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नवाब साहब और चार परांठे : आरएसएस, बजरंग दल, विहिप, अभिनव भारत, श्री राम सेना आदि के सभी लोगों को ज़रूर देखना चाहिये आदिपुरुष!


Avaneesh Kumar Singh
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पुरानी फिल्मों में हिरोइन के आसपास उस पर डोरे डालने वाला एक चम्पू कैरेक्टर होता था जो अक्सर हीरो से खुन्नस खाया रहता था और हमेशा इस चक्कर में रहता था कि उसे कब मौका मिले और वो खुद की मुहब्बत को।साबित कर सके।
कभी कोई फंसने वाली परिस्थिति आती तो हिरोइन कहती- “बांबू, तुम्ही तो मेरा अछली वाला पियाल हो, यू आर माई टुरु लोब बेबी, इस गुंडे तो को तुम्हीं पीट सकते हो मेरे लिए”। और फिर अक्सर ये साइड कैरेक्टर हिरोइन या हीरो को पड़ने वाली लात खुद खाता था, भरपूर पोपट बनता था इसका।
ऐसे ही शुक्ला नाम त्यागकर मुंतशिर बने मनोज जो उर्दू के आगोश में गोते लगा रहे थे और उनको हिन्दी, संस्कृत वाले और शुक्ला नाम वाले अपनाना चाह रहे थे तो चतुर हिरोइनी की तरह मनोज चालें चलते रहे, सीधी लाइन न दिए लेकिन एक दिन ऐसा आता है कि आदिपुरुष का टीजर रिलीज होता है और हिरोईनी गुंडों से घिर जाती है, आई मीन रजिया गुंडों में फंस जाती है। उस दिन मनोज बड़ी सफाई से अपना नाम मनोज मुंतशिर से मनोज मुंतशिर शुक्ला कर लेते हैं और उसको अपने फेसबुक पेज के कवर पर भी टांग देते हैं। ऐसा करते ही मनोज ने ऐलान किया कि बांबू, मेरे शुक्ला तिवारी त्रिपाठी मिश्रा चतुर्वेदी शर्मा आशिकों, मैं असल में तुम्हारी ही थी बांबू, मुंतशिर नाम रखके तो मैं भेष बदल के अब्दुल के खेमे का हाल ले रही थी।
अब बांबू लोग तबसे मनोज मुंतशिर शुक्ला की तरफ जाने वाली हर गोली को अपने सीने पर खाने को तैयार बैठे हैं।
फिल्म रिलीज होने पर बांबू लोगों ने अपना स्लोगन भी घोषित किया है:
बांबू हाजिर है मुंतशिर की सजा पाने को
कोई कमेंट से ना मारे मेरे दीवाने को

Yasmeen Khan
@YasmeenKhan_786
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि कुरान को जलाने का दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को महासंघ के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में शरिया कानून के तहत सजा दी जायेगी!

Mohammad Tanvir تنوير
@TanveerPost
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा जो व्यक्ति कुरान शरीफ को जलाने का दोषी पाया जाएगा।

