देश में अगले साल होने वाले जी-20 सम्मेलन की कमान भारत ने गुरुवार को संभाल ली है. भारत के पास इस शक्तिशाली मंच का इस्तेमाल करके खुद को जोरदार तरीके से पेश करने का मौका है.
भारत ने गुरुवार से औपचारिक रूप से जी-20 की अध्यक्षता सभाल ली है. आज से अगले सात दिनों तक भारत के सभी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों समेत एक सौ ऐतिहासिक स्मारकों को रोशनी से सजाया जाएगा. इन धरोहरों पर जी-20 की रोशनी वाले लोगो लगेंगे. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मंच जी-20 की अध्यक्षता मिलने का जश्न भारत कुछ इस तरह मना रहा है.
देश के प्रमुख हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में जी-20 की अध्यक्षता संभालने से जुड़ा विज्ञापन भी छपा है और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले साल होने वाले जी-20 सम्मेलन पर लेख भी लिखा है. मोदी ने अपने लेख में लिखा, “भारत का जी-20 एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक होगा.”
भारत में अगले साल 9 और 10 सितंबर को जी-20 की बैठकें होंगी. जी-20 का एजेंडा सभी देश मिलकर तय करेंगे लेकिन भारत ने संकेत दिया है कि सम्मेलन के केंद्र में ऊर्जा संकट और आतंकवाद दो अहम मुद्दे जरूर होंगे.
‘मिलकर चुनौतियों का समाधान करें’
भारत सरकार ने आज देशभर के अखबारों में विज्ञापन दिए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से एक लेख भी छपा है. इस लेख में मोदी ने लिखा, “आज, हमें अपने अस्तित्व के लिए लड़ने की जरूरत नहीं है- हमारे युग को युद्ध का युग होने की जरूरत नहीं है. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. आज हम जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है.”
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि जी-20 की अध्यक्षता वैश्विक मामलों में नई दिल्ली की अग्रणी भूमिका को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करेगी, विशेष रूप से ऐसे समय में जब दुनिया कई भू-राजनीतिक और आर्थिक संकटों का सामना कर रही है.
रूस और यूक्रेन युद्ध को लेकर मोदी पहले भी कह चुके हैं कि यह युद्ध का युग नहीं है और समस्या का समाधान बातचीत के जरिए किया जा सकता है. समरकंद में एससीओ की बैठक और उसके बाद बाली में जी-20 की बैठक में भी मोदी ने शांति के पथ पर लौटने की बात कही थी. साफ है कि मोदी युद्ध के खात्मे को लेकर कूटनीतिक और संवाद का संदेश अपने लेख के जरिए दे रहे हैं.
भारत की चुनौतियां
पिछले महीने इंडोनेशिया में आयोजित जी-20 सम्मेलन में रूस-यूक्रेन युद्ध का साया देखने को मिला था. रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन इस सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं पहुंचे थे और ऐसी आशंका है कि रूस-यूक्रेन संकट के अगले साल तक सामान्य होने की संभावना कम ही है. पूर्व राजदूत गुरजीत सिंह कहते हैं कि जब इंडोनेशिया ने इटली से जी-20 की अध्यक्षता का पद लिया तो उसे यह अंदाजा नहीं था कि यूक्रेन संकट होगा, वह उस वक्त कोरोना महामारी से जूझ रहा था. डीडब्ल्यू से बातचीत में गुरजीत सिंह कहते हैं, “चाहे वह कोरोना महामारी हो या फिर यूक्रेन संकट, कुछ भी आप पर प्रहार कर सकता है और फिर वही चुनौती बन जाती है. अभी हम अनुमान लगा सकते हैं कि समस्याएं क्या हैं और उनसे निपटने की कोशिश कर सकते हैं.”