धर्म

पवित्र क़ुरआन पार्ट-37 : न्याय वह चीज़ है जिस पर पूरा ब्रह्मांड चल रहा है!

सूरए मरियम, मक्की सूरा है। इसमें बहुत सी शिक्षाप्रद बातों का उल्लेख किया गया है।

सूरए मरियम में इस मुख्य बिंदु पर विशेष रूप से बल दिया गया है कि संसार का स्वामी ईश्वर है जो अकेला है।

सूरए मरियम की आयत संख्या 41 और उसके बाद वाली आयतों में हज़रत मरियम और हज़रत ईसा की कहानी का उल्लेख करने के बाद इस सूरे के अन्य भाग में हज़रत इब्राहीम के जीवन की कुछ बातों का उल्लेख किया गया है। उन्होंने ने भी अन्य ईश्वरीय दूतों की ही भांति लोगों को ईश्वरीय पहचान और एकेश्वरवाद का निमंत्रण दिया था। इस सूरे में हज़रत इब्राहीम और उनके पिता के बीच शास्त्रार्थ का भी उल्लेख किया गया है। उल्लेखनीय है कि पवित्र क़ुरआन के व्याख्या कर्ताओं के निकट इस बारे में मतभेद पाया जाता है कि आज़र उनके पिता थे या चचा।

हज़रत इब्राहीम ने एकेश्वरवाद का निमंत्रण आरंभ में अपने परिजनों से शुरू किया। इसका एक कारण यह है कि सामान्यतः मनुष्य का प्रभाव अपने परिवार पर अधिक होता है।

वे आज़र को एकेश्वरवाद का निमंत्रण देते हुए कहते हैं कि हे पिता! मुझको एसा ज्ञान दिया गया है जो आपके पास नहीं है अतः आप मेरा अनुसरण करें। आप मेरी बात सुनें ताकि मैं आपका सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन कर सकूं। हे पिता, शैतान का अनुसरण न कीजिए क्योंकि वह सदैव ही कृपालु ईश्वर के आदेशों की अवज्ञा करता है।

अपने निमंत्रण के माध्यम से हज़रत इब्राहीम पूरी मानवता को यह वास्तविकता बता रह थे कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कोई उद्देश्य रखना चाहिए। उसे सही मार्ग का चयन करना चाहिए अन्यथा वे शैतान के चुंगल में फंस जाएंगे। लोगों को किसी का भी अंधा अनुसरण नहीं करना चाहिए। यही कारण है कि हज़रत इब्राहीम, मूर्ति पूजा और अनेकेश्वरवाद के दुष्परिणामों का उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं कि मुझे इस बात का भय है कि एसा न हो कि मनुष्य शैतान का अनुसरण करते हुए पथभ्रष्टता के मार्ग पर बहुत आगे बढ़ जाए जहां से वापस आना संभव न हो।

हज़रत इब्राहीम की तार्किक बातों का आज़र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उन्होंने उचित मार्ग का चयन नहीं किया। हज़रत इब्राहीम की बातों को सुनकर आज़र बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने कहा कि हे इब्राहीम क्या तुमने मेरे ख़ुदाओं से मुंह मोड़ लिया है? यदि तुम अपने इस काम से नहीं रूकते तो में तुमको संगसार कर दूंगा। तुम लंबे समय के लिए मुझसे दूर हो जाओ। हज़रत इब्राहीम ने अन्य ईश्वरीय दूतों की ही भांति बहुत ही धैर्य का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि तुमपर सलाम हो। मैं बहुत ही जल्दी अपने पालनहार से तुम्हारे लिए क्षमा की मांग करूंगा क्योंकि वह सदैव ही मेरे प्रति बहुत दयावान रहा है।

अपने काल के अनेकेश्वरवादियों की ओर से एकेश्वरवाद के संदेश को स्वीकार न करने के कारण अंततः उस समाज से दूरी बना ली। उनके काल के लोग अधिकतर उनके विरोधी हो गए थे जिसके कारण हज़रत इब्राहीम अकेले पड़ गए थे। वे आरंभ से ही एकेश्वरवाद के प्रचारक थे और इस विषय पर वे सदैव ही अडिग रहे।

ईश्वर ने हज़रत इब्राहीम को इसहाक़ और याक़ूब के रूप में योग्य संतान प्रदान की जो ईश्वर के महान दूत थे।

सूरए मरियम की आगे की आयतें, हज़रत मूसा के नबी होने और उनकी निष्ठा की ओर संकेत करती हैं। दूसरे शब्दों में हज़रत मूसा ने हज़रत इब्राहीम का ही मार्ग अपनाया और उसी रास्ते पर वे आगे बढ़े। सूरए मरियम की 54वीं और 55 वीं आयतों में हज़रत इब्राहीम के सुपुत्र हज़रत इस्माईल का उल्लेख किया गया है। इन आयतों में कहा गया है कि इस किताब में इस्माईल को याद करो जो अपने वचनों के प्रति कटिबद्ध थे और ईश्वरीय दूत थे। वे सदैव ही अपने परिजनों को नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने का आदेश दिया करते थे। इन आयतों में इस्माईल की कुछ एसी विशेषताओं का उल्लेख किया गया है जो लोगों के लिए आदर्श बन सकती हैं। वे जो भी वादा करते थे उसे अवश्य पूरा करते थे। वे महान ईश्वरीय दूत थे।

सूरए मरियम की 56वीं और 57वीं आयतों में हज़रत इद्रीस का उल्लेख किया गया है। आयतों में कहा गया है कि इद्रीय को याद करो। वे बहुत ही सच्चे और महान ईश्वरीय दूत थे और हमने उनको उच्च स्थान तक पहुंचाया।

