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निरंकुश इस्राईल पर क्या अब अंकुश लगेगा?

इमाम ख़ामेनेई ने अपनी कई तक़रीरों में इस्राईल को वेस्ट एशिया में अमरीका का पागल पालतू कुत्ता कहा है

पार्स टुडे- पिछले छह महीनों में ज़ायोनियों के बेशुमार अपराध एक तरफ़ और दूसरी तरफ़ इस्राईल के भयानक अपराधों पर देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की संवेदनहीनता बड़ी हैरत अंगेज़ रही है। इसी उदासीनता और ख़ामोश समर्थन के चलते मक़बूज़ा इलाक़ों में इस्राईल का दुस्सासह और क्रूरता बढ़ती चली गई है। इस्राईल की बुनियाद ही साम्राज्यवादी है और इसका ख़ात्मा एक इंसानी और अंतर्राष्ट्रीय ज़रूरत।

पिछले छह महीने में ग़ज़ा में 33 हज़ार 500 से ज़्यादा शहीदों, 75 हज़ार से अधिक घायलों, 7 हज़ार से अधिक लापता लोगों और बहुत बड़े पैमाने पर फैलाई जाने वाली तबाही के बाद भी इस्राईल ने 1 अप्रैल को जो तांडव और विनाशलीला रची वह कई पहलुओं से अध्ययन करने योग्य है और यह ग़ज़ा जंग के बहुत सारे समीकरणों को बदल सकती है। इस दिन इस्राईल ने कई आप्रेशनों में जेनेवा कन्वेंशन, वियेना कन्वेंशन और रोम स्टेट्यूट का एक साथ घोर हनन किया।

1 इस्राईली सेना ने पहली अप्रैल की सुबह एलान किया कि उसने अलशिफ़ा अस्पताल के परिसर में अपना दो हफ़्तों का आप्रेशन मुकम्मल किया और वहां से पीछे हट गई है। अलशिफ़ा अस्पताल के दो हफ़्ते के परिवेष्टन और वहां की जाने वाली कार्यवाही के नतीजे में यह मेडीकल काम्पलेक्स पूरी तरह वीरान हो गया। यह अस्पताल बीमारों और घायलों का सहारा होने के साथ ही ग़ज़ा पर इस्राईल के हमले के बाद से हज़ारों बेघर फ़िलिस्तीनियों का शरण स्थल बन गया था।

इस्राईली सेना के पीछे हटने के बाद अस्पताल के भीतर और बाहर से दर्जनों शव मिले जिनके हाथ पांव बंधे हुए थे और यातनाओं के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे। कुछ के तो अंग टैंकों से कुचल दिए गए थे या धमाकों में उड़ा दिए गए थे।

जो फ़ुटेज प्राप्त हुईं उनके अनुसार बीमारों को दवा, और खाने पीने की चीज़ों से वंचित यूं ही छोड़ दिया गया था।

अलशिफ़ा अस्पताल पर इस्राईली सेना का हमला और वहां आम नागरिकों और मेडिकल स्टाफ़, पत्रकारों, शारणार्थियों को निशाना बनाया जाना जेनेवा के चौथे कन्वेंशन का हनन है जो 1949 में पास हुआ जिसमें कहा गया है कि जंग में आम नागरिकों की रक्षा की जानी चाहिए। कन्वेंशन के आर्टिकल 18 और 19 में इस पर बल दिया गया है और 1977 में पास होने वाले एडिशनल प्रोटोकोल्ज़ में भी इस पर ताकीद की गई है।

2 कुछ घंटों बाद ख़बर मिली कि दमिश्क़ में ईरान की काउंसलेट की इमारत पर इस्राईल के मिसाइल हमले में यह इमारत ध्वस्त हो गई और पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स आईआरजीसी के सात अधिकारी शहीद हो गए जिनमें जनरल सरदार मुहम्मद रज़ा ज़ाहेदी क़ुद्स फ़ोर्स की सीरिया व लेबनान शाखा के कमांडर और उनके डिप्टी मुहम्मद हादी हाज रहीमी भी शामिल थे। हमलें में कई सीरियाई और लेबनानी नागरिक भी शहीद हुए।

यह हमला सीरिया की संप्रभुता पर भी हमला था जो ईरानी काउंसलेट का मेज़बान देश था साथ ही यह डिप्लोमैटिक केन्द्र के भीतर मौजूद ईरानी नागरिकों के ख़िलाफ़ आतंकी कार्यवाही भी थी।

पिछले छह महीनों में इस्राईल ने अपने आतंकी हमलों के ज़रिए जंग का दायरा बढ़ाने की कोशिश में कम से कम तीन देशों सीरिया, लेबनान और ईरान पर हमले किए हैं।

पहली अप्रैल का इस्राईल का हमला वियेना कन्वेंशन का हनन था। डिप्लोमैटिक रिश्तों के बारे में 24 अप्रैल 1963 को पास होने वाले वियेना कन्वेंशन के आर्टिकल 31 के अनुसार डिप्लोमैटिक प्रतिष्ठानों को इम्युनिटी हासिल है।

