धर्म

दूसरों के ग़ुलाम न बनो कि अल्लाह ने तुम्हें आज़ाद पैदा किया है!

पार्सटुडे- (आज़ादी) अपमान के बंधन से इंसान की एक प्रकार की मुक्ति व रिहाई है और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र व सज्जन परिजनों ने इस विषय पर बहुत बल दिया है।

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से आज़ादी के बारे में बहुत सी हदीसें नक़्ल की गयी हैं जिनमें से हम यहां केवल आठ का वर्णन कर रहे हैं।

इमाम जाफ़र सादिक़ फ़रमाते हैं

पांच विशेषतायें हैं कि अगर किसी में उन पांचों विशेषताओं में से कोई एक विशेषता भी न हो तो उसमें अधिक भलाई नहीं है। पहली वफ़ादारी/ दूसरी चिंतन -मनन व सूझबूझ/ तीसरी शर्म व हया/ चौथी अच्छा व्यवहार/ और पांचवी विशेषता आज़ादी है और यह वह विशेषता है जिसमें चारों दूसरी विशेषतायें भी मौजूद हैं।

हज़रत अली फ़रमाते हैं दूसरे के ग़ुलाम न बनो कि अल्लाह ने तुम्हें आज़ाद पैदा किया है।

इमाम जाफ़र सादिक़ फ़रमाते हैं

आज़ाद हर हालत में आज़ाद हैः अगर उस पर कोई मुसीबत पड़ती है तो वह सब्र करता है और अगर उस पर मुसीबतें पड़ती हैं तो वे उसे नहीं तोड़ पाती हैं चाहे वह जितनी भी अधिक हों। जिस तरह से युसूफ़ सिद्दिक़ को ग़ुलाम बना लिया गया मगर इन सब से उनकी आज़ादी पर कोई असर नहीं पड़ा।

इमाम अली फ़रमाते हैं

आज़ाद इंसान द्वेष और पाखंड नहीं करता है।

इमाम अली फ़रमाते हैं

आज़ाद इंसान की तौफ़ीक़ में से है कि वह माल हलाल व वैध तरीक़े से प्राप्त करता है।

हज़रत अली फ़रमाते हैं

जो भी अल्लाह की बंदगी की शर्तों पर अमल करता है वह आज़ादी के लायक़ होता है यानी आज़ादी की योग्यता प्राप्त करता है और जो अल्लाह की बंदगी की शर्तों पर अमल करने में कमी करता है यानी सही तरह से बंदगी की शर्तों पर अमल नहीं करता है वह दूसरों की ग़ुलामी में ग्रस्त होता है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं

अगर तुम्हारे लिए धर्म नहीं है यानी अगर तुम किसी धर्म को नहीं मानते हो और क़यामत से नहीं डरते हो तो कम से कम अपनी दुनिया में आज़ाद रहो।