Jharna Mathur
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Lives in Dehra Dun, India
From Bareilly
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ग़ज़ल
देख के हम उन्हें बेजुवां हो गए
बिन कहे दर्द मेरे बयां हो गए
फासले दरमियां इस तरह से बढ़े
इश्क़ में उसके फिर इम्तिहाँ हो गए
साथ हैं वो मिरे ये यकीं था मुझे
क्यों वफ़ा के अजब से गुमां हो गए
ख्वाहिशों के नगर जो बसाये जरा
दूर मुझसे मेरे ही मकाँ हो गए
ये शहर अजनबी सा मुझे अब लगे
रंग इसमें सियासी रवाँ हो गए
जो मिली जिंदगी जी लिया बस उसे
गुल खुशी के मेरे वो गिरां हो गए
ढूंढती हूं बहारों भरी मंजिले
हौसले आज “झरना” जवां हो गए
गिरां – बहुमूल्य
स्वरचित
झरना माथुर
02/08/23