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*पत्रकारों दलाली छोड़ो**दलालों पत्रकारिता छोड़ो* : राहुल अग्रवाल का लेख!

Rahul Agarwal

Bureau chief TEESRI JUNG, agra
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*पत्रकारों दलाली छोड़ो*
*दलालों पत्रकारिता छोड़ो*
जो पत्रकार सिर्फ़ अपनी मर्जी से खबर लिखे
अपनी मर्जी से खबर छापे
अपने मनमुताबिक़ खबर ही लगाएँ
सामाजिक खबरों से कोई मतलब न रखें
जहां बात किसी के उत्पीड़न की हो वहाँ अपनी गर्दन झुका ले
निर्दोष के उत्पीड़न फर्जी मुक़दमे पर एसओ के साथ चाय की चुस्कियाँ ले
ग़रीब के पास आज भी रहने को घर नहीं है झोपड़ी में रहने को मजबूर है इनकी आवाज न उठाए
तो ऐसे पत्रकार को ख़ुद को पत्रकार कहने का हक नहीं है।
ऐसे पत्रकारों की वजह से ही आम ग़रीब बेबस इंसान इनको दलाल पत्रकार कहता है। आजकल के पत्रकार सबसे ज्यादा अपना समय थाने में देते है जब कि खबर तो थाने जाए बिना भी मिल जाती है। लेकिन साहब को थाने तहसील की दलाली जो करनी है थाने की दलाली जो करनी है।
गाड़ी का पेट्रोल कैसे निकलेगा
बच्चे की आगरा के बड़े स्कूल की फ़ीस कैसे भरी जाएगी
महीने में दूध का चार हज़ार कहाँ से आयेगा
बाइक की किश्त कहाँ से आयेंगी
यह सब दलाली से ही आएगा।
पत्रकारिता के इस गिरते हुए स्तर से एक बात साफ है
कि पत्रकारिता का पेशा लगातार कलंकित हो रहा है। और ऐसे दलालों की इतनी भी औक़ात नहीं है कि थाना पुलिस को अनैतिक कार्य के लिए रोक सकें इनकी आँखों के सामने झगड़े में पिटने बाला सिर फटने बाला और दूसरा पक्ष पीटने बाला थाने में हँसने बाला मूँछों पर ताव देने वाले का चालान होता है और यह दलाल पत्रकार ख़बर को चटकारा देकर लिखते है पुलिस की पीठ थपथपाते है शाम को एक क्वार्टर का इंतज़ाम करते है क्यों कि बोतल लायक़ तो इनकी औक़ात नहीं है।
धन्य है ऐसे पत्रकार
धन्य है ऐसी पत्रकारिता
अब आम पीड़ितों को चाहिए कि ऐसे पत्रकारों के लिए जूतों की माला तैयार रखें
यह जहां मिले और जब मिले इन्हें जूतों की माला से सम्मानित किया जाए।
*पत्रकार राहुल अग्रवाल*