इंसानों की लंबी उम्र और “ब्लू जोन” जैसे स्थानों पर किए गए शोध पर नए सवाल उठे हैं. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ता सॉल जस्टिन न्यूमैन का कहना है कि इंसानों की बहुत लंबी उम्र से जुड़े ज्यादातर डेटा में गड़बड़ी है.
लंबी उम्र पाने की चाहत हर किसी को होती है. इसी सपने ने एक नई इंडस्ट्री को जन्म दिया है. इस इंडस्ट्री में सप्लीमेंट्स, किताबें, टेक्नोलॉजी और टिप्स बेचे जा रहे हैं. यह सब कुछ लोगों को यह सिखाने के लिए किया जा रहा है कि दुनिया के सबसे उम्रदराज लोगों के राज क्या हैं.
लेकिन न्यूमैन के अनुसार, जो डेटा इस उद्योग का आधार है, वह अक्सर गलत और अविश्वसनीय होता है. उन्होंने कहा, “बहुत ज्यादा पुरानी उम्र का डेटा, जिसे हम सच मानते हैं, वह ज्यादातर कचरा है.”
शोध में क्या पता चला?
न्यूमैन का शोध अभी समीक्षा की प्रक्रिया में है. इस शोध के लिए उन्होंने अमेरिका, इटली, इंग्लैंड, फ्रांस और जापान जैसे देशों में 100 साल और 110 साल से अधिक उम्र के लोगों पर अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि “सुपर सेंटिनेरियन” यानी 110 साल से अधिक उम्र के लोग अक्सर ऐसे इलाकों से आते हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाएं खराब होती हैं, गरीबी का स्तर ऊंचा होता है, और रिकॉर्ड-कीपिंग या दस्तावेजीकरण अच्छा नहीं होता.
न्यूमैन ने मजाक में कहा, “लंबी उम्र का असली राज यह है कि ऐसी जगह जाओ जहां जन्म प्रमाणपत्र दुर्लभ हों, अपने बच्चों को पेंशन फ्रॉड सिखाओ और झूठ बोलना शुरू करो.”
इस विषय को समझाने के लिए न्यूमैन ने जापान का उदाहरण दिया. सोगेन काटो, जिन्हें कभी जापान का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति माना जाता था, 2010 में उनके ममीकृत अवशेष उनके घर में पाए गए. असल में उनकी मौत 1978 में ही हो चुकी थी. उनका परिवार तीन दशकों तक उनकी पेंशन का लाभ लेता रहा.
जब इस घटना की जांच की गई, तो पता चला कि जापान में 82 प्रतिशत यानी करीब 2.3 लाख सेंटिनेरियन या तो गायब थे या मृत पाए गए. सरकार के अनुसार, “कागजात सही थे, लेकिन लोग मर चुके थे.” यह मामला बताता है कि ऐसे रिकॉर्ड कितने अविश्वसनीय हो सकते हैं.