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नीज़ेर तख़्तापलट : यह ‘युद्ध की घोषणा’ होगी, इलाक़े में रूस वागनर समूह के साथ मिलकर अपना प्रभाव बड़ा रहा है : रिपोर्ट

नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला टिनुबू सीमा पार देश नीज़ेर में तख़्तापलट को पश्चिम अफ़्रीका में लोकतंत्र के लिए एक लिटमस टेस्ट मानते हैं.

महज़ तीन हफ़्ते पहले क्षेत्रीय गुट इकोवास (इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ़ वेस्ट अफ़्रीकन स्टेट्स) की अध्यक्षता संभालने के बाद, उन्हें एक बड़ी विदेश नीति चुनौती का सामना करना पड़ा जब सेना ने नीज़ेर में सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया.

नीज़ेर पश्चिम अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों में कहर बरपा रहे इस्लामी उग्रवादियों के खिलाफ लड़ाई में एक रणनीतिक सहयोगी था.

मई में जब टिनुबू नाइजीरिया के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने बुर्किना फासो, माली और गिनी में तख़्तापलट के बारे में चिंता जताई थी.

उन्होंने कहा था कि आगे तख़्तापलट को रोकने और आतंकवादियों से लड़ने के लिए इकोवास को अपनी क्षेत्रीय ताकतों को मजबूत करने की जरूरत है.

इसलिए जब पिछले सप्ताह नीजेर के राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ूम को तख़्तापलट करते हुए पद से हटाया गया तो उन्होंने रविवार को अपने राष्ट्रपति आवास में पश्चिम अफ्रीकी नेताओं का एक शिखर सम्मेलन बुलाकर त्वरित प्रतिक्रिया दी.

क्षेत्रीय गुट इकोवास नीजेर पर प्रतिबंध लगाने पर सहमत हुआ. नीजेर की बिजली कंपनी के अनुसार, इसके बाद नीजेर की राजधानी नियामी और अन्य प्रमुख शहरों में बिजली गुल हो गई है, क्योंकि नाइजीरिया ने आपूर्ति काट दी है.

वागनर समूह का प्रभाव भी बढ़ रहा

इकोवास ने नीजेर के जुंटा (नेशनल काउंसिल फॉर सेफ़गार्डिंग द होमलैंड) को एक अल्टीमेटम भी दिया कि एक सप्ताह के भीतर निर्वाचित राष्ट्रपति को सत्ता वापस सौंप दें अन्यथा इकोवास संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने के लिए आवश्यक सभी संभावित उपाय करेगा.

उनके बयान में कहा गया है, “इन उपायों में बल का प्रयोग शामिल हो सकता है.”

फरवरी के राष्ट्रपति चुनाव में टिनुबू की अपनी जीत को विपक्षी उम्मीदवारों द्वारा अदालतों में चुनौती दी जा रही है, जो दावा करते हैं कि परिणाम में धांधली हुई थी. टिनुबू खुद को एक डेमोक्रेट के रूप में पेश करते हैं जिन्होंने 1980 के दशक में नाइजीरिया में सैन्य शासन के ख़िलाफ़ अभियान में भाग लिया था.

अफ़्रीकी संस्थान ‘इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी स्टडीज़’ (आईएसएस) से जुड़े नाइजीरियाई विश्लेषक वोले ओजेवाले ने कहा, “मुझे लगता है कि वह इसे (तख़्तापलट) को अपनी लोकतांत्रिक साख के अपमान के रूप में देखते हैं, ख़ासकर ऐसे समय में जब वह इकोवास की अध्यक्षता संभाल रहे हैं.”

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि तख़्तापलट का सीधा असर नाइजीरिया पर पड़ेगा. दोनों देशों की सीमा 1,500 कि.मी. से अधिक दूरी तक फैली हुई है और उनके बीच मजबूत सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध हैं जो औपनिवेशिक युग के पहले चले आ रहे हैं.

उनकी सुरक्षा भी आपस में जुड़ी हुई है. आतंकवादी इस्लामी समूह बोको हराम ने दोनों देशों में हमले किए हैं, जिसके ख़िलाफ़ नाइजीरिया, नीजेर, चाड और कैमरून के सैनिकों से बना एक सैन्य बल लड़ रहा है.

इस सैन्य बल के रणनीतिक और तकनीकी साझेदारों में ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस शामिल हैं. इनके दो सैन्य अड्डे नीजेर में हैं.

साल 2022 में वैश्विक यूरेनियम उत्पाद में चार प्रतिशत के योगदान के साथ नीजेर दुनिया का सातवां सबसे बड़ा यूरेनियम उत्पादक है और अफ़्रीका में नीजेर के पास उच्चतम ग्रेड का यूरेनियम अयस्कर है.

इलाक़े में इस्लामी चरमपंथी सक्रिय हैं और रूस वागनर समूह के साथ मिलकर अपना प्रभाव बड़ा रहा है. ऐसे में न तो इकोवास और न ही पश्चिमी साझेदार यह चाहेंगे कि इन दोनों के हाथ रेडियोएक्टिव पदार्थ लगें.

