साहित्य

*ननदरानी अब मुझसे उम्मीद करना ग़लत है*

Laxmi Kumawat
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दिव्या जितनी कोशिश कर सकती थी, उतना जल्दी-जल्दी अपने कदम बढ़ाते हुए घर की तरफ जा रही थी। शाम के सात बज चुके थे। अभी तो उसे सब्जियाँ भी खरीदना था। घर पर आज के खाने के लिए सब्जी कुछ भी नहीं थी। ऊपर से घर जाकर खाना भी बनाना था। खैर, जैसे तैसे अपनी खरीदारी करके वो लंगड़ाते पैरों से घर पहुंची।

अभी घर में अपने कदम रखे ही थे कि सामने सोफे पर ननद तनु को देखकर उसका पूरा मूड ऑफ हो गया। मन नफरत से भर उठा। आज ये क्या लेने आई है यहां पर? सीधा यही सवाल दिमाग में कौंधा।

तभी सासू मां माया जी की तरफ ध्यान गया। उन्होंने इशारे से उसे फटाफट खाना बनाने को कहा। दिव्या ने ना कोई नमस्ते की, ना और कुछ। सीधा अपने कमरे में चली गई।

ये देखकर तनु उसे देखती रह गई। फिर उसने माया जी की तरफ देखा और शिकायत करने लगी,
” मम्मी आपके घर में क्या मेरी यही इज्जत है। जो आपकी बहू मुझे नमस्ते तक नहीं करके गई। आपके घर में मेहमानों का इसी तरह से स्वागत होता है”
पर माया जी ने तनु को उसे नजर अंदाज करने को कहा।

कमरे में जाकर दिव्या ने अपना बैग रखा, कपड़े चेंज किये और सब्जियां लेकर रसोई में आ गई। पर दिमाग में अभी भी यही चल रहा था कि आखिर तनु लेने क्या आई है।

आखिर दिमाग में कुछ भी चल रहा हो, पर खाना तो बनाना ही था। आखिर पेट की भूख दिमाग में चल रही हलचल से कहाँ शांत होती है। फिर ऊपर से ननद आई हुई है। तो चाहे मन हो या ना हो, उसका तो स्वागत करना ही पड़ेगा। उससे बात करो या ना करो, वो खाना तो खा कर जाएगी ही। इसलिए खाने के लिए फटाफट सब्जियां सुधारने लगी।

दिव्या अभी सब्जी सुधार ही रही थी कि इतने में माया जी रसोई में आई। और आते से ही बोली,
” दिव्या ये क्या तरीका है। तनु पूरे पाँच महीने बाद मायके आई है। कम से कम उसे नमस्ते तो कर सकती थी तुम”
दिव्या ने एक नजर माया जी की तरफ देखा और कहा,
” आप अब भी मुझसे उम्मीद करती है कि मैं उन्हें नमस्ते करूंगी”
” वो ननद है तुम्हारी और उम्र में बड़ी है तुमसे। उसका ओहदा भी तुमसे बड़ा है। इस लिहाज से ही नमस्ते कर लेती”
माया जी ने कहा तो दिव्या सब्जी के बर्तन उठाते हुए बोली,
” ओहदा बड़ा होने से क्या होता है? कर्म तो उनके ऐसे है नहीं कि मैं उन्हें सम्मान दूं”
” देखो दिव्या, तनु मां बनने वाली है। वो अपनी डिलीवरी के लिए यहां आई है। एक बेटी अपने मायके नहीं आएगी तो कहां जाएगी। उसकी भाभी होने के नाते अब उसकी सेवा तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी ना”
” माफ कीजिएगा मम्मी जी। वो दुनिया की पहली औरत थोड़ी ना है जो माँ बना रही है। मैं इतनी आदर्शवादी औरत नहीं हूं। और ना ही मुझमें इतनी हिम्मत है कि मैं उस औरत को नमस्ते करूँ, जिसने मेरी जिंदगी दुश्वार करके रख दी। वो आपकी बेटी है, तो आप जाने और उसका भाई जाने। पर मुझसे उम्मीद मत कीजिएगा”
कहकर दिव्या ने गैस पर सब्जी छौंकने के लिए कढ़ाई चढ़ा दी। पर एक बार भी पलट कर माया जी की तरफ नहीं देखा। आखिर माया जी भी क्या कहती? उनकी बेटी के कर्म भी ऐसे ही रहे थे। इसलिए पलट कर वापस हाॅल में आकर तनु के पास बैठ गई।

इधर खाना बनाती हुई दिव्या के हाथ खाना बनाते समय तेजी से चल रहे थे। पर दिमाग में पिछली यादें घूम रही थी। जिसे याद कर तनु के लिए उसकी नफरत बढ़ती जा रही थी।

दिव्या और आशीष की नई नई शादी हुई थी। उसका ससुराल छोटा सा परिवार था। घर में सास माया जी और ननद तनु ही थी। आशीष और तनु जुड़वा भाई बहन थे। इसलिए तनु दिव्या से उम्र में बड़ी थी। उसके लिए माया जी लड़का देख ही रही थी। पर पहले आशीष के लिए उन्हें दिव्या पसंद आ गई। इसलिए उन्होंने आशीष की शादी पहले कर दी।

