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नागरिकों को ये जानने का कोई हक़ नहीं कि राजनैतिक पार्टियों को चंदा कहाँ से मिला : मोदी सरकार

केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा है कि नागरिकों को यह जानने का अधिकार नहीं है कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले फंड का सोर्स क्या है.

सरकार की तरफ से कहा गया कि राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड स्कीम के तहतफंड मिलता है.

सुप्रीम कोर्ट में दायर एक बयान में अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने कहा कि बिना तर्कसंगत सीमाओं के हर चीज़ को जानने का कोई साधारण अधिकार नहीं हो सकता.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से ये भी कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम किसी कानून या अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है.

अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, “जिस योजना पर सवाल उठ रहे हैं वह दान देने वाले की गोपनीयता बनाए रखती है. ये योजना सुनिश्चित करती है कि राजनीति में काला धन न आए. यह टैक्स संबंधी नियमों का पालन करती है. इसलिए ये किसी मौजूदा अधिकार की सीमा में भी नहीं आती.”

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ 31 अक्टूबर यानी कल से राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.

दो जनवरी 2018 को सरकार ने राजनीतिक दलों को कैश में चंदा देने के विकल्प के तौर पर और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के इरादे से इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू की थी.

इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को सार्वजनिक बनाने की मांग करने वाली याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने रविवार को अपने विचार रखे.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संविधान ने नागरिकों को इन फंड्स का सोर्स जानने का मौलिक अधिकार नहीं दिया है. उन्होंने कोर्ट को चेतावनी दी कि इलेक्टोरल बॉन्ड को रेगुलेट करने के लिए पॉलिसी डोमेन में न आए.

उन्होंने कहा कि नागरिकों को ये अधिकार तो है कि वे उम्मीदवारों की क्रिमिनल हिस्ट्री जानें, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि उन्हें पार्टियों की इनकम और पैसों के सोर्स जानने का अधिकार है.