धर्म

पवित्र क़ुरआन पार्ट-38 : न्याय वह चीज़ है जिस पर पूरा ब्रह्मांड चल रहा है!

वह अर्थात ईश्वर वही है जिसने दो समुद्रों को एक दूसरे से मिलाकर रखा है, एक का पानी मीठा और दूसरे का खारा और उन दोनों के मध्य एक दीवार बना दिया है कि एक दूसरे से मिश्रित न हों।“

पवित्र कुरआन की इस आयत में उसकी महानता की अदभुत निशानी का उल्लेख है और वह यह है कि दो समुद्र एक दूसरे में मिले हुए हैं पर दोनों का पानी एक दूसरे में नहीं मिलता है। एक समुद्र का पानी मीठा है जबकि दूसरे का खारा है और दोनों के मध्य दिखाई न देने वाली दीवार है जो इस बात की अनुमति नहीं देती है कि दोनों का पानी एक दूसरे में मिल जाये। अलबत्ता आज यह स्पष्ट हो गया है कि यह दीवार वही पानी का गाढ़ापन है जो खारे और मीठे पानी के बीच में है और दोनों पानी के भार में जो अंतर है वही इस बात का कारण बना है कि दोनों एक साथ हैं पर दोनों एक दूसरे में न मिलें।

हम सब जानते हैं कि बड़ी बड़ी नदियों का मीठा पानी समुद्र में गिरता है और समुद्र के किनारे किनारे मीठे पानी का समुद्र बन जाता है और समुद्र के किनारे रहने वाले लोग मीठे पानी का प्रयोग करते हैं। वे समुद्र के किनारे नहरें बनाकर उसके पानी को नियंत्रित करते हैं। उसके पानी से खेतों और बागों की सिंचाई की जाती है। लोग और जानवर पीते हैं। दूसरे शब्दों में पानी से ही जीवन है।

दूसरी ओर दुनिया के समस्त महासागरों में बड़ी बड़ी नदियां गिरती हैं और ये नदियां अपने आस पास के पानी से कम मिश्रित होती हैं और वे हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय करती हैं। इन नदियों में से एक गल्फ स्ट्रीम है। यह नदी सेन्ट्रल अमेरिका के तटों से होकर गुज़रती है और पूरे एटलान्टिक महासागर को तय करके यूरोप के उत्तरी तटों पर पहुंचती है। इस नदी का पानी गर्म है क्योंकि यह नदी कर्करेखा,,, के निकट से गुज़रती है और जो क्षेत्र कर्क रेखा के निकट होते हैं वे गर्म होते हैं। इस नदी का पानी कभी अपने पास वाले पानी के रंग से भी भिन्न होता है। बहरहाल मीठे और खारे पानी के मध्य एक दिखाई न देने वाली दीवार है जो दोनों को एक दूसरे में मिलने नहीं देती है और वह दीवार मीठे पानी का हल्का होना और खारे पानी का भारी होना है।

सूरे फ़ुरक़ान की ६३ से लेकर ७६ तक की आयतों में महान ईश्वर के विशिष्ट बंदों के बारे में बात की गयी है। इन आयतों में महान ईश्वर के विशिष्ट बंदों की निशानियों एवं विशेषताओं की चर्चा की गयी है। अलबत्ता पवित्र कुरआन की इन आयतों में जिन बातों को बयान किया गया है हर इंसान की भलाई व कल्याण निहित है। महान ईश्वर कहता है” दयालु ईश्वर के बंदे वे हैं जो ज़मीन पर अकड़ कर नहीं चलते हैं और जब उनका सामना अज्ञानियों से होता है तो वे उन्हें सलाम करते हैं।“

इस आयत में महान ईश्वर के अच्छे बंदों की सबसे पहली अलामत यह है कि वे अंह से मुक्त होते हैं यानी वे घमंड नहीं करते। चाहे रास्ता चल रहे हों या किसी से बात कर रहे हों या कोई और कार्य। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगर किसी व्यक्ति के अंदर अंह होगा तो वह उसकी बात चीत और रास्ता चलने से स्पष्ट हो जाता है।

