साहित्य

परिजनों की घोर अनिच्छा के कारण उसका विवाह नहीं हो सका!

Neelam Sourabh
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एक यक्षप्रश्न!
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एक विवाहित पुरुष का किसी से विवाह पूर्व का प्रेम सम्बन्ध था जिससे परिजनों की घोर अनिच्छा के कारण उसका विवाह नहीं हो सका।

एक आदर्श पति की तरह अमुक ने धर्मपत्नी के प्रति अपने सारे कर्तव्य निभाये, साथ ही कठिन परिस्थितियों में अकेली छूट गयी प्रेमिका की आर्थिक व भावनात्मक सहायता भी करता रहा, जिसके जीवन का एकमात्र सहारा अब उसकी बीमार छोटी बहन रह गयी थी। उसने अमुक की सहायता से अपना छोटा सा रोजगार शुरू किया और आत्मनिर्भर होने में सफल हो गयी। अभिभावक की भूमिका निभाते हुए उसने बहन का उपचार करवाया, उसे पढ़ाया-लिखाया, फिर उसे भी आत्मनिर्भर बना उसका ब्याह योग्य वर से कर दिया। अपने जीवन से पूर्ण सन्तुष्ट वह अकेली रहती है, हर सम्भव जरूरतमंदों की सहायता करती व्यस्त रहती है।

अमुक की पत्नी भी अपने भरे-पूरे परिवार में अतिव्यस्त रहती है, साँस लेने की भी फुर्सत नहीं है वाली स्थिति में, चूँकि संयुक्त परिवार की कर्तव्यनिष्ठ आदर्श बहू है। आर्थिक रूप से भले ही आत्मनिर्भर नहीं है किन्तु अपने-आपको खपा कर परिवार में उसने वह ओहदा हासिल कर लिया है कि उसकी इच्छा के विरुद्ध घर में एक पत्ता भी नहीं हिलता।

संयोगवश एक दिन अमुक की पत्नी और प्रेयसी दोनों आमने-सामने टकरा गयीं। दोनों को लम्बे समय से एक-दूसरी के विषय में पता था।

बहस की स्थिति बनने पर दोनों ने पूरे विश्वास के साथ एक-दूसरी से कहा, “अमुक जितना मेरा है न, तुम्हारा तो उसका पासंग भर भी नहीं है!”

आपके अनुसार दोनों में से किसकी बात अधिक सही है और क्यों?

मेरे विचार न पूछें इस बारे में कृपया, मैं अनिर्णय की स्थिति में हूँ अब तक, अतः आपसे पूछा है!
__𝓝𝓮𝓮𝓵𝓪𝓶 𝓢𝓸𝓾𝓻𝓪𝓫𝓱___________
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Photo courtesy:AI

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