साहित्य

देख के हम उन्हें बेजुवां हो गए, बिन कहे दर्द मेरे बयां हो गए….झरना माथुर की एक ग़ज़ल और सावन गीत!

Jharna Mathur

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Lives in Dehra Dun, India

From Bareilly

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ग़ज़ल
देख के हम उन्हें बेजुवां हो गए
बिन कहे दर्द मेरे बयां हो गए
फासले दरमियां इस तरह से बढ़े
इश्क़ में उसके फिर इम्तिहाँ हो गए
साथ हैं वो मिरे ये यकीं था मुझे
क्यों वफ़ा के अजब से गुमां हो गए
ख्वाहिशों के नगर जो बसाये जरा
दूर मुझसे मेरे ही मकाँ हो गए
ये शहर अजनबी सा मुझे अब लगे
रंग इसमें सियासी रवाँ हो गए
जो मिली जिंदगी जी लिया बस उसे
गुल खुशी के मेरे वो गिरां हो गए
ढूंढती हूं बहारों भरी मंजिले
हौसले आज “झरना” जवां हो गए
गिरां – बहुमूल्य
स्वरचित
झरना माथुर
02/08/23

 

Jharna Mathur
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सावन गीत (सावन में झूले)
सावन में झूले पड़ गये,
परदेसी आ जा आ।
तेरे संग मैं झूला झूलू,
साजन अब तो आ जा आ।
गोरे- गोरे हाथों में ये,
मेहंदी रचाई है।
मांग सिन्दूरी बालम
मैने खूब सज़ाई है।
प्रीत की चूनर सजना,
मो पे लहरा जा आ आ।
तेरे संग मैं झूला झूलू,
साजन अब तो आ जा आ।
पर्वत ऊपर काली,
घटा यें घिर के आयी।
जियरा डोले मेरा,
मन में मस्ती सी छायी।
बारिश में भीगू संग में,
तू भी आ जा आ।
तेरे संग मैं झूला झूलू,
साजन अब तो आ जा आ।
सावन में झूले पड़ गये,
परदेसी आ जा आ।
तेरे संग मैं झूला झूलू,
साजन अब तो आ जा आ।
स्वरचित
झरना माथुर