करता और फरमाता है ”प्रलय, हिसाब किताब, स्वर्ग और नरक ईश्वर के वे वादे हैं जिनकी उपेक्षा नहीं की जायेगी तो तुम्हें दुनिया की ज़िन्दगी धोखा न दे और इस दुनिया की धोखा देने वाली चीज़ें ईश्वर के वादे से तुम्हें निश्चेत न कर दें। इसी तरह इस सूरे की छठी आयत सबको चेतावनी देती है कि निश्चित रूप से शैतान तुम्हारा दुश्मन है तुम भी उसे अपना दुश्मन समझो। जब इंसान इस बिन्दु से निश्चेत हो जाता है कि शैतान उकसाता है तो उसका निश्चेत हो जाना उसके ग़लत रास्ते पर चले जाने का कारण बनता है। सूरे फ़ातिर की नवीं आयत में महान ईश्वर फरमाता है “ईश्वर वह है जिसने हवाओं को भेजा है ताकि बादलों को चलायें। फिर हम उन्हें मुर्दा ज़मीनों की ओर ले गये और उनके माध्यम से हमने मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा किया। प्रलय इसी प्रकार है।“

वास्तव में हवाओं का चलना, जीवनदायक वर्षा का होना और मुर्दा ज़मीनों का ज़िन्दा होना सब एक नियत कार्यक्रम के अंतर्गत है और यह इस वास्तविकता का गवाह है कि इन सबके पीछे एक महान शक्ति है। सूरे फ़ातिर की दसवीं आयत अनेकेश्वरवादियों की बड़ी ग़लती की ओर संकेत करती है और वह यह है कि वे अपनी इज़्ज़त को मूर्तियों से मांगते हैं। इस आयत में महान ईश्वर कहता है जो इज़्ज़त चाहता है तो सारी इज़्ज़त ईश्वर के लिए है।“ यानी ईश्वर जिसे चाहे इज़्ज़त दे क्योंकि वास्तविक इज़्ज़त उसी के पास है। इसी तरह इस आयत में अच्छी बात , अच्छे कार्य और अच्छे विश्वास को इज़्ज़त प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है और ये वे चीज़ें

हैं जो इंसान को ऊपर उठाती हैं। यह वही परिपूर्णता और विकास का मार्ग है। उसके बाद इस आयत में कहा गया है कि जो लोग षडयंत्र करते हैं उनके लिए कड़ा दंड है और अर्थहीन प्रयास उन्हें तबाह कर देगा और वे कहीं नहीं पहुंच सकेंगे। सूरे फ़ातिर की १२वीं और १३वीं आयत महान ईश्वर की असीम शक्ति की ओर संकेत करते हुए कहती है” दो समुद्र समान नहीं हैं यह एक समुद्र है जिसका पानी मीठा है और दूसरे समुद्र का पानी खारा है परंतु तुम दोनों समुद्रों से ताज़ा मांस खाते हो और उनसे साज- सज्जा की चीज़ें बाहर निकलती हैं और तुम उन्हें पहनते हो और तुम नावों को उनके अंदर देखते हो जो लहरों को चीरते हैं ताकि तुम ईश्वर की नेअमतों से लाभ उठा सको और शायद तुम उसका आभार व्यक्त करो।“

इसी प्रकार सूरे फ़ातिर की १३ वीं आयत के एक भाग में भी महान ईश्वर की असंख्य नेअमतों के एक भाग की ओर संकेत किया गया है ताकि इंसान को अवगत कराके महान ईश्वर के आभार के लिए प्रेरित किया जा सके।

महान ईश्वर इस आयत में कहता है” वह रात को दिन में प्रविष्ट करता है और दिन को रात में प्रविष्ट करता है उसने सूर्य और चंद्रमा को काम पर लगा रखा है। प्रत्येक, एक नियत समय को पूरा करने के लिए चल रहा है वही ईश्वर तुम्हारा पालनहार है उसी का शासन है उससे हटकर जिन्हें तुम पुकारते हो वे एक तिनके के भी मालिक नहीं हैं।“

ये सारी चीज़ें इंसान के फायदे के लिए हैं और वे मानव जीवन के विभिन्न प्रकार की नेअमतों व विभूतियों का स्रोत हैं। सूरज, चांद और तारे सब अपनी नियत कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं और इन सबका नियत कक्षा में चक्कर लगाना महान ईश्वर के होने का बेहतरीन प्रमाण है।

