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दुनिया अब चुप नहीं रहेगी और…

पार्स टुडे- ज़ायोनी शासन की सेना ने सोमवार 9 जून की सुबह ग़ाज़ा की नाकाबंदी तोड़ने वाले सहायता जहाज़ “मेडलिन” पर हमला कर दिया और उसे ग़ाज़ा तट पर पहुँचने से रोक दिया जहाँ यह जहाज़ ग़ाज़ा पट्टी के लोगों के लिए मानवीय सहायता लेकर जा रहा था।

12 मानवाधिकार कार्यकर्ता अगवा-मेडलिन एक प्रतीक से बढ़कर

इस जहाज़ में सवार 12 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को, जो विभिन्न देशों से थे, ज़ायोनी शासन द्वारा अगवा कर लिया गया। जहाज़ में किसी प्रकार का हथियार या सैन्य सामग्री नहीं थी, बल्कि इसमें केवल खाद्य सामग्री, दवाइयाँ और स्वच्छता व स्वास्थ्य से जुड़ी वस्तुएँ थीं, जो ग़ज़ा में मानवीय संकट झेल रहे लोगों की मदद के लिए भेजी गई थीं।

इस कार्रवाई को स्पष्ट रूप से एक युद्ध अपराध और समुद्री डकैती कहा जा सकता है जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवीय सिद्धांतों के खिलाफ़ है।

“मेडलिन” – एक जहाज़ नहीं, एक संघर्ष की कहानी

जहाज़ “मेडलिन” का नाम एक फ़िलस्तीनी बच्ची “मेडलिन कुलाब” के नाम पर रखा गया है। यह केवल एक सहायता जहाज़ नहीं, बल्कि एक प्रतीक है। मेडलिन, ग़ज़ा पट्टी की पहली लड़की है जो मछली पकड़ने में माहिर है। हाल ही में ज़ायोनी शासन के हमले में उसने अपने पिता को खो दिया।

यह छोटी बच्ची, जो अब अकेले अपने परिवार का पेट पालती है, हालिया युद्ध में अपनी नाव खो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद वह डटी हुई है और जीवन की लड़ाई लड़ रही है।

जहाज़ “मेडलिन” उसी की याद और उसकी संघर्षशील भावना का प्रतीक है, जो ग़ज़ा की घेराबंदी और अत्याचार के विरुद्ध वहां के लोगों की दृढ़ता और प्रतिरोध का संदेश लेकर चला है। यह एक वैश्विक एकजुटता का प्रतीक है, जो ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ़ खड़ा है।

“मेडलिन” जहाज़ की यात्रा- घेराबंदी के ख़िलाफ़ इंसानियत की आवाज़

“मेडलिन” जहाज़, बार-बार की गई धमकियों और इस्राइली शासन की स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद, ग़ज़ा की अन्यायपूर्ण नाकाबंदी को तोड़ने और वहाँ के लोगों तक मानवीय सहायता पहुँचाने के उद्देश्य से अपनी यात्रा पर था।

यह जहाज़, “कारवां-ए-आज़ादी” (Freedom Flotilla) का छत्तीसवां जहाज़ है जो 2007 से अब तक ग़ज़ा की नाकाबंदी हटाने के लिए इस घिरे हुए और युद्ध से तबाह क्षेत्र की ओर भेजा गया है।

“मेडलिन” जहाज़ में सवार 12 अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ता

इस साहसिक और प्रतीकात्मक यात्रा में विभिन्न देशों से 12 प्रभावशाली और सक्रिय व्यक्ति शामिल हैं, जिनमें कई प्रतिष्ठित नाम भी शामिल हैं:

ग्रेटा थुनबर्ग – स्वीडन की पर्यावरण और सामाजिक न्याय कार्यकर्ता

रीमा हसन – यूरोपीय संसद की सदस्य, “फ़्रांस इन्सौमिस” (France Unbowed) पार्टी से

उमर फ़य्याज़ – अल जज़ीरा के पत्रकार

यानिस मोहम्मदी – फ्रांसीसी पत्रकार, “ब्लास्ट” (Blast) मीडिया से

पास्कल मोरिएर्स – फ्रांसीसी सामाजिक कार्यकर्ता, जो पहले भी फ़्रीडम फ़्लोटिला से जुड़ चुके हैं

तियागो एविला – ब्राज़ील के सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार

बापतिस्त आंद्रे – फ्रांसीसी चिकित्सक

यासमिन अजार – जर्मन- कुर्दिश मानवाधिकार कार्यकर्ता

रेवा फियार्ड – फ्रांसीसी पर्यावरण कार्यकर्ता

सवाइब ओर्दू – तुर्की के सामाजिक कार्यकर्ता

सर्जियो तोरीबियो – स्पेन की “सी शेफर्ड” संस्था के सदस्य

मार्को फान रेनिस – नीदरलैंड के समुद्री इंजीनियरिंग के छात्र और जहाज़ के दल का हिस्सा

यह यात्रा केवल सहायता नहीं, बल्कि एक संदेश है कि दुनिया ग़ज़ा के लोगों की पीड़ा को देख रही है, और आवाज़ें अब चुप नहीं रहेंगी। “मेडलिन” आज एक मानवीय, नैतिक और वैश्विक प्रतिरोध का प्रतीक बन चुकी है।

“मेडलिन” के यात्रियों की साहसिक यात्रा — ज़ुल्म के ख़िलाफ़ मानवता की पुकार

“मेडलिन” जहाज़ के यात्री उस समय यह समुद्री यात्रा शुरू कर रहे थे जब उन्हें इस बात का पूरा ज्ञान था कि यह कार्य अत्यंत ख़तरनाक है विशेष रूप से 2010 में “मरमरा ब्लू” जहाज़ पर इस्राइली हमले और उसमें 9 निर्दोष लोगों की हत्या की भयावह घटना के अनुभव के बाद

इसके बावजूद, उन्होंने यह यात्रा मानवीय मूल्यों और इंसानियत के सिद्धांतों के तहत शुरू की- वह मूल्य जिन्हें धर्म के शब्दों में “मानव गरिमा और “स्वतंत्रता कहा जाता है।

यह केवल सहायता नहीं, एक विवेकशील चेतना की आवाज़ है

उनकी यह साहसिक पहल उस मानवीय सम्मान की याद दिलाती है जो जागृत अंतरात्मा और अत्याचार के विरुद्ध प्रतिबद्धता से उत्पन्न होता है और जो हर हाल में मज़लूम की मदद और ज़ालिम का प्रतिरोध करता है।

मेडलिन की यह यात्रा साबित करती है कि दुनिया के इस बेरहम दौर में भी इंसानियत मरी नहीं है। मानव गरिमा और विवेक अब भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं।

एक प्रतीकात्मक लेकिन प्रभावशाली आंदोलन

“मेडलिन” का ग़ज़ा की ओर बढ़ना एक प्रतीकात्मक परंतु गहरा संदेश है जिसने विश्व जनमत को झकझोरा