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दुनिया भर में इस्लामोफ़ोबिया का ज़ोर के बावजूद ब्राज़ील में इस्लाम तेज़ी से फैल रहा है : रिपोर्ट

दुनिया भर में इस्लामोफ़ोबिया का ज़ोर है, यहां तक कि लैटिन अमेरिकी देश भी इससे अछूते नहीं रहे हैं।

इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाली 28 वर्षीय पोलियाना वीगा डी सूज़ा, दो महीने पहले मस्जिद से निकलने के बाद जब अपनी एक दोस्त के साथ बस स्टॉप पर पहुंचीं, तो वहां एक अज्ञात व्यक्ति आया और उसने उन्हें देखते ही चिल्लाना शुरू कर दिया। डिसूज़ा और उनकी दोस्त ने हिजाब पहन रखा था।

डी सूज़ा का कहना है कि वह हमारी ओर आया और उसने हमें भला-बुरा कहना शुरू कर दिया, उसने चिल्लाकर कहा कि हमारे पति अपने देशों में लोगों के सिर काटने के आदी हैं, और यहां ब्राज़ील में भी ऐसा ही करना चाहते हैं।

उन्होंने बताया कि 2017 में इस्लाम स्वीकार करने के बाद से उन्हें पहली बार धर्म के नाम पर नफ़रत का अनुभव हुआ और ख़तरा भी महसूस हुआ।

उनका कहना था कि वह बहुत ही हिंसक लग रहा था और ग़ुस्से में चिल्ला रहा था। उसके बाद से मस्जिद से जब भी हम निकलते हैं, तो हमें कोई पुरुष बस तक पहुंचाने आता है।

ब्राज़ील में इस्लामोफ़ोबिया के ताज़ा अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि ब्राज़ील समेत लैटिन अमेरिका में मुस्लिम महिलाओं में डी सूज़ा जैसे मामले आम हैं।

एंथ्रोपोलॉजी इन इस्लामिक एंड अरब कॉन्टेक्स्ट्स ग्रुप द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 73 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं सड़कों पर इस प्रकार की आक्रामकता का सामना कर चुकी हैं। अधिकांश हमले ज़बानी हुए, लेकिन 10 प्रतिशत मामलों में पीड़ित महिलाओं पर हमले भी किए गए।

रिबेराओ प्रेटो में साओ पाउलो विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान विभाग की एक प्रोफ़ेसर बारबोसा का कहना है कि जिन्होंने ख़ुद भी इस्लाम स्वीकार किया है, पिछले 20 वर्षों में देश में इस्लाम तेज़ी से फैल रहा है। इस्लाम स्वीकार करने वालों में सबसे ज़्यादा संख्या महिलाओं की है।

ब्राज़ील को आम तौर पर एक सौहार्दपूर्ण देश के रूप में देखा जाता है। लेकिन जब इस्लामोफ़ोबिया की बात आती है, तो सबकुछ बदल जाता है और लोग नकारात्मक मानसिकता से मुसलमानों को देखने लगते हैं।

ग़रीब इलाक़ों में रहने वाली और सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने वाली मुस्लिम महिलाओं के लिए जोखिम सबसे ज़्यादा होता है।

पोलियाना डी सूज़ा जैसे लोगों का कहना है कि इस्लाम स्वीकार करने के बाद हमें सड़कों से ज़्यादा परिवार में दिक्क़त आती है। क्योंकि हमारे परिजनों को इस्लाम के बारे में उससे ज़्यादा कुछ पता नहीं होता, जितना मीडिया द्वारा प्रचारित किया जाता है।

उन्होंने बताया कि उन्हें बहुत ज़्यादा ग़ुस्से का सामना करना पड़ा, लेकिन किसी भी विवाद को टालने के लिए उन्होंने धैर्य से काम लिया।

42 फ़ीसद लोगों का कहना है कि धर्मांतरण के बाद उनके परिवार ने उनके नए धर्म को ख़ारिज कर दिया या उनसे नाता तोड़ लिया।

इसका मुख्य कारण, मीडिया द्वारा इस्लाम और मुसलमानों के बारे में दुष्प्रचार है।