धर्म

नमाज़ पर तवज्जुह फ़रमाएं, हमारी नमाज़ ने हमें दीन से दूर कर दिया है

Farooque Rasheed Farooquee
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. नमाज़ पर तवज्जुह फ़रमाएं
कुछ अल्लाह के नेक बंदे हैं जो बहुत संजीदगी और तवज्जुह से नमाज़ पढ़ते हैं। लेकिन आम तौर पर यह हाल है कि हमारी नमाज़ ने हमें दीन से दूर कर दिया है। लोग नमाज़ में पढ़ने वाली फ़ातिहा, तशह्हुद, दुरूद और रुकू और सज्दे की तस्बीह वग़ैरह का मतलब नहीं समझते। इमाम की दुआओं पर आमीन कहते हैं लेकिन नहीं जानते कि क्या दुआ मांगी जा रही है। क्या ऐसी नमाज़ से अल्लाह की मदद मिलेगी और चट्टान जैसा सब्र पैदा होगा।

इन नमाज़ पढ़ने वालों का यह हाल है कि ये–

* नमाज़ ही को पूरा दीन समझते हैं और उसका कोई ताल्लुक़ अपनी आदतों, अपनी गुफ़्तुगू और अपनी ज़िन्दगी के आमाल से नहीं जोड़ते।
* वह नमाज़ को मामलात से अलग रखते हैं। वह कहते हैं कि मस्जिद में दुनिया की बात ना हो और दुनिया में मस्जिद की बात ना हो।
* वह समझते हैं कि ज़िन्दगी में जितने गुनाह वह करते हैं जैसे धोका देना, झूठ बोलना, कारोबार में तरह-तरह की मक्कारियां और फ़रेब करना, हर वक़्त दूसरों की बुराई करना और झूटी क़स्में खाना वग़ैरह सब नमाज़ पढ़ने से माफ़ हो जाते हैं जबकि ऐसा हरगिज़ नहीं है।
* उनकी नमाज़ ने उन्हें गुनाहों में बेबाक कर दिया है और वह अल्लाह से बहुत दूर हो गए हैं।
* ऐसी नमाज़ से ना इंसान ख़ुद बदलेगा और ना उसे देखकर दूसरे बदलेंगे।
दीन एक हिस्सा इबादत और तीन हिस्सा मामलात ( यानी लेन-देन, दूसरों के साथ सुलूक, इंसाफ़ और ईमानदारी वग़ैरह है।) अल्लाह हमें ऐसा मुसलमान बनाए कि फ़रिश्ते भी अल्लाह से हमारे लिए दुआ करें। यह मुमकिन है अगर हम पूरे के पूरे इस्लाम में दाख़िल हो जाएं। आमीन सुम्मा आमीन!