इस प्रकार की हरकतों पर ख़ामोशी के ख़तरनाक परिणाम हो सकते हैं।

दमिश्क़ में ईरानी काउंसलेट की इमारत ज़ायोनी हुकूमत के हमले के बाद
3 इसी दिन शाम के वक़्त अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठन वर्ल्ड सेंट्रल किचन के 7 कार्यकर्ताओं को जो ग़ज़ा पट्टी में खाना बाट रहे थे वापसी के समय इस्राईल ने हवाई हमला करके शहीद कर दिया। हालांकि इस कल्याणकारी संस्था के सदस्यों की आवाजाही की पूरी जानकारी इस्राईली सेना को दी जा चुकी थी।

संस्था के संस्थापक के अनुसार इस्राईल ने उन्हें बड़े सिस्टमेटिक रूप से चुन चुन कर मारा है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवीय सहायता मामलों के एक अधिकारी ने कहा कि जंग शुरू होने के बाद से इस इलाक़े में 200 से अधिक सहायता कर्मियों की हत्या की गई है। इसमें कोई शक नहीं कि मानवता प्रेमी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को इस तरह क़त्ल करने के पीछे इस्राईल का लक्ष्य मानवीय सहायता कार्य रुकवाना, फ़िलिस्तीनी जनता का अपमान और उन्हें भुखमरी की आग में ढकेलने के अलावा कुछ नहीं है।

इस्राईल का यह क़दम रोम संधि के आर्टिकल 8 बी के अनुसार युद्ध अपराध है और साथ ही इससे अंतर्राष्ट्रीय विवादों में नियमों और कानूनों का उल्लंघन है।

4 इसी दिन इस्राईल की संसद ने अलजज़ीरा एक्ट का मसौदा पास किया जिसे ज़ायोनी प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने अलजज़ीरा टीवी चैनल को उसकी कवरेज की शैली के आधार पर ग़ैर क़ानूनी घोषित करके बंद कर देने के बारे में पेश किया था। इस क़ानून में वैसे तो अलजज़ीरा टीवी चैनल का नाम लिया गया है लेकिन इसके ज़रिए किसी भी विदेशी मीडिया संस्थान पर रोक लगाई जा सकेगी।

हालांकि इससे पहले इस्राईली सेना अलजज़ीरा टीवी चैनल के दो पत्रकारों और एक कैमरामैन को क़त्ल कर चुकी है। जबकि अब तक उसने 147 पत्रकारों का क़त्लेआम किया है। हालिया जंग में इस्राईली सेना ने पत्रकारों के परिवारों को भी निशाना बनाया है। अलजज़ीरा टीवी चैनल की गतिविधियों को रोकने का क़ानून पास करके इस्राईल फ़िलिस्तीनियों के नस्लीय सफ़ाए के भयानक अपराधों से जुड़े साक्ष्यों को सामने आने से रोकना चाहता है।

5 जो बाइडन सरकार ने हालिया दिनों ढाई अरब डालर का सामरिक सहायता पैकेज इस्राईल को दिया जिसमें बम और युद्धक विमान शामिल हैं। यह दरअस्ल अपराध जारी रखने के लिए इस्राईल को अमरीका से ग्रीन सिग्नल भी है। इस पैकेज में 950 किलोग्राम के 1800 बम एमके84, 225 किलोग्राम वाले 500 बम एमके82 भी शामिल हैं जो अलग अलग उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।

इसके अलावा यह भी ख़बरें हैं कि अमरीका की सरकार इस्राईल को एक और पैकेज देने के बारे में औपचारिकताएं पूरी कर रही है। सरकार ने कांग्रेस में एक प्रस्ताव रखा है जिसमें इस्राईल को 50 एफ़-15 युद्धक विमान, हवा से हवा में मार करने वाले 30 मिसाइल बेचने की बात है। यह सौदा 18 अरब डालर का है।

जो कुछ बताया गया उसके मद्देनज़र दुनिया में एक ही शासन है जो दो हफ़्ते तक अस्पताल में बीमारों और शरणार्थियों का क़त्लेआम करने के बाद वहां से बाहर निकलकर गर्व कर सकता है, दोपहर बाद एक पड़ोसी देश में एक अन्य देश के डिप्लोमेटिक इम्युनिटी वाले प्रतिष्ठान पर हमला करके ईरानी, सीरियाई और लेबनानी नगारिकता के लोगों की हत्या कर सकता है और शाम को मानवीय सहायता संस्था के कार्यकर्ताओं पर हमला करके फ़िलिस्तीनी, आस्ट्रेलियाई, पोलिश, ब्रिटिश, अमेरिकन और कनेडियन नागरिकता वाले सहायता कर्मियों को क़त्ल कर सकता है, और उसके बाद एक टीवी चैनल की गतिविधियां रोकने का क़ानून पारित कर सकता है और इस सबके बाद भी उसके अपराधों पर पर्दा डाला जाता है और उसके समर्थक उसे हथियार सप्लाई करते हैं। आख़िर क्यों?

(न्यूज़ पेपर इत्तेलाआत में पूर्व सांसद जमीला कदीवर के लेख पर आधारित)