सूरे फ़ातिर की १५वीं आयत में महान ईश्वर कहता है हे लोगो तुम सब लोगों को ईश्वर की आवश्यकता है और केवल ईश्वर है जो आवश्यकता मुक्त और प्रशंसनीय है।

वास्तव में पूरे ब्रह्मांड में एक ही हस्ती है जो हर प्रकार की आवश्यकता से मुक्त है और वह महान व सर्वसमर्थ ईश्वर है। समस्त इंसान ही नहीं बल्कि ब्रह्मांड की हर वस्तु को महान ईश्वर की आवश्यकता है क्योंकि केवल वही है जो हर आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है। उसे किसी ने पैदा नहीं किया है बल्कि उसने हर चीज़ को पैदा किया है और उसे किसी भी चीज़ की आवश्यकता नहीं है। वह इस सीमा तक प्रदान करने वाला और दयालु व कृपालु है कि वह हर प्रशंसा का पात्र है। इस आधार पर हमें उसकी उपासना करके परिपूर्णता का मार्ग तय करना चाहिये और उसका सामिप्य प्राप्त करना चाहिये। सूरे फातिर की १९वीं से २२वीं तक कि आयतों में विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से इस बात को बयान किया गया है कि मोमिन और काफिर बराबर नहीं हैं। पवित्र क़ुरआन में उदाहरणों के माध्यम से मोमिन और काफिर में अंतर को बयान किया गया है। इन आयतों में कहा गया है कि देखने और न देखने वाले बराबर नहीं हैं, अंधकार और प्रकाश एकसमान नहीं हैं, शीतल छांव और गर्म हवा बराबर नहीं हैं और मुर्दा और ज़िन्दा समान नहीं हैं।“

महान ईश्वर पर ईमान इंसान के विचारों और कार्यों को प्रकाशमयी बनाता है परंतु कुफ्र व अनेकेश्वरवाद अंधकार है और वह गुमराही की जड़ है। मोमिन ईमान की छांव में शांति व सुरक्षा का आभास करता है और काफिर कुफ्र के कारण असुरक्षा व अशांति का आभास करता है। इसी प्रकार इन आयतों में महान ईश्वर कहता है कि ज़िन्दा और मुर्दा समान नहीं हैं। इन आयतों में विभिन्न उपमाओं के माध्यम से मोमिन और काफिर के भविष्य की एक दूसरे से तुलना की गयी है क्योंकि ईमान, व्यक्ति और समाज को जीवन प्रदान करता है और कुफ्र गुमराही का कारण है। मोमिन आध्यात्मिक ऊंचाई की ओर अग्रसर होता है जबकि काफिर अंधेरे में ही रह जाता है।

सूरे फातिर की २८वीं आयत में महान ईश्वर कहता है कि ईश्वर के बंदों के मध्य केवल विद्वान ही उससे डरते हैं। इसी प्रकार महान ईश्वर सूरे फातिर की २९ आयत में कहता है जो ईश्वर की किताब की तिलावत करते हैं वे नमाज़ क़ाएम करते हैं और जो हमने रोज़ी दी है उसमें से वे गुप्त और खुले रूप से ख़र्च करते हैं और वे उस सौदे की आशा में हैं जिसमें उनको कदापि घाटा नहीं होगा।“

मानो यह आयत विद्वानों के अस्ली रूप को बयान करती है। वे पवित्र कुरआन से प्रेम करते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं। वे ईश्वर के मार्ग में धन खर्च करके ग़रीबों, निर्धनों और वंचितों की सहायता करते हैं। विद्वान इन कार्यों के माध्यम से ऐसे सौदे की आशा में हैं जिसमें उन्हें कदापि घाटा नहीं होगा और वे सफलता प्राप्त करने वाले हैं।

पवित्र कुरआन के सूरे फातिर का अंत इस बयान के साथ होता है कि अगर महान ईश्वर बंदों को उनके किये का दंड देने लगे तो ज़मीन पर कोई भी बंदा बाक़ी नहीं बचेगा परंतु उन सबको नियत समय तक अवसर दिया गया है तो जैसे ही उनकी मौत का समय आ पहुंचता है ईश्वर अपने बंदों की हालत को देखने वाला है।“