Shiva Nand Yadav
@shivanandyadaw
नेहरू का बुद्ध प्रेम क्या दर्शाता है?
कुछ दिन पहले मैं नई दिल्ली में स्थित तीनमूर्ति भवन गया था. जो प्रधानमंत्री नेहरू का सरकारी आवास हुआ करता था. लेकिन उनके मरने के बाद भारत सरकार ने इसे ‘नेहरू स्मारक संग्रहालय’ में बदल दिया. इसी परिसर में एक बड़ा पुस्तकालय है. और इसके पीछे एक नई इमारत बनाई गई है जिसे प्रधानमंत्री संग्रहालय कहा जाता है.
प्रधानमंत्री रहते हुये नेहरू ने अपनी अंतिम सांस इस बंगले के जिस कमरे में ली थी. जब मैं उस कमरे में गया तो अवाक रह गया. प्रधानमंत्री नेहरू के बिस्तर के बंगल में एक टेबल पर बुद्ध की फ्रेम में बंद तस्वीर रखी हुई थी. उनके बेड के पीछे भी बुध्द की दो मूर्तियां रखी हुई थी, और बेड के आगे बुद्ध की 12 मूर्तियां विभिन्न मुद्राओं में रखी मिली.
इसी भवन में आगे बढ़ने पर एक कमरा दिखा जिसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री नेहरू अपने कार्यालय के रूप में करते थे. उनके कार्यालय के टेबल पर भी बुद्ध की एक मूर्ति मिली. उसी कमरे में पुस्तकालय के उपर भी एक मूर्ति बुद्ध की मिली. बाकी कोई देवता, पैगंबर, नेहरू के आसपास नहीं दिखाई दिये.
एक कश्मीरी पंडित (ब्राम्हण) परिवार में जन्मे जवाहरलाल नेहरू का धर्म के मामलों में जीवन बहुत ही तटस्थ रहा है. वे अपने समकालीन नेताओं जैसे राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और गृहमंत्री सरदार पटेल से बिल्कुल अलग थे. वे धार्मिक कार्मकांडों और पाखंडों से दूरी बनाकर चलते थे. जबकि सरदार पटेल ने गृहमंत्री रहते सोमनाथ का मंदिर बनवाया था और डॉ राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति रहते हुये काशी में पंडितों के पैर धोये थे.
यही कारण है कि दक्षिणपंथी ब्राम्हणवादी विचारधारा के संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उसकी राजनीतिक शाखा भाजपा हमेशा जवाहरलाल नेहरू पर आक्रामक रहती है. जबकि उसी कांग्रेस के अन्य नेताओं सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ राजेन्द्र प्रसाद और सुभाष चन्द्र बोस को अपना मानती है.
नेहरू अपनी पुस्तक ‘विश्व इतिहास की झलक’ में भी भारत में बौद्ध धर्म के पतन का जिम्मेदार ब्राम्हणों को मानते हैं. नेहरू ने प्रसिद्ध भारतीय मार्क्सवादी व बौद्धिस्ट चिन्तक राहुल सांकृत्यायन की भी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि, राहुल जैसे लोग हर विश्वविद्यालयों में होने चाहिए.
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आरक्षण, जातिय जनगणना, दलितों पिछड़ों वंचितों के तमाम हक व अधिकार को लेकर आलोचना जरूर होती है और होनी भी चाहिए. लेकिन वे ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मणवादी विचारधारा के उतने गुलाम नहीं थे, जितने गुलाम पिछड़े वर्ग से आने वाले सरदार पटेल, कायस्थ जाति से राजेन्द्र प्रसाद और आज के पिछड़े जाति के अगड़े (गैर-ब्राह्मण) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं.
मोदी, पटेल, प्रसाद जैसे गैर ब्राह्मण नेता ब्राम्हणवादी वर्ण-व्यवस्था के आगे नतमस्तक दिखाई देते हैं. हमें नेहरू पर बुद्ध व उनके विचारधारा का कितना प्रभाव पड़ा है, इसका व्यापक अध्ययन जरूर करना चाहिए.
Shiva Nand Yadav
(शोधछात्र, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर)