साहित्य

“नाजुक डोर 2…..!!पार्ट-2!!…By-लक्ष्मी कान्त पाण्डेय

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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“नाजुक डोर 2…..
मोहन मां और आराध्या को घर छोडकर लौटा ..सुधा ने दरवाजा खोला आमना सामना हुआ तो सुधा को कुछ शर्मिंदगी महसूस हो रही थी मोहन अंदर गया और कपडे बदलकर वापस बेडरूम में लौट आया…
सुधा ….मे तुम्हारे और अजित के बारे मे जानता हूं जानता हूं तुम उसे पसंद करतीं हो और शायद प्यार भी ….तुम्हें लगता है तुम्हारी जिंदगी उसके साथ अच्छे से गुजरेगी तो मे तुम्हें रोकूंगा नहीं मगर तुम्हारे पापा और मम्मी ने मुझे तुम्हारे जीवनसाथी के रुप मे चुना था और एक माता पिता बेटियों के लिए केवल अच्छा और बस अच्छा ही सोचते करते है उनके लिए तुमसे केवल कल सुबह दस बजे तक का वक्त मांगता हूं ….दोगी
जी….मे ….मे कुछ समझी नही
सुधा देखो सबसे पहले मे तुम्हें पूछना चाहता हूं कया मेरी तरफ से कोई कमी …..
प्यार में ….सम्मान में ….खानेपीने या तुम्हारी इच्छाओं मे ….या तुम मेरे पुरुषत्व से खुश नहीं हो….
नहीं ….मोहनजी …..ऐसा तो कुछ नहीं ब्लकी आपने तो आजतक मुझे वो सबकुछ दिया जिसकी शायद मे हकदार भी नहीं थी पर ….मुझे कहीं ना कहीं ऐसा लगता हैं कि मेरा सपनों का वो हीरो वो साथी आप ….प्लीज ….मतलब आप मे वो रोमांस वो चार्मिंग जैसा …..
सुधा ….ये सब मे भी कर सकता हूं ये स्टाइलिश हीरो की तरह रहना लडकियों को रोमांटिक मेसेज भेजना वगैरह वगैरह ….मगर तुमने कभी सोचा इससे हमारी सुखी जिंदगी पर कया असर होगा ….शायद नहीं ….अच्छा कोई और लडकी मुझे देखकर मुझसे लिपटे मेरे बारे मे कुछ ऐसा कहें जो एक पत्नी के नाते या एक बेटी की मां होने के नाते तुम बर्दाश्त कर सकोगी नहीं ना …..
ये स्टाइलिश बनकर दूसरों को धोखा देना यूं किसी और की जिंदगी या परिवार से खेलना मुझे मेरे मम्मी पापा ने मेरे परिवार के संस्कारों ने नहीं सीखाया ये सब एक दिखावा है धोखा है इस आभासी दुनिया का …..
ये सपनों की मनोहर दुनिया है जो हकीकत से बहुत दूर है ….सुधा …..मैंने तुम्हें कभी अपनी जिंदगी में दबाव बनाकर जिंदगी जीने पर मजबूर नहीं किया तुम्हें हर कदम पर साथी बनकर हमकदम बनकर साथ रहा …
पर…..आपको मेरे और अजीत के बारे मे …..
एकदिन रात मे तुम सो रही थी लगभग दो बजे के आसपास मे बाथरूम गया था तभी तुम्हारे मोबाइल की नोटिफिकेशन बारबार बजने लगी तुम गहरी नींद में थी मे बस फोन उठाकर टेबल पर रखने ही वाला था की …..देखा वो नोटिफिकेशन अजीत नाम के किसी शक्श की थी फिर मैंने वो मैसेज पढे …और पिछली तमाम चैटिंग ….शायरी भरी बातें उसकी पिक्चर वगैरह ….उस वक्त मुझे एक झटका सा लगा ….फिर जब तुम्हारे रिप्लाई देखे तो …..उस वक्त मे बैलैंक हो गया था ….सोचा तुम्हें उठाकर पूछूं मगर फिर सोचा शायद कोई नौंटकी हंसी मजाक के लिए तुम भी ….कयोंकि आइडी पर तुम्हारी पिक्चर भी फेक थी ….
खैर फिर ….मैंने दिल को समझा कर स्वयं को शांत कर दिया ….मगर ….मन मे कहीं ना कहीं तुम्हें अपने परिवार को खोने का डर मन मे बैठ चुका था ….
सुधा …..तुम्हारे इस कदम से मेरा हमारी बेटी आराध्या और मां सबका भविष्य उजड जाएगा सोचा वक्त के साथ तुमभी समझ जाओगी मे तुम्हें या मां को बताकर शर्मिंदा नहीं करना चाहता था इसलिए चुप रहा मगर आज जब तुमने वो सब कहा तो …..
सुधा मे तुम्हें रोकूंगा नहीं मगर मे तुम्हें और तुम्हारे इस फितूर को दूर करना चाहता हूं एक दोस्त होने के नाते सुबह दस बजे तक का समय चाहिए इसके बाद में तुम्हें नहीं रोकूंगा …..कया तुम मुझे ये वक्त ….मतलब आज की रात और सुबह के चंद घंटे ….दोगी ….
जी ….बताइए ….आप जो चाहे ….मे तैयार हूं ….
ठीक है ….कहकर मोहन फिर से अपने कमरे में चला गया और जब लौटा तो …..
आगे की कहानी बाद मे…!!