महान ईश्वर के अच्छे बंदों की एक विशेषता यह है कि वे विनम्र स्वभाव के होते हैं और विनम्रता उनके ईमान की कुंजी होती है जबकि घमंड व अकड़ कुफ्र की निशानी है। घमंडी लोग ईश्वरीय दूतों की भी बात सुनने के लिए तैयार नहीं होते हैं। वे वास्तविकताओं का मज़ाक़ उड़ाते हैं और उनकी दृष्टि सीमित होती है। यहां प्रश्न यह उठता है कि जो लोग घमंड में चूर हैं क्या वे सत्य के समक्ष नतमस्तक होंगे? ईमान लायेंगे? परंतु मोमेनीन महान ईश्वर के बंदे हैं और उसकी बंदगी की पहली निशानी विनम्रता है और यह विनम्रता उनके पूरे अस्तित्व में समाई हुई है और उसका चिन्ह रास्ता चलने में भी दिखाई देता है।

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम एक स्थान से गुज़र रहे थे। वहां पर उन्होंने कुछ लोगों को देखा जो एकत्रित थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों के एकत्रित होने का कारण पूछा तो लोगों ने जवाब दिया कि यहां पर एक पागल है जिसके पागलपन के कार्यों को देखने के लिए लोग एकत्रित हुए हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने सबको बुलाया और फरमाया क्या लोग चाहते हो कि मैं तुम्हें वास्तविक पागल को बताऊं? सब लोग चुप हो गये और पूरे ध्यान से उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की बात सुनी। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया जो घमंड के साथ रास्ता चलता है और हमेशा अपनी दोनों ओर देखता है और अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता उससे लोग भलाई की अपेक्षा नहीं रखते हैं और उससे सुरक्षित नहीं हैं वास्तविक पागल इस प्रकार का व्यक्ति है परंतु जिसे तुम देख रहे हो यह मात्र एक बीमार है।”

महान ईश्वर के बंदों की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता क्षमाशीलता है। जब अज्ञानी लोग महान ईश्वर के बंदों को बुलाते हैं या उनका मज़ाक उड़ाते हैं या उन्हें कुछ उल्टा सीधा कहते हैं तो उनके उत्तर में महान ईश्वर के बंदे उन्हें सलाम करते हैं। वास्तव में यह सलाम उनकी उपेक्षा और क्षमाशीलता का चिन्ह होता है। उनका यह व्यवहार इस बात का परिचायक है कि वे अज्ञानियों का मुक़ाबला नहीं करते हैं। वास्तव में लोगों के साथ गुज़ारा करना और धैर्य से काम लेना महान ईश्वर के बंदों की अलामत है। वे अज्ञानियों और तुच्छ लोगों से बहस नहीं करते हैं और उनके अज्ञानता वाले कार्यों के मुक़ाबले में बड़प्पन का परिचय देते हैं। स्पष्ट कि है कि क्षमाशीलता के बिना कोई भी इंसान ईश्वरीय रास्ते को तय नहीं कर सकता।

महान ईश्वर पवित्र कुरआन में अपने बंदों की एक अन्य विशेषता के बारे में कहता है” और वे लोग अपने ईश्वर की उपासना में सुबह करते हैं”

महान ईश्वर के बंदों की एक विशेषता यह है कि वे रात के एक भाग को अपने पालनहार की उपासना में व्यतीत करते हैं और अपने हृदय को उसकी याद से नया जीवन व तरुणायी प्रदान करते हैं। महान ईश्वर के भले बंदे रात के उस भाग में उपासना करते हैं जो सुबह से जाकर मिल जाता है। वह महान ईश्वर की उपासना में रुकूअ व सजदा करते हैं और सजदा महान व सर्वसमर्थ के समक्ष विनम्रता का चरम बिन्दु है। वास्तव में सज्दा बंदगी का शिखर बिन्दु है।

