साहित्य

धीरज श्रीवास्तव चित्रांश का एक गीत पढ़ने के साथ सुनिए भी…


धीरज श्रीवास्तव चित्रांश
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पढ़ने के साथ सुनिए भी…
एक सत्य घटना से उपजा परिस्थिति जन्य यह गीत..
एक प्रेमी प्रेमिका गाँव छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन पर मिलने की योजना बनाते हैं प्रेमिका सारे रिश्ते तोड़ कर आ जाती है किंतु प्रेमी कुटिलता के चलते नहीं आता है उस प्रेमी के पश्चाताप को रेखांकित करता ये गीत….
खा रहा जिस प्रेम की सौगंध खुद विश्वास तक।
छोड़ आया मैं अतुल अनुराग वो उपहास तक।
तोड़ जो आई सभी रिश्ते हमारे ब्याह को।
देखती होगी हमारी राह भर भर आह वो।
खोजती होगी मुझे ही देख कर चेहरे सभी।
पर उसे होगी खबर क्या मैं न पहुंचूंगा कभी।
प्रेम की पावन ॠचा को सौंप कर संत्रास तक।
छोड़ आया मैं अतुल अनुराग वो उपहास तक।
अर्चना उपवास का परिणाम कहती थी मुझे।
प्रेम के अतिरेक में वह राम कहती थी मुझे।
त्याग कर हर मान मर्यादा किया मुझको वरण।
पर न मांगा स्वप्न में भी स्वर्ण का उसने हिरण।
स्वप्न दे रनिवास के पहुंचा दिया वनवास तक।
छोड़ आया मैं अतुल अनुराग वो उपहास तक।
आंच रखकर घास पर इक प्यास ने कौतुक रचा।
जन्मदिन के पर्व पर उस दिन न फिर कुछ भी बचा।
रूप मस्ताना कहा फिर भूल ही करके
मना।
एक थे तन प्राण से हम सात फेरों के बिना।
प्रेम कपटी व्याध ने पहुंचा दिया सहवास तक।
छोड़ आया मैं अतुल अनुराग वो उपहास तक।
सिर्फ उसको ही नहीं मैंने स्वयं को भी
छला।
सो नहीं पाया उमर भर ये हृदय तिल तिल जला।
स्वार्थ से इक लुट गया है जिंदगी का ओज सब।
एक कायर कर रहा है बस क्षमा की खोज अब।
किंतु उसने राह तकते तोड़ दी है स्वांस तक।
छोड़ आया मैं अतुल अनुराग वो उपहास तक।
धीरज श्रीवास्तव चित्रांश