साहित्य

नए मेहमान के सवाल…By-Tajinder Singh

Tajinder Singh
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नए मेहमान के सवाल…
किसी जमाने में मेहमानों का स्वागत मै बहुत उत्साह से किया करता था | पर अब वैसी कोई बात नहीं रही | शायद बढती उम्र और अक्ल ने बच्चों वाले उत्साह को कम कर दिया है या अब मेहमान भी वैसे नहीं रहे, जिनका उत्साह से स्वागत किया जाए | जिस मेहमान ने आना है वो आएगा ही और जिसने जाना है वो जाएगा ही | उनके लिए आधी रात तक जाग कर मै अब अपनी नींद खराब नहीं करता |

सुबह जब उठा तो देखा, पुराना मेहमान जा चुका था | मैंने राहत की साँस ली…चलो बला टली | दरअसल इस पुराने मेहमान ने मुझे तंग करने का कोई अवसर नहीं गवांया था | इतना दुखी किया था कि उसके जाने का कोई गम मुझे नहीं था |

मैंने सोचा चलो थोडा नए मेहमान से भी मिल लिया जाए | देखा तो उनींदा सा , थका थका सा नज़र आया | मैंने हाल चाल पूछा तो कहने लगा – “सारी रात लोगों के शोर शराबे ने सोने ही नहीं दिया , अभी जाकर आँख लगी थी कि तुमने उठा दिया |”

अपनी बेसब्री पर मै थोडा शर्मिंदा हो गया | लेकिन फिर सोचा इस मेहमान ने भी ३६५ दिन मेरे घर पर ही डेरा ज़माना है और ऐसे बहुत मेहमान मै देख चुका हूँ | जो आते तो ढेर सारे उम्मीदें लेकर है , लेकिन उनके जाते जाते तक, उनका दिखाया एक भी सपना कभी पूरा नही होता |
इतने सालो से लगातार ठगे जाने के बावजूद , शायद अंदर कुछ उम्मीदें अभी भी बरकरार थी | मैंने पूरी उम्मीदों से आखिर एक बार और पूछ ही डाला – “मेरे लिए क्या लाये हो |”

“वो उधर रखा है तुम्हारा सामान , उस बड़े से पैकेट में” – उसने कहा |

एक बड़ा सा पैकेट देख मेरी आशाएं फिर बलवती हो गईं | दौड़ कर गया , अपना बड़ा वाला पैकेट उठाया और बेसब्री से उसके सामने ही खोल कर देखने लगा | पैकेट खोल कर देखते देखते मुझे गुस्सा आने लगा | और मै गुस्से में बोल पड़ा – “इसमें तो कोई सामान नहीं है? केवल नव वर्ष की शुभ कामनाएं हैं |”

वो बोला – “आजकल यही ट्रेंड कर रहा है और इन्ही का फैशन है | सारे लोग आजकल सामान देने , मदद करने के बजाय या तो शुभकामनाएं देते है या फिर दुआएं | ये लोगों के लिए भी आसान है और मेरे लिए भी | मुझे भी ज्यादा बोझा नहीं ढोना पड़ता | कहाँ तो पहले मेरी कमर दुहरी हो जाती थी |”
वो आगे बोला – “अच्छा तुम हमेशा सामान की अपेक्षा क्यों रखते हो | क्या इन शुभकामनाओं की कोई कीमत नहीं ? किसी ने कितने प्यार से भेजी है तुम्हारे लिए |”

अपने बेसब्रेपन पे थोडा शर्मिंदा होते हुए मै बोला – “नहीं ऐसी बात नहीं है , शुभकामनाओं से भी खुशी मिलती है। लेकिन गिफ्ट मिलने से थोड़ी ज्यादा ख़ुशी होती है बनिस्पत शुभकामनाओं के |

उसने झट से जवाब दिया – “तो गिफ्ट देना भी सीखो | जो बांटोगे , वही तो वापस मिलेगा | और हमेशा तुम मुझसे, लोगों से ही उम्मीदें क्यों रखते हो ? तुम्हे लेकर लोगों को और मेरी तुमसे क्या उम्मीदें है , क्या ये कभी जानने की कोशिश की ? साल दर साल तुम भी तो नहीं बदले | मेरे पैकेट में अब गिफ्टों के बजाय केवल शुभकामनाएं ही क्यों हैं। ये सवाल तुम्हे खुद से भी पूछना चाहिए ?”

नए मेहमान के सीधे और तीखे सवालों से घबराया , मै तो भई खुद से सवाल पूछने लगा हूँ | आप भी खुद से पूछिये ?
शायद जवाबों में समाधान छिपा हो।