माया जी तनु पर कभी रोक-टोक नहीं करती थी, इस कारण वो थोड़ी जिद्दी स्वभाव की थी। ये बात उसे उसी दिन पता चल गई जब वो दुल्हन बन कर उस घर में आई थी।

बक्सा खुलवाई की रसम चल रही थी। आखिर ननद को ही बक्सा खोलना था तो तनु को ही बुलाया गया। बक्सा खुलवाई की रस्म में तनु को उसकी पसंद की एक साड़ी लेने के लिए माया जी ने कहा। पर ये क्या? तनु ने तो एक साथ तीन साड़ी निकाल ली। दिव्या तो उसकी शक्ल ही देखती रह गई। जब दूसरी रिश्तेदार महिलाओं ने कहा,

” तनु तुम्हें एक साड़ी ही निकालना चाहिए थी। बेटा ये तो तुम्हारी भाभी की साड़ियां है। उसके मम्मी पापा ने उसे कितने प्यार से दी होगी”
” अरे तो क्या हो गया? भाभी तो मेरी ही है। इतना तो हक मेरा भी है”
तभी तनु की मामी बोली,
” बेटा हक तो एक साड़ी का ही था। तुमने तो दो और जबरदस्ती उठा ली”
” तो? मुझे पसंद आई तो मैंने ले ली। और मुझे अगर ये साड़ियां नहीं मिली तो मैं भाभी को भी इन्हें पहनने नहीं दूंगी”
आखिर तनु जिद पर आ गई तो माया जी ने कहा,
” अरे कोई बात नहीं। ये साड़ियां तनु पहने, दिव्या पहने बात तो एक ही है। इतना क्यों बवाल मचा रहे हो। जा तनु, फटाफट से साड़ियां ले जाकर अपने कमरे में रख दे”
माया जी की शय पाकर तनु वो साड़ियां लेकर अपने कमरे में चली गई। दिव्या सिर्फ उसे जाते देखती रह गई।

तनु हर जगह अपनी मनमानी ही करती। दिव्या के लिए तो वो आगे से आगे हर काम तैयार रखती। मजाल कि दिव्या फ्री होकर आशीष के साथ कहीं घूमने तो चली जाए।

एक बार आशीष के स्टाफ में किसी की मैरिज एनिवर्सरी थी। आशीष ने दिव्या को पहले से ही कह दिया था कि तुम तैयार रहना। लेकिन जिस दिन जाना था, उस दिन तनु ने जानबूझकर पूरी रसोई को फैला दिया। तनु सिर्फ काम फैलाती थी। कभी घर का काम उसने समेटा नहीं था तो आखिरकार दिव्या को ही काम पर लगना पड़ा।

जब आशीष घर पर आया तो दिव्या को तैयार न देखकर वो बोला,
” दिव्या तुम अभी तक तैयार नहीं हुई। तुम्हें मैंने तीन दिन पहले ही कह दिया था कि मेरे स्टाफ में पार्टी है तो वहां जाना है। यार तुम में जरा सी भी समझ नहीं है”
दिव्या ने कहना चाहा कि तनु ने रसोई फैला दी तो आशीष ने उसे चुप रहने के लिए कह दिया,
” अब बहाने बाजी मत करो। मैं अकेला ही चला जाऊंगा। तुम घर में बैठकर रसोई साफ करो”
जब आशीष जाने को हुआ तो तनु तैयार होकर आ गई और उससे बोली,
” चल भाई, मैं चलती हूं तेरे साथ। बहुत दिन हो गए किसी पार्टी में गए हुए”
आखिर आशीष क्या ही कहता। तनु उसके साथ बाइक पर बैठी और दोनों पार्टी में रवाना हो गए। जबकि दिव्या घर में मन मार कर रह गई। पर हैरानी उसे इस बात की थी कि माया जी ने कुछ भी नहीं कहा। उनकी तरफ से उनका घर का काम हो रहा था।

अक्सर तनु की यही हरकतें आशीष और दिव्या में झगड़े का कारण बनने लगी थी।

पर ना तो तनु सुधरी और ना ही माया जी ने उसे कभी सुधरने के लिए कहा। कुछ दिनों बाद पता चला कि दिव्या मां बनने वाली है। उसके और आशीष के लिए ये बड़ी खुशी के पल थे। खुशी की बात तो माया जी और तनु के लिए भी थी। लेकिन घर के कामों में दिव्या को फिर भी कोई मदद नहीं थी।

