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दुनिया के सबसे मीठे आम का नाम लंगड़ा क्यों पड़ा?…”अम्मा, आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है”✍️✍️✍️✍️

“अम्मा!.आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है”

डाकिया बाबू ने अम्मा को देखते अपनी साईकिल रोक दी। अपने आंखों पर चढ़े चश्मे को उतार आंचल से साफ कर वापस पहनती अम्मा की बूढ़ी आंखों में अचानक एक चमक सी आ गई..
“बेटा!.पहले जरा बात करवा दो।”
अम्मा ने उम्मीद भरी निगाहों से उसकी ओर देखा लेकिन उसने अम्मा को टालना चाहा..
“अम्मा!. इतना टाइम नहीं रहता है मेरे पास कि,. हर बार आपके बेटे से आपकी बात करवा सकूं।”
डाकिए ने अम्मा को अपनी जल्दबाजी बताना चाहा लेकिन अम्मा उससे चिरौरी करने लगी..
“बेटा!.बस थोड़ी देर की ही तो बात है।”
“अम्मा आप मुझसे हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!”
यह कहते हुए वह डाकिया रुपए अम्मा के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने लगा..
“लो अम्मा!.बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना,.पैसे कटते हैं।”
उसने अपना मोबाइल अम्मा के हाथ में थमा दिया उसके हाथ से मोबाइल ले फोन पर बेटे से हाल-चाल लेती अम्मा मिनट भर बात कर ही संतुष्ट हो गई। उनके झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान छा गई।
“पूरे हजार रुपए हैं अम्मा!”
यह कहते हुए उस डाकिया ने सौ-सौ के दस नोट अम्मा की ओर बढ़ा दिए।
रुपए हाथ में ले गिनती करती अम्मा ने उसे ठहरने का इशारा किया..
“अब क्या हुआ अम्मा?”
“यह सौ रुपए रख लो बेटा!”
“क्यों अम्मा?” उसे आश्चर्य हुआ।
“हर महीने रुपए पहुंचाने के साथ-साथ तुम मेरे बेटे से मेरी बात भी करवा देते हो,.कुछ तो खर्चा होता होगा ना!”
“अरे नहीं अम्मा!.रहने दीजिए।”
वह लाख मना करता रहा लेकिन अम्मा ने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में सौ रुपए थमा दिए और वह वहां से वापस जाने को मुड़ गया।
अपने घर में अकेली रहने वाली अम्मा भी उसे ढेरों आशीर्वाद देती अपनी देहरी के भीतर चली गई।
वह डाकिया अभी कुछ कदम ही वहां से आगे बढ़ा था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा..
उसने पीछे मुड़कर देखा तो उस कस्बे में उसके जान पहचान का एक चेहरा सामने खड़ा था।
मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले रामप्रवेश को सामने पाकर वह हैरान हुआ..
“भाई साहब आप यहां कैसे?. आप तो अभी अपनी दुकान पर होते हैं ना?”
“मैं यहां किसी से मिलने आया था!.लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना है।”
रामप्रवेश की निगाहें उस डाकिए के चेहरे पर टिक गई..
“जी पूछिए भाई साहब!”
“भाई!.आप हर महीने ऐसा क्यों करते हैं?”
“मैंने क्या किया है भाई साहब?”
रामप्रवेश के सवालिया निगाहों का सामना करता वह डाकिया तनिक घबरा गया।
“हर महीने आप इस अम्मा को भी अपनी जेब से रुपए भी देते हैं और मुझे फोन पर इनसे इनका बेटा बन कर बात करने के लिए भी रुपए देते हैं!.ऐसा क्यों?”
रामप्रवेश का सवाल सुनकर डाकिया थोड़ी देर के लिए सकपका गया!.
मानो अचानक उसका कोई बहुत बड़ा झूठ पकड़ा गया हो लेकिन अगले ही पल उसने सफाई दी..
“मैं रुपए इन्हें नहीं!.अपनी अम्मा को देता हूंँ।”
“मैं समझा नहीं?”
उस डाकिया की बात सुनकर रामप्रवेश हैरान हुआ लेकिन डाकिया आगे बताने लगा…
“इनका बेटा कहीं बाहर कमाने गया था और हर महीने अपनी अम्मा के लिए हजार रुपए का मनी ऑर्डर भेजता था लेकिन एक दिन मनी ऑर्डर की जगह इनके बेटे के एक दोस्त की चिट्ठी अम्मा के नाम आई थी।”
उस डाकिए की बात सुनते रामप्रवेश को जिज्ञासा हुई..
“कैसे चिट्ठी?.क्या लिखा था उस चिट्ठी में?”
“संक्रमण की वजह से उनके बेटे की जान चली गई!. अब वह नहीं रहा।”
“फिर क्या हुआ भाई?”
रामप्रवेश की जिज्ञासा दुगनी हो गई लेकिन डाकिए ने अपनी बात पूरी की..
“हर महीने चंद रुपयों का इंतजार और बेटे की कुशलता की उम्मीद करने वाली इस अम्मा को यह बताने की मेरी हिम्मत नहीं हुई!.मैं हर महीने अपनी तरफ से इनका मनीआर्डर ले आता हूंँ।”
“लेकिन यह तो आपकी अम्मा नहीं है ना?”
“मैं भी हर महीने हजार रुपए भेजता था अपनी अम्मा को!. लेकिन अब मेरी अम्मा भी कहां रही।” यह कहते हुए उस डाकिया की आंखें भर आई।
हर महीने उससे रुपए ले अम्मा से उनका बेटा बनकर बात करने वाला रामप्रवेश उस डाकिया का एक अजनबी अम्मा के प्रति आत्मिक स्नेह देख नि:शब्द रह गया।🙏🏼