उस व्यक्ति को मुस्लिम बहुल क्षेत्र मे शरिया कानून के तहत सजा दी जाएगी।

#VladimirPutin

anish Kumar Solanki ·
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नवाब साहब और चार परांठे 😋
परांठे हर दिल अजीज होते हैं, बहुतों की कमजोरी हैं, मेरी भी। शौकीन लोग किसी भी हद तक चले जाते हैं परांठो के लिए। इसी बात पर एक किस्सा याद आया। बहुत साल पहले सुना था, लेकिन कहाँ, यह याद नहीं, बहरहाल आप मुलाहिजा फरमाएं। ये लखनऊ की बात है, नवाबी दौर था, हर तरफ नफासत का बोलबाला, बेहतरीन खाने, उम्दातरीन कपड़े, खुशबूदार इत्र, किमाम, ज़र्दे की पूछ परख थी। आला दर्जे के फनकार दुनिया भर से लखनऊ में खिंचे चले आते, वहां उनके फन की कद्र होती, इनाम मिलते।
उसी समय लखनऊ में एक नवाब साहब होते थे, रियासत चलाने के अलावा उन्हें बस एक ही शौक था, वह था खाने का। इसीलिए उनके महल में बावर्ची खाना भी लंबा चौड़ा था। ढेरों उस्ताद बावर्ची उनके लिए एक से एक नियामतें पकाया करते, जिनसे दस्तरखान रोज गुलजार होते। पर समस्या यह हो गई थी की, नवाब साहब की सेहत ठीक नही रहती थी, कितना ही अच्छा खाना हो, जरा सा खाकर ही उनकी तबीयत भारी हो जाती। हकीमो के नुस्खे, वैद्यराज की पुड़िया या बाबाजी की बूटी, सब कुछ बेअसर था। दुनिया भर की दौलत होने के बावजूद सादा भोजन करके दिन निकाल रहे थे बेचारे।
अचानक एक दिन दरबार में एक नया बावर्ची हाजिर हुआ। उसने अपना तआरुफ़ करवाया और कहा “सुना है कि हुजूर परांठो के बड़े शौकीन हैं, लेकिन आजकल दुश्मनों की तबीयत नासाज होने से लुत्फ नहीं ले पा रहे”। नवाब साहब ने कहा “हाँ बात तो दुरुस्त है, पर इसमे तुम क्या कर सकते हो?” नया बावर्ची बोला ” हुज़ूर मैंने अपने बाप-दादा से खाना बनाने का हुनर सीखा है। यदि आप इजाजत दें, तो आपको परांठे बनाकर खिलाऊं, मेरा दावा है कि आप जरा भी भारीपन महसूस नहीं करेंगे, उल्टे आपकी तबीयत हल्की रहेगी। बस इतनी सहूलियत रहे, की जो भी सामान मैं मांगू मुझे बिना किसी रोक-टोक के मिले, और सिवाय आपके लिए परांठे बनाने के, पूरे दिन और कोई काम नही करवाया जाए। मेहनताना जो हुजूर बेहतर समझें दे दें, मुझे कोई उज्र नहीं”।
परांठो का नाम सुनकर नवाब साहब फिसल गए, बोले “ठीक है कल सुबह तुम परांठे पेश करो, उसके बाद हम तय करेंगे, कि आगे क्या करना है। लेकिन अगर हमारी तबीयत बिगड़ी तो अंजाम सोच लेना”। नया बावर्ची खुश हो गया, फौरन बावर्ची खाने की तरफ भागा, और अगले दिन की तैयारी में लग गया। सुबह हुई, नवाब साहब को परांठे पेश किए गए, पर साथ में और कुछ नहीं था। नवाब साहब बोले “भाई कुछ सालन वगैरह लाओ ऐसे कैसे खाएंगे?” बावर्ची ने दरखास्त की, ” हुज़ूर आज भर मेरे कहे से खा लीजिए, बाकी आप मालिक हैं”।
नवाब साहब ने पराठे तोड़े, और देखते क्या हैं, कि ऐसे शानदार पराठे, जिनका रेशा रेशा छूने से बिखर जाए, सुनहरी सिकाई, और घी की उठती खुशबू ने तो उन्हें दीवाना कर दिया। बात की बात में चार परांठे खा गए वो। उसके बाद पूरे दिन तबीयत भी मस्त रही। शाम को नवाब साहब बेहद खुश होकर बोले “बावर्ची तुमने हमारी दिली ख्वाहिश पूरी की है, आज से तुम रोज हमारे लिए चार पराठे बनाओगे, और तुम्हें एक अशर्फी हर रोज इनाम में दी जाएगी”।
