धर्म

पवित्र क़ुरआन पार्ट-17 : हे लोगों! निश्चित रूप से तुम्हारी उद्दंडता तुम्हारे लिए ही हानिकारक है और सांसारिक लाभ तो केवल कुछ ही दिनों का है!

वही ईश्वर है जो तुम्हें थल व समुद्र की सैर कराता है, यहां तक कि जब तुम नौका में थे

वही ईश्वर है जो तुम्हें थल व समुद्र की सैर कराता है, यहां तक कि जब तुम नौका में थे और ठंडी एवं सुखद हवाएं उसे लिए जा रही थीं और सारे (यात्री) प्रसन्न थे तो (साहसा ही) एक तेज़ हवा चली और लहरों ने चारों ओर से उन्हें अपने घेरे में ले लिया और उन्होंने सोचा कि मृत्यु ने उन्हें घेर लिया है तो उन्होंने बड़ी ही निष्ठा से ईश्वर को पुकारा (और कहा कि) यदि तू ने इस (संकट) से हमें मुक्ति दे दी तो निश्चित रूप से हम कृतज्ञों में से हो जाएंगे। किन्तु जब ईश्वर ने उन्हें मुक्ति दे दी तो वे पुनः धरती पर उद्दंडता एवं अत्याचार करते हैं। हे लोगों! निश्चित रूप से तुम्हारी उद्दंडता तुम्हारे लिए ही हानिकारक है और सांसारिक लाभ (तो केवल कुछ ही दिनों का है) फिर तुम्हें लौटना तो हमारी ही ओर है तो हम तुम्हें तुम्हारे कर्मों से अवगत कराएंगे।

उक्त आयात में आया है कि वही ईश्वर है जिसने तुम्हें मरुस्थल और समुद्र की सैर करायी ताकि जब तुम नौका में सवार होते हो और हवाएं नौका के सवारों को धीरे धीरे गंतव्य की ओर ले जाती हैं तो सभी प्रसन्न होते हैं किन्तु यदि अचानक भीषण तूफ़ान आ जाए और नौका थपेड़े खाने लगे, मानो वह अपनी आंखों के सामने मौत देख रहे हों और जीवन उनके हाथ से निकल रहा हो।

यह आयत मनुष्य की प्रवृत्ति की गहराई को स्पष्ट करती है किस प्रकार मनुष्य परेशानियों और कठिनाइयों में ईश्वर के समक्ष विनम्र हो जाता है और कहता है कि यदि तूने मुझे इस समस्या से छुटकारा दिला दिया तो मैं तेरा बहुत आभार व्यक्त करूंगा किन्तु जैसे ही तूफ़ान के बादल छटते हैं और वे तट पर पहुंच जाते हैं, पुनः अत्याचार आरंभ करते हैं और ईश्वर को भूल बैठते हैं।

यह संसार से मोह रखने वाले और तुच्छ लोगों का एक सिद्धांत है। जब वे परेशानियों और आपदाओं में घिर उठते हैं और भारी दबाव का उन्हें सामना होता है तो ईश्वर से आशा लगाते हैं और उसने वचन करते हैं कि यदि इस समस्या से छुटकारा मिल गया तो मैं यह करूंगा, वह करूंगा। किन्तु उनकी चेतना क्षणिक होती है और चूंकि इस प्रकार के लोग, संकल्पहीन, ईमान में कमज़ोर और ईश्वरीय अनुकंपओं को भूलने वाले हैं, समस्या के बादल छटते ही फिर से पुराने काम में लग जाते हैं। अलबत्ता जो लोग पापों में कम लिप्त होते हैं सामान्य रूप से इन घटनाओं से उनकी आंखे खुल जाती हैं और वे अपने मार्ग को सुधार लेते हैं। किन्तु ईश्वर के नेक बंदों के मामले तो अलग ही हैं। एक संतुलित व्यक्ति होते हैं और सुख शांति में उतना ही ईश्वर पर ध्यान देते हैं जितना कठिनाइयों और परेशानियों में, क्योंकि वे जानते हैं कि हर अनुकंपा और विभूति जो उन तक पहुंच रही है, ईश्वर की ओर से है।

और हमने बनी इस्राईल को समुद्र पार करा दिया और फ़िरऔन तथा उसकी सेना ने अत्याचार और शत्रुता के इरादे से उनका पीछा किया यहां तक वह डूबने लगा और उसने कहा कि मैं ईमान लाया कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है जिस पर बनी इस्राईल वाले ईमान लाए हैं और मैं नतमस्तक होने वालों में से हूं। (उससे कहा गया) क्या अब? जबकि इससे पहले तूने अवज्ञा की थी कि और तू उद्दंडियों वालों में था। तो आज हम तेरे शरीर को बचाएंगे ताकि तू अपने बाद वालों के लिए निशानी रहे। निसंदेह अधिकतर लोग हमारी निशानियों की ओर से निश्चेत हैं।