चित्र: काल्पनिक  ✍️✍️


लव कुश
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दुनिया के सबसे मीठे आम का नाम लंगड़ा क्यों पड़ा?

अपने अपने जीवन काल में कभी न कभी लंगड़ा आम तो खाया ही होगा। इसे दुनिया में सबसे मीठे आम के रूप में ख्याति मिली लेकिन कभी आपने सोचा है कि इसे लंगड़ा क्यों कहा जाता है, आइए जानते हैं इसके पीछे की रोमांचक कहानी।
भारत में आम की लगभग 1,500 किस्में पाई जाती हैं, जिनमें 1,000 किस्में ऐसी हैं जिन्हें सिर्फ रोजगार के मकसद से उपजाया जाता है.
लंगड़ा आम की कहानी जानने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि आखिर इसका नाम लंगड़ा क्यों पड़ा. कुछ और भी तो नाम हो सकता था? आम भला लंगड़ा या सीधा होता है क्या? इसके पीछे कहानी कुछ यूं है कि बनारस के एक साधु ने एक पुजारी को आम के पेड़ों की देखभाल की जिम्मेदारी दी थी. वह पुजारी विकलांग था. सभी लोग उसे ‘लंगड़ा पुजारी’ के नाम से जानते थे. इसलिए आम की इस किस्म का नाम ‘लंगड़ा आम’ पड़ गया. आज भी इसे लंगड़ा आम या बनारसी लंगड़ा आम कहा जाता है.
क्या है लंगड़ा आम का इतिहास?
लंगड़ा आम का इतिहास करीब 300 साल पुराना है. अपने बेहद रसीले स्वाद के कारण यह आम भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है. इसका उत्पादन उत्तर प्रदेश के बनारस में शुरू हुआ था. बनारस के शिव मंदिर में आए एक साधु ने लंगड़ा आम का पेड़ लगाया था. साधु ने इस पेड़ की देखभाल की जिम्मेदारी पुजारी को दी थी. साधु ने पुजारी से कहा कि जब पौधा पेड़ बन जाए और फल देने लगे तो उसका पहला फल भगवान शिव को अर्पित कर देना और भक्तों में प्रसाद बांट देना. पुजारी ने ठीक वैसा ही किया. भक्तों ने जब जब प्रसाद खाया तो वे इस आम के दीवाने हो गए. तब से अब तक यह किस्म लोगों की पसंदीदा किस्मों में से एक है.
भारत में हर साल लगभग लाखों टन लंगड़ा आम का उत्पादन होता है.
भारत में हर साल लगभग लाखों टन लंगड़ा आम का उत्पादन होता है.
किस राज्य में होती है इसकी खेती
लंगड़ा आम की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में होती है. वहीं, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में भी इसका उत्पादन हो रहा है. इसके वृक्षों पर फल बहुतायत से लगते हैं लेकिन ये अनियमित रूप से आते हैं. इसका फल पकने के बाद भी हरा रहता है. गुदा हल्के पीले रंग का और बहुत रसदार और स्वाद में मीठा होता है. इसकी गुठली पतली और चौड़ी होती है. इसकी कीमत की बात करें तो यह 80 से 100 रुपये किलो बिक रहा है.
कैसे करें लंगड़ा आम की पहचान?
यह आकार में अंडाकार होता है. यह नीचे से हल्का नुकीला होता है जिस वजह से इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है. यह पकने के बाद भी हरे रंग का होता है.