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नागपुर पीठ ने माओवादियों से कथित संबंधों से जुड़े मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो साईबाबा को बरी किया

पीटीआई-भाषा संवाददाता

मुंबई, 14 अक्टूबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने माओवादियों से कथित संबंधों से जुड़े जिस मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को शुक्रवार को बरी किया उसका घटनाक्रम इस प्रकार है:

22 अगस्त, 2013: महाराष्ट्र में गढ़चिरौली जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में निगरानी के बाद आरोपी महेश तिर्की, पी. नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की।

2 सितंबर, 2013: दो और आरोपी – विजय तिर्की और प्रशांत सांगलीकर – को पुलिस ने गिरफ्तार किया।

4 सितंबर, 2013: पूछताछ के दौरान आरोपी मिश्रा और सांगलीकर द्वारा किए गए खुलासे के बाद पुलिस ने मजिस्ट्रेट अदालत से जी एन साईबाबा के घर की तलाशी के लिए वारंट का अनुरोध किया।

7 सितंबर 2013: मजिस्ट्रेट अदालत ने तलाशी वारंट जारी किया।

9 सितंबर, 2013: पुलिस ने दिल्ली में साईबाबा के आवास की तलाशी ली।

15 फरवरी, 2014: गिरफ्तार किए गए पांचों आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मंजूरी प्राधिकारी द्वारा मुकदमा चलाने की मंजूरी दी गई।

16 फरवरी, 2014: पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष अंतिम रिपोर्ट/आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया।

26 फरवरी 2014: मजिस्ट्रेट अदालत ने मामले को सत्र अदालत में भेजा, क्योंकि अपराध सत्र अदालत में विचारणीय थे।

26 फरवरी, 2014: पुलिस ने साईबाबा को गिरफ्तार करने के लिए गिरफ्तारी वारंट हासिल किया, लेकिन ‘‘सहानुभूति के कारण’’ गिरफ्तार करने में विफल रही।

9 मई 2014: साईबाबा को गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

21 फरवरी 2015: सत्र अदालत ने सभी छह आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। सभी आरोपियों ने अपना दोष स्वीकार नहीं किया।

6 अप्रैल, 2015: साईबाबा के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी, मंजूरी प्राधिकारी द्वारा दी गई।

31 अक्टूबर 2015: पुलिस ने पूरक आरोपपत्र दाखिल किया।

14 दिसंबर 2015: सत्र अदालत ने दोनों मामलों (साईंबाबा और पांच आरोपी) में संयुक्त सुनवाई का आदेश दिया। सुनवायी शुरू।

3 मार्च, 2017: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की सत्र अदालत ने साईबाबा और पांच अन्य को यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया। साईबाबा और चार अन्य को आजीवन कारावास की सजा; एक को दस साल की कैद।

29 मार्च, 2017: साईबाबा और अन्य ने दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में अपील दायर की।

14 अक्टूबर, 2022: बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने साईबाबा और पांच अन्य दोषियों को बरी किया।