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देश में अब एकल तानाशाही है,,,तो 2024 में लोकतंत्र लौटे या न लौटे, इसका फ़ैसला 2024 में नहीं होगा

रामदीन वल्द खुदीराम /Ramdin Wald Khudiram/ رامدین ولد خودیرام
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गमलों में विपक्ष की खेती!!!
जिनेटिकली मोडिफाइड विपक्ष..
हांजी, हांजी, हांजी। आपको फासिज्म नही पसन्द, अपराधी नही पसन्द, पोंगा पण्डित नही पसन्द, दंगे नही चाहिए, बिगड़े बोल नही चाहिए??
शिक्षित, विकासवादी विपक्ष चाहिए।
हम देंगे..
हमी देंगे..
एकदम बढ़िया विपक्ष।
बढ़या बढ़या बात बोलने वाला, देशभक्त, जहीन, बढ़या सड़क, स्कूल, अस्पताल देने वाला, मेहनतकश, ईमानदार विपक्ष।
फिर वो आपके स्टेट का ही स्थानीय बन्दा होगा।
हमसे जीतेगा, सरकार बनाएगा। हम बाकायदा हारेंगे उससे…और बड़ी बुरी तरह हारेंगे।
तो गमलों में उगाकर, खाद-पानी-फंड देकर, टीवी मीडिया में चर्चित करके, उसकी रैलियां-मूवमेंट-इवेंट होने देकर, उसे सेंट्रल एजेंसियों की हाउंडिंग से बचाकर हर राज्य, में एक नया विपक्ष, जीने खाने और पलने दिया गया है।
गमले में उगे कोपलें फेंकते, करीने से कटे, खूबसूरत टहनियों वाले फूलदार, नर्म, मुलायम, हरे भरे विपक्ष की कई वेरायटी दी जा रही हैं। पसन्द करो,
वोट करो।
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लोकतन्त्र की पहचान विपक्ष से है।
पर फासिज्म, असल विकल्प को सशक्त कैसे होने दे,
सशक्त को विकल्प कैसे होने दे।
तो प्रचार तन्त्र कमजोर को मजबूत, और मजबूत को कमजोर बताने के मिशन पर दिनरात लगा है।
कांग्रेस मुक्त भारत का नारा खुलकर दिया जा गया था।
उसकी विफलता के बाद नए चक्रम की जरूरत है।
प्रशांत किशोर कह गए कि 30% वोटों के बाद
भाजपा अब सत्ता के केंद्र में लंबे वक्त तक रहने वाली है।
सिस्टम फर्स्ट पास्ट द पोस्ट है।
तो 30% वोट,
60% सीट और 100% सत्ता दिलाता है।
इसलिए 30% ही 100% है,
प्रशान्त किशोर का आकलन सही है।
लेकिन प्रशान्त इतिहास के कुछ सबक भूल गए,
जिस पर संघ की पैनी नजर है।
संघ को मालूम है कि नंगा फासिज्म, केवल एक बार चढ़ने वाली हांडी है।
उतरी, तो गयी।
दुनिया मे कहीं भी फासिस्ट रेजीम कभी दोबारा जीतकर नही आया।
तो भारत क्यूं कर इसका अपवाद बनेगा??
वो जानते हैं कि 30% सैडिस्टों में जो नफरत, घमंड, उग्रता उन्हें लोकप्रिय बनाती है,
70% स्थिरमति जनता के बीच उन्हें घृणा दिलाती हैं।
यह घृणा अब सतह पर साफ दिख रही है। जो मध्य में थे, कन्फ्यूज थे,
उन्हें भी खेल साफ दिख गया है।
तो मन वे भी बना चुके।
एक तरफ जा चुके।
अब अगर इनको बिखरा रखना है, तो विकल्प को बांट कर रखना होगा।
इसलिए गमलों में उगाया विपक्ष आपके गिर्द रोपना जरूरी है।
इस डिजाइन से बचिए।
नकली विपक्ष से बचिए।
उसे तौलिए तो सही।
क्योकि मूल सवाल, आपके राज्य भर का नही है।
और देश की बागडोर संभालने का कद फिलहाल तो इनका नही है।
ये सही है कि ऊपर दिखाई पार्टी तस्वीरों में कुछ के नेता वाकई मेहनतकश हैं,
जहीन हैं, लड़ाकू हैं।
मगर ये चैलेंजर नही हैं।
इसलिए कि ये दायराबद्ध हैं।
राज्यों का दायरा ही उनका गमला है।
इसलिए यह सब गमलाबद्ध विपक्ष हैं।
अगर रायसीना हिल्स नही बदलता, तो लखनऊ, पटना, कलकत्ते, रायपुर, रांची, या बंगलुरू का बदलाव सिर्फ रस्मी है।
आपको अहसास नही,
पर प्रदेशों की सरकारें अब ताकतहीन हैं,
#सबऑर्डिनेट हैं,
#बेमतलब हैं।
देश अब एकल तानाशाही है।
तो 2024 में लोकतंत्र लौटे या न लौटे, इसका फैसला 2024 में नहीं होगा।
आपको एक वोटर के बतौर अभी से तय करना होगा।
उसकी तैयारी करनी होगी। अभी ही मन बदलना होगा।
राज्य पर लौट आइयेगा। उम्र पड़ी है जनाब।
लोकतंत्र रहा तो 5 साल बाद फिर मौका मिल जाएगा।
पर फिलहाल ताकत उसे दीजिये,
जो सिस्टम की तोड़ मोड़ को वापस ठीक कर सके।
जो वापस आपके राज्य को ताकतवर बना सके।
इस यूनियन को, भारत संघ को बचा सके।
वही जिसने इसका आर्किटेक्चर बुना था।
वही, जो अब उपवन से बाहर खड़ा,
सूखता वटवृक्ष है।
केवल वही है,
जो गमले में उगा विपक्ष नही है।

डिस्क्लेमर : लेख फ़ेसबुक पर वॉयरल है, लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है