फिर तो यह रोज का नियम हो गया, नया बावर्ची, परांठे और नवाब साहब। इसके सिवा महल में और कोई बात ही नहीं होती। पुराने उस्ताद बावर्ची अलग खुन्नस खाए बैठे थे, की हमने सालों खिदमत की लेकिन एक कौड़ी इनाम नहीं मिला, और इस नए नौटंकीबाज़ को रोज एक अशर्फी, लाहौल ऐसा अंधेर नही देखा। बेचारे किलसते थे, पर बोल नही सकते थे। इधर नया बावर्ची भी किसी से मतलब नहीं रखता था। बस चार परांठे बनाने के लिए दिन भर लगा रहता, जाने क्या क्या करतब करता था अकेले में।
उन्हीं दिनों एक नया वजीर भी नियुक्त हुआ महल में। उसका काम बावर्ची खाने और भंडार की देखभाल के साथ हिसाब किताब रखना भी था। पुराने उस्ताद बावर्चियों ने उसके कान भर दिए। तस्दीक करने के लिए जब उसने हिसाब मिलाया तो पाया कि वाकई नया बावर्ची हर रोज एक मन यानी 40 किलो शुद्ध घी ले जाता है। वजीर को अचरज हुआ, दरयाफ्त की तो बावर्ची ने बताया कि “हुजूर ये घी नवाब साहब के परांठो को बनाने में इस्तेमाल होता है”।
अगले दिन सुबह वजीर देखने गया कि, वो आखिर इतने घी का करता क्या है? नए बावर्ची ने अपने नियम के अनुसार परांठे बनाए और बाकी घी जो ठंडा हो गया था, उसे नाली में बहा दिया। यह देखकर वजीर भड़क गया “तुमने इतना सारा घी क्यों बर्बाद किया?” उसने पूछा, नए बावर्ची ने जवाब दिया “हुजूर परांठे बनने के बाद यह घी किसी काम का नहीं बचा, पानी हो गया है, इसीलिए बहा दिया”, वज़ीर बोला “किसी और को बेवकूफ बनाना, तुम रियासत के पैसे की बर्बादी कर रहे हो, कल से तुम्हें सिर्फ एक सेर घी मिलेगा, इतना काफी है चार पराठे बनाने के लिए”।
अगले दिन रोज की तरह नवाब साहब ने परांठे खाए, पर वो लज्जत नहीं आई। दोपहर तक तबीयत भी खराब हो गई, फौरन नए बावर्ची को तलब किया, और बोला “तुम्हे हर चीज की आज़ादी दी गई है, उसके बाद भी तुम्हारा काम खराब होता जा रहा है। आज परांठे खा के हमारी तबीयत बिगड़ गई। कल तब तो ऐसा नहीं था, जवाब दो तुमने क्या गड़बड़ की है?” बावर्ची ने अर्ज़ किया “हुजूर मेरी तरफ से कोई लापरवाही नहीं है, मैं हमेशा की तरह ही परांठे बनाता हूं, पर मोहतरम वज़ीर ने मुझे मिलने वाले घी पर रोक लगा दी है, इसलिए आपको वैसी लज्जत नहीं आई, माफी चाहता हूँ, पर मेरे भी हाथ बंधे हैं, मैं क्या करूं बताइये?”
नवाब साहब ने वजीर को फौरन बुलाया, उससे पूछा की क्या मामला है? वह बड़ा खुश होकर बोला “हुजूर यह बावर्ची बदमाश है, रोज बिना मतलब एक मन घी ले जाता है, अब आप ही बताइए की चार पराठे में कहीं एक मन घी लगता है भला? इसीलिए मैंने इसे घी लेने की मनाही कर दी”, यह बोलकर वज़ीर बड़ा खुश हुआ, कि अब तो तारीफें मिलेंगी, नवाब साहब पीठ थपथपाएँगे, कहो इनाम ही दे दें।
इधर नवाब साहब अपनी जगह से उठे, जूता निकाला, और वजीर पर जूतों की बारिश हो गई। जब बारिश थोड़ी कम हुई तो वज़ीर ने पूछा ” हुज़ूर, ऐसी क्या गुस्ताखी हो गई खादिम से?” नवाब साहब गरजे “नालायको लाखों रुपए की रियासत के इंतजाम में न जाने कितनी हेर फेर तुम लोग करते हो, खुदा जाने कितनी बर्बादी होती है चीजों की, लेकिन तुम्हें बचत घी में करने की सूझी, और वो भी मेरे ही खाने में से” निकल जाओ इसके पहले कि तुम्हारा सर कटवा दूँ।

बस फिर क्या था, मियां वजीर भागे जान बचाकर, बावर्ची गए घी लेने और नवाब साहब दस्तरख्वान की ओर चले। उसके बाद सालों साल परांठे चलते रहे बेलौस। दरअसल जनाब परांठों की तासीर ही कुछ ऐसी होती है, परांठे और खाने वाले के बीच कभी नही आना चाहिए, वरना क्या पता उनका जूता हो और आपका सर 😄