तख़्तापलट के समर्थन में भी लोग
तख़्तापलट के बाद माली और बुर्किना फासो रूस की ओर चले गए और नीजेर में जुंटा (सैन्य शासन) ने भी यह संकेत दिया कि वह उसी दिशा में आगे बढ़ सकता है.

बीते रविवार को चाड के राष्ट्रपति इदरिस डेबी नीजेर गए और जुंटा से इकोवास के अल्टीमेटम पर ध्यान देने का आग्रह किया.

चाड क्षेत्रीय गुट का सदस्य नहीं है लेकिन डेबी ने रविवार को इसकी बैठक में भाग लिया.

लेकिन जुंटा ने मामले पर नरम पड़ने इनकार कर दिया है.

इसके बजाय, इसने पश्चिम और इकोवास दोनों के ख़िलाफ़ अपनी बयानबाज़ी तेज कर दी है और इसके हज़ारों समर्थक तख़्तापलट का समर्थन करने के लिए रविवार को नीजेर की राजधानी नियामी की सड़कों पर उतर आए. उनमें से कुछ ने फ्रांसीसी दूतावास पर हमला किया और रूस समर्थक झंडे लहराये.

लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि सैन्य अधिग्रहण को नीजेर में बड़ी आबादी का समर्थन प्राप्त है या नहीं. साल 2022 में प्रतिष्ठित रिसर्च इंस्टीट्यूट एफ्रोबैरोमीटर ने नीजेर में एक सर्वे किया था.

सर्वे के मुताबिक़, देश के आधे से अधिक नागरिक अपने देश में लोकतंत्र के काम करने के तरीके से संतुष्ट थे.

सर्वे में शामिल 36 अफ्रीकी देशों में से केवल तंजानिया, ज़ाम्बिया, सिएरा लियोन और मॉरिटानिया को बेहतर लोकतांत्रिक स्वीकृति प्राप्त थी.

हालांकि, सर्वेक्षण में शामिल दो-तिहाई लोगों ने कहा कि जब निर्वाचित नेता सत्ता का दुरुपयोग करते हैं तो सैन्य अधिकारी हस्तक्षेप कर सकते हैं. इस तर्क का इस्तेमाल तख़्तापलट करने वाले लोग और उनके समर्थक अक्सर अपने कार्य को उचित ठहराने के लिए करते हैं.

माली और बुर्किना फासो में जुंटा ने इकोवास को नाइजर में सैन्य हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ चेतावनी दी है. जुंटा ने कहा कि यह ‘युद्ध की घोषणा’ होगी और वे अपने साथी तख़्तापलट करने वाले नेताओं का बचाव करने जाएंगे. इसलिए सैन्य हस्तक्षेप से स्थिति के संघर्ष में तब्दील होने का जोख़िम है.

हालांकि, इकोवास ने पहले कई देशों में गृह युद्धों को ख़त्म करने, पद से हटाए गए राष्ट्रपतियों को बहाल करने या चुनावी हार न मानने वाले नेताओं को मजबूर करने के लिए सेनाएं भेजी हैं. इनमें लाइबेरिया, सिएरा लियोन, गिनी-बिसाऊ और गाम्बिया शामिल हैं.

इस दौरान इकोवास के सैनिकों पर कुछ मामलों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगाए गए थे.

ओजेवाले इस बात से निश्चित नहीं हैं कि इकोवास के पास नीजेर में हस्तक्षेप करने की क्षमता है या नहीं, ख़ासकर जब नाइजीरिया सहित इसे बनाने वाले कई देश अपनी सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.

ओजेवाले कहते हैं, “उनके (इकोवास) पास जो थोड़े से संसाधन हैं, उन्हें कम किया जा सकता है.”

विश्लेषक का मानना ​​है कि दोनों पक्षों के बीच संघर्ष कुछ हासिल नहीं हो सकता है और इलाक़े में मानवीय संकट बिगड़ सकता है.

ओजेवाले ने कहा, ”जनहानि होगी क्योंकि गोलीबारी में लोग फंसेंगे. इस संकट का कूटनीतिक समाधान एक बेहत विकल्प है.”

अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ूम की सुरक्षा को लेकर भी सवाल हैं, जिन्हें जुंटा ने बंदी बना रखा है.

एक अन्य विश्लेषक, जाफ़र अबुबकर का तर्क है कि इकोवास और जुंटा के बीच सैन्य टकराव की स्थिति में वह (राष्ट्रपति) ‘सौदेबाज़ी का साधन’ बन सकते हैं.

उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ूम को जीवित और स्वस्थ रखना जुंटा के सर्वोत्तम हित में है. अगर वे उन्हें मार देते हैं, तो वे बिना किसी वैधता के पूरी तरह से विद्रोही बन जाएंगे.”

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यूसुफ अकिंपेलु
पदनाम,बीबीसी न्यूज़, लेगोस