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“ड्रामा लंबा चौड़ा हुआ पर ठेका अंततः बादशाह के छोटे भाई और दामाद को ही मिला”
चित्र गुप्त ============= बादशाह_वजीर_और_सियार (जनश्रुति) ******************************* सुना है … शाम ढलते ही जब सियारों ने हुक्का हुवाँ शुरू किया तो बादशाह ने वजीर से पूछा – ” सियार क्यों चिल्ला रहे हैं।” वजीर भी स्वतंत्र भारत के नौकरशाह टाइप ही था उसने तपाक से उत्तर दिया। “हुजूर इन्हें ठंड लग रही है इसलिए चिल्ला रहे […]
ई हमार भारतीय संस्कृति को, का होई गवा बा——लेख-जयचंद प्रजापति
जयचंद प्रजापति =========== व्यंग्यात्मक लेख——— ई हमार भारतीय संस्कृति को, का होई गवा बा ——————– हम इलाहाबाद के सिविल लाइन में थोड़ा भारतीय संस्कृति का दर्शन करने के इरादे से साइकिल से निकले तभी एक लेडीस फ्राक में सड़क पर घूम रही थी। हम जिज्ञासावश स्थानीय लोगों से पूछा- ‘ई का है ‘ कुल लोग […]
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे….”गोपालदास नीरज”
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे नींद भी खुली न थी कि हाए धूप ढल गई पाँव जब तलक उठे कि ज़िंदगी फिसल गई पात-पात झड़ गए कि शाख़-शाख़ जल गई चाह तो […]