उस दिन दिव्या को चेकअप के लिए अस्पताल जाना था। सुबह से उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। आशीष भी तैयार हो चुका था। दिव्या और आशीष निकालने को हुए तो तनु ने जिद कर ली,
” भाभी पहले छत पर से कपड़े उतार कर नीचे रख कर जाओ। मैं आपकी नौकर नहीं लगी हूं जो छत पर से कपड़े उतार कर लाऊंगी”
तनु की बात सुनकर आशीष ने कहा,
” तनु ये काम तो तुम भी कर सकती हो। देख नहीं रही हो उसकी तबीयत खराब है”
” अरे वाह! आज तो बीवी के लिए मुझसे लड़ने को तैयार हो गया। तबीयत कोई इतनी भी खराब नहीं है कि पर छत पर जाकर कपड़े भी नहीं ला सकती। और वैसे भी तुम्हारी पत्नी इस घर की बहू है। ये उसकी जिम्मेदारी है”
” तुझे बोलना, अपना मूड खराब करने के बराबर है। मैं खुद ही जाकर ऊपर से कपड़े ले आऊंगा”
” हां हां, अब बीवी के सामने पानी ही तो भरेगा तू। जोरू का गुलाम जो ठहरा”
उसकी बात सुनकर आशीष तमतमता हुआ छत पर कपड़े लेने चला गया। ये देखकर माया जी बोली,
” दिव्या इतनी देर में तो तुम खुद कपड़े उतार कर ले भी आती। क्या दोनों के बहस सुने जा रही थी। अब क्या अच्छा लगेगा आशीष ऊपर से तुम लोगों के अंडर गारमेंट्स उतार कर लाएगा”
अब माया जी ने ही कह दिया तो दिव्या को छत पर जाना ही पड़ा।
वो ऊपर जाने लगी तो तनु बोली,
” अब थोड़ा जल्दी अपने कदम बढ़ा भी लो। क्या भगवान ने तुम्हारे पैरों में शक्ति नहीं दी है? इतनी देर में तो भाई कपड़े उतार के भी ले आएगा”
उसकी बात सुनकर दिव्या जल्दी-जल्दी अपने कदम सीड़ियों पर बढ़ाने लगी। लेकिन अभी सात आठ सीढ़ी चढ़ी ही थी कि उसे चक्कर आ गए। और वो सीड़ियों से लुढ़कती हुई नीचे आकर गिरी। नीचे गिरते ही वो बेहोश हो गई।

अचानक हुए इस हादसे से सब लोग हैरान रह गए। आनन फानन में दिव्या को हॉस्पिटल एडमिट करवाया गया। उसका मिसकैरेज हो चुका था। यहां तक कि सीढ़ियों से गिरने के कारण उसका एक पैर बहुत ज्यादा चोटिल भी हो गया था। आज तक इस कारण से अपने उस पैर पर वो पूरी तरह से खड़ी भी नहीं हो पाई। उस दिन की टिस आज भी दिव्या के मन में थी। इस कारण वो तनु को माफ भी नहीं कर पाई।

हालांकि तनु की शादी हो गई। वो अपने ससुराल चली गई। लेकिन दिव्या ने अपने आप को तनु से दूर ही रखा। वो तनु से बात भी नहीं करती। शादी के समय भी उसका सारा काम आशीष और माया जी ने ही किया था। दिव्या ने तो तनु के किसी काम को हाथ भी नहीं लगाया।

खैर, दिव्या ने खाना तो बना दिया और अपने कमरे में आ गई। माया जी जानती थी कि दिव्या खाना नहीं परोसेगी इसलिए वो खुद उठी। अपना और तनु का खाना लेकर बाहर आ गई। माया जी को खाना लाते देखकर तनु गुस्सा हो गई और चिल्लाते हुए बोली, “ऐसा क्या ईगो लेकर बैठी हुई है कि खाना भी नहीं परोस सकती है “
” बेटा मैं खाना परोस तो रही हूं। फिर क्यों बातें बना रही है। तुझे तो खाने से मतलब होना चाहिए”
माया जी तनु को समझाते हुए बोली।

” अरे ऐसे कैसे? मैं अपने मायके आई हूं। इस घर पर मेरा भी उतना हक है जितना उसके पति का है। फिर इतना तमाशा क्यों करना? माता-पिता ने इतने भी संस्कार नहीं दिए कि ननद प्रेगनेंसी में यहां आई है तो थोड़ी इसकी सेवा ही कर दे”
तनु ने ये बात इतनी जोर से कही थी कि अंदर दिव्या को सुनाई दे गई। ये सुनकर वो बाहर निकल कर आ गई,
” ननद रानी कभी तुमने मुझे चैन से रहने दिया था जो मुझसे सेवा की उम्मीद कर रही हो। इतना ही सेवा का शौक है तो अपनी मां और भाई से करवा लो।

मुझसे कोई उम्मीद मत करना। शुक्र करो कि मैं रोक नहीं रही किसी को। वरना जिस तरह की तुम्हारी हरकतें रही है ना, मां के बाद मायका भी नहीं रहेगा”
दिव्या के मुंह से ये बात सुनकर तनु ने अपनी मम्मी की तरफ देखा। माया जी ने हाथ जोड़ कर उसे चुप रहने का इशारा किया।

पर इतना तो तनु को समझ में आ गया कि दिव्या उसकी कोई सेवा नहीं करने वाली। और आखिर ऐसा हुआ भी। तनु की डिलीवरी मायके में ही हुई, जिसके लिए माया जी ने एक काम वाली रख ली। दिव्या ने तो उसके किसी भी काम को हाथ तक नहीं लगाया।

मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
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