फ़िरऔनियों के चंगुल से बनी इस्राईल की स्वतंत्रता के लिए हज़रत मूसा बनी इस्राईल के साथ मिस्र से निकल पड़े। किन्तु फ़िरऔन ने अपनी पूरी सेना के साथ बनी इस्राईल को यातनाएं देने और उनका दमन करने के लिए उनका पीछा किया। ईश्वर के आदेश से हज़रत मूसा ने नील नदी में अपनी लाठी मारी और पानी बीच से दो भागों में फट गया। बनी इस्राईल बहुत आराम से वहां से निकल गये, फ़िरऔन के सैनिक भी बनी इस्राईल का पीछा करते करते नील नदी में उतर गये किन्तु जैसे ही वे बीच में पहुंचे दोनों ओर की लहरें आपस में मिल गयीं और फ़िरऔन के सैनिक लहरों के बीच फंस गये। जब फ़िरऔन ने स्वयं को नदी की लहरों में घिरा हुआ पाया और उसकी समझ में आ गया कि वह डूबने वाला है तो उसने उसी क्षण कहा कि मैं उस ईश्वर पर ईमान लाया जिसके अतिरिक्त बनी इस्राईल किसी और पर ईमान नहीं रखते थे। उसने समझा कि शायद इस काम से वह मौत से बच जाए। यह बात स्पष्ट है कि वह ईमान जो आपदाओं में गिरफ़्तार होने और मौत के समय प्रकट होता है वह आपात ईमान होता है और हर अपराधी व पापी समस्याओं में ग्रस्त होने पर इसे प्रकट करता है। इस ईमान का कोई महत्त्व नहीं है। यही कारण ईश्वर ने उससे कहा कि अब तुम ईमान ला रहे हो? अंततः फ़िरऔन मुक्ति न पा सका और डूब गया। ईश्वर ने लहरों को आदेश दिया कि उसके शरीर को तट पर पहुंचा दे ताकि अगली पीढ़ी के लिए पाठ हो सके।

वर्तमान समय में मिस्र और ब्रिटिश संग्राहलयों में कई फ़िरऔनों के कई शरीर रखे हुए हैं। मिस्र की सरकार ने फ़्रांसीसी प्रोफ़ेसर मोरिस बोकाय सहित समस्त विद्वानों से मांग है कि इस शरीर के बारे में शोध करें ताकि यह स्पष्ट हो कि क्या यह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के काल के फ़िरऔन का ही शरीर है या नहीं ? फ़िरऔन के शरीर पर विभिन्न परिक्षणों के बाद उसके शरीर पर पाये गये नमक के कुछ कणों से यह सिद्ध हो गया कि यह हज़रत मूसा के काल में डूबे हुए फ़िरऔन का ही शरीर है जिसे ममी करके रखा गया था किन्तु जिस वस्तु ने प्रोफ़ेसर मोरिस बोकाय को हतप्रभ कर दिया वह यह था कि यह शरीर, अन्य शरीर की तुलना में अधिक सुरक्षित है? उन्होंने आरंभ में इस प्रकार की चीज़ों को असंभव समझा और उनका कहना था कि मिस्र के प्राचीन काल के लोग मृत शरीर को ममी करने की शैली से अवगत नहीं थे किन्तु मोरिस बोकाय ने जब चिकित्सा विज्ञान से संबंधी एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ़्रेंस में भाग लिया और इस कांफ़्रेंस में एक मुसलमान बुद्धिजीवी से सूरए यूनुस की आयत संख्या 92 सुना, वे इस आयत को सुनकर इतना प्रभावित हुए कि तुरंत ही अपने स्थान से उठे और कहा कि मैं इस क़ुरआन पर ईमान लाया। पवित्र क़ुरआन का गहन अध्ययन के बाद वे अपनी पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं कि क़ुरआन के शिक्षा संबंधी आयामों ने मुझे आश्चर्य के अथाह सागर में डुबा दिया, मैंने सोचा भी नहीं था कि पवित्र क़ुरआन ने विभिन्न विषयों पर इतनी सूक्ष्मता से बाते की हैं। यह ऐसा विषय है कि जो पूर्ण रूप से मानव विज्ञान की खोज और प्रगति के अनुरूप है, जबकि इसकी विषय वस्तु चौदह शताब्दी पूर्व से संबंधित है।