बाद वाली आयत, पिछली आयतों में ईश्वरीय दूतों की विशेषताओं को एक स्थान पर एकत्रित करते हुए कहती है कि वे एसे दूत थे जिनपर ईश्वर ने अपनी अनुकंपाएं उतारी थीं। आयत के अंत में कहा गया है कि हमने जिनका मार्गदर्शन किया और जिनको चुना, वे एसे लोग थे कि जब भी उनके सामने ईश्वर की आयतें पढ़ी जाती थीं, वे धरती पर गिरकर सजदा करते थे और उनकी आखों से आंसू बह निकलते थे।

सूरए मरियम, बाद में एसे गुट का उल्लेख करता है जिन्होंने ईश्वरीय दूतों की उच्च शिक्षाओं से दूरी बना ली थी। सूरे में कहा गया है कि उसके बाद उनके बुरे प्रतिनिधि आए जो ईश्वर की याद से निश्चेत थे। उन्होंने नमाज़ों को अनदेखा किया और अपनी आंतरिक इच्छाओं का अनुसरण किया। यही कारण है कि वे अपनी गुमराही का बदला पाएंगे। इसके विपरीत कुछ एसे लोग थे जिन्होंने पश्चाताप किया, ईमान लाए और अच्छे काम किये। इस प्रकार के लोग स्वर्ग में जाएंगे और उनपर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं होगा।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल में एक अनेकेश्वरवादी ने एक टूटी हुई हड्डी उठाई, उसे हाथ से मसलकर चूरा किया और उसे हवा में उड़ा दिया। इस प्रकार हड्डी का वह चूरा हर ओर फैल गया। इसके बाद उसने मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि देखो यह मुहम्मद, सोचते हैं कि जब हम मर जाएंगे और हमारी हड्डियां इस हड्डी की भांति टूट-फूटकर चूरा हो जाएंगी तो ईश्वर हमें पुनः जीवित करेगा। मैं तो यह कहता हूं कि यह कार्य असंभव है। इसी बीच पैग़म्बर (स) पर एक आयत नाज़िल हुई जिसमें लोगों के मरने के बाद पुनः जीवित किये जाने की बात कही गई है। इस आयत में कहा गया है कि मनुष्य कहता है कि क्या मरने के बाद हमें क़ब्र से जीवित निकाला जाएगा। इसके उत्तर में दूसरी आयत कहती है कि क्या मनुष्य इस वास्तविकता को याद नहीं करता कि हमने उसको इससे पहले बनाया था जब वह कुछ भी नहीं था अर्थात जिसने मनुष्य को पहली बार बनाया था मृत्यु के बाद भी उसे जीवित करने में सक्षम है।

समझदार आदमी को इस प्रकार के प्रश्नों के बारे में निश्चेत नहीं रहना चाहिए। उसे अपनी सृष्टि के बारे में गहन सोच-विचार करके इसका उत्तर प्राप्त करना चाहिए। यदि उसे उत्तर नहीं मिला तो वास्तव में उसने सृष्टि के लक्ष्य को नहीं समझा है। यह आयत, प्रलय के विषय से संबन्धित अन्य आयतों की ही भांति शारीरिक मआद पर बल देती है अर्थात लोगों के मरने के बाद उन्हें प्रलय के दिन पुनः जीवित किया जाएगा।

सूरए मरियम की अन्तिम आयतों में पुनः एकेश्वरवाद का उल्लेख किया गया है। इस सूरे की कुछ आरंभिक आयतों में अनेकेश्वरवादियों के बारे चर्चा की गई है, इसके अंत में अनेकेश्वरवाद की एक शाखा का उल्लेख किया गया है जिसमें ईश्वर के लिए पुत्र की कल्पना को वास्तविक बताया गया है। ज्ञात रहे कि अनेकेश्वरवादी फ़रिश्तों को ईश्वर की बेटियां मानते थे। यहूदी, उज़ैर को ईश्वर का बेटा कहते थे। इसाई, हज़रत ईसा को ईश्वर का बेटा मानते थे। इस प्रकार के विचार एकेश्वरवादी विचारधारा के बिल्कुल विरुद्ध हैं।

यह बात शतप्रतिशत सही है कि ईश्वर के कोई संतान नहीं है। संतान के लिए बहुत से कारकों का उल्लेख किया गया है। इसका एक कारण यह है कि मानव को यह ज्ञात है कि उसकी आयु सीमित है असीमित नहीं साथ ही उसके भीतर अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने के प्रति आंतरिक झुकाव पाया जाता है। इसलिए वह संतान की कामना करता है। दूसरा कारण यह है कि मनुष्य की शक्ति भी सीमित है और उसे सहायता की आवश्यकता है। एक अन्य कारक यह है कि मनुष्य सदैव ही अकेलेपन से भयभीत रहा है।

यह सारी बातें मनुष्य के लिए तो सही हो सकती हैं किंतु ईश्वर के लिए इनमें से किसी की भी कल्पना तक सही नहीं है। न तो ईश्वर अक्षम है और न ही उसकी शक्ति सीमित है। न ही ईश्वर का कोई अंत है और न ही उसके भीतर कोई कमी पाई जाती है। इन सब बातों से अलग संतान होने की स्थिति में ईश्वर का भौतिक होना सिद्ध होता है जबकि यह बिल्कुल सही नहीं है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सूरए मरियम में बहुत से विषयों का उल्लेख किया गया है जिसमें मुख्य रूप से ईश्वर का एक होना और एकेश्वरवाद का विषय है।