दयालु व महान ईश्वर के बंदों की एक अलामत यह है कि वे ईश्वर से डरते हैं और सदैव प्रलय की याद में होते हैं। महान ईश्वर कहता है” वे लोग सदैव कहते हैं कि हे हमारे पालनहार हमें नरक के प्रकोप से सुरक्षित कर कि उसका दंड बहुत कड़ा है क्योंकि वह सदैव रहने वाला बुरा ठिकाना है”

इंसान के अस्तित्व में महान ईश्वर का भय आंतरिक निरीक्षक की भांति है जो इंसान को हर बुरे कार्य से रोकता और उसे नियंत्रित करता है। महान ईश्वर का भय रखने वाला इंसान अपने दायित्वों का निर्वाह करता है चाहे उसे देखने वाला कोई हो या न हो। साथ ही वह यह समझता है कि उसने अपने पूरे दायित्व को सही तरह से अंजाम नहीं दिया है। यद्यपि ईश्वर के बंदे उसकी राह में धन खर्च करने को अपना दायित्व समझते हैं परंतु इस कार्य में वे न तो अपव्यय से काम लेते हैं और न ही कड़ाई से काम लेते हैं। इस कार्य में वे बीच के मार्ग का चयन करते हैं।

महान ईश्वर के अच्छे व भले बंदों की एक विशेषता यह है कि वे ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की उपासना नहीं करते। वे किसी को भी महान ईश्वर का समतुल्य नहीं बनाते हैं। वे उस व्यक्ति की हत्या नहीं करते हैं जिसके खून बहाने को ईश्वर ने हराम करार दिया है। वे व्यभिचार नहीं करते हैं और जो भी ऐसा करेगा उसे कड़ा दंड दिया जायेगा।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें जो इंसान को पाप की ओर उकसाती है वह क्रोध और कामवासना है परंतु महान ईश्वर पर ईमान रखने वाला व्यक्ति अपनी कामवासना और उद्डंडी मन को नियंत्रित रखता है। वह अनेकेश्वरवाद, बलात्कार, हत्या जैसे दूसरे बड़े पापों से दूरी करता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो इसका उल्टा करे यानी इन पापों से दूरी न करे वह कड़े दंड का पात्र बनेगा। साथ ही अगर वह अपने पापों का प्रायश्चित कर ले और भले कार्य अंजाम दे और महान ईश्वर की ओर पलट आये तो महान व कृपालु ईश्वर उसके प्रायश्चित को स्वीकार कर लेगा।

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के भले बंदे पापों वाली सभाओं में भाग नहीं लेते हैं। अगर उनका सामना अज्ञानी लोगों से हो जाता है तो वे बड़प्पन के साथ उनके पास से गुज़र जाते हैं। वास्तव में वे न तो ग़लत व अज्ञानी लोगों की सभाओं में भाग लेते हैं और न ही स्वयं को अर्थहीन कार्यों व बातों में संलग्न करते हैं। महान ईश्वर के भले बंदों की एक अलामत यह है कि वे अर्थहीन कार्यों व बातों से दूर रहते हैं और वे अच्छे व समूचित उद्देश्य प्राप्त करना चाहते हैं और अगर जीवन में उन्हें अर्थहीन चीज़ों का सामना पड़ता है तो वे उस पर ध्यान दिये बिना उसके पास से गुज़र जाते हैं।

पवित्र कुरआन बहुत संक्षेप में महान ईश्वर के भले बंदों की कुछ विशेषताओं को बयान करने के बाद उनके प्रतिदान को इस प्रकार बयान करता है” उन्होंने जो धैर्य किया है उसके बदले में उन्हें स्वर्ग के महल दिये जायेंगे और वे वहां सदैव रहेंगे कितनी अच्छी जगह है।“

इतना अच्छा स्थान मिलने का कारण यह है कि उन्होंने महान व कृपालु ईश्वर की राह में धैर्य से काम लिया। उन्हें स्वर्ग में स्थान दिया जायेगा। स्वर्ग में जाने वाले एक दूसरे को सलाम करेंगे। इसी तरह फरिश्ते भी उन्हें सलाम करेंगे। यहीं नहीं सबसे बड़े गर्व की बात यह है कि महान ईश्वर भी उन्हें सलाम करेगा।