पवित्र क़ुरआन के सूरए यूनुस की आयत संख्या 98 में हज़रत यूनुस और उनकी जाति की घटनाओं को वर्णित किया गया है ताकि वह आने वालों के लिए पाठ हो।

तो ऐसी कोई बस्ती क्यों नहीं है जो (सही समय पर) ईमान लाती कि उसका ईमान उसे लाभ पहुंचाता सिवाय यूनुस की जाति के (लोगों के जो अंतिम समय में ईमान लाए और) हमने सांसारिक जीवन से उनके लिए अपमान जनक दंड को समाप्त कर दिया और एक निर्धारित अवधि के लिए उन्हें संपन्न बना दिया।

इससे पूर्व की आयतों में फ़िरऔनियों के बारे में इस बिन्दु का उल्लेख किया गया थ कि वे अपनी स्वेच्छा से ईमान नहीं लाए और जब उन्हें अपने सामने मौत दिखने लगी तो उन्होंने ईमान प्रकट किया। यह ईमान बहुत देर से था और उसका कोई लाभ नहीं हुआ। किन्तु इस आयत में कहा गय है कि क्यों अतीत की जातियां समय पर ईमान नहीं लाईं ताकि उन्हें ईमान से लाभ पहुंचे ? उसके बाद यूनुस की जाति को अलग कर दिया गया और कहा कि किन्तु यूनुस की जाति ईमान लाई और हमने सांसारिक जीवन से उनके लिए अपमान जनक दंड को समाप्त कर दिया।

हज़रत यूनुस ईश्वरीय दूत थे ताकि बाबिल और नैनवा के लोगों को जो अनेकेश्वरवादी थे और ईश्वर पर ईमान नहीं रखते थे, एकेश्वरवाद का निमंत्रण दे। पवित्र क़ुरआन हज़रत यूनुस की जाति को एक मात्रा जाति के रूप में याद करती है जिसने मार्गदर्शन प्राप्त किया और पथभ्रष्टा से दूर रही। अन्य जातियों में बहुत से गुट ईश्वरीय धर्म की शरण में आ गये किन्तु जो वस्तु हज़रत यूनुस की जाति को अन्य जातियों से अलग करती है वह एक साथ और दंड आने से पहले ही ईमान लाना है।

इतिहास में मिलता है कि जब हज़रत यूनुस अपनी जाति के ईमान लाने की ओर से निराश हो गये तो उन्होंने एक गणमान्य व्यक्ति के सुझाव पर लोगों को बुरा भला कहा किन्तु उन्हीं में से एक बुद्धिजीवी ने हज़रत यूनुस को सुझाव दिया कि निराश मत हों। आप उनके लिए फिर भी दुआ करें और उनके मार्गदर्शन के लिए अधिक प्रयास करें। प्रत्येक दशा में हज़रत यूनुस सहन न कर सके और लोगों को बुरा भला कहने के बाद अपनी जाति के बीच से निकल गये। धीरे धीरे दंड के चिन्ह प्रकट होने लगे किन्त अभी तक दंड के लिए ईश्वरीय फ़ैसला नहीं आया था, उनकी जाति के लोग जिन्होंने उनकी बातों को ध्यान पूर्वक सुना था, उक्त ज्ञानी के पास आये और इस आपदा से छुटकारा पाने का मार्ग पूछा। उन्होंने उस ज्ञानी की बातों पर अमल करते हुए अवसर से लाभ उठाया और उसके नेतृत्व में नगर से बाहर निकल गये। सभी लोगों ने बड़ी विनम्रता के साथ दुआएं शुरु कर दी और प्रायश्चित किया। वे हज़रत यूनुस को तलाश करने के लिए हर ओर गये किन्तु वे उन्हें नहीं मिले।

पवित्र क़ुरआन संकेत करता है कि प्रायश्चित और ईमान, समय पर और निष्ठा व चेतना के साथ था। उनकी दुआओं और प्रायश्चित के परिणाम में प्रकोप की निशानियां दूर हो गयी और वातावरण दोबारा शांत हो गया। हज़रत यूनुस मछली के पेट में रहने की घटना के बाद अंततः अपनी जाति की ओर लौटे और उन्होंने ने भी अपने तन मन से उनका स्वागत किया। यह घटना इस बात को दर्शाती है कि एक जागरूक व निष्ठावान नेता का जनता और राष्ट्र के मध्य कितना प्रभाव होता है। इसके मुक़ाबले में उस ज्ञानी का नकारात्मक प्रभाव है जिसे ज्ञान व चेतना नहीं है। इसीलिए इस्लाम धर्म ने सदैव ज्ञान के साथ ज़िम्मेदारी की भावना को अज्ञानता की उपासना पर प्राथमिकता दी है और ज्ञानियों की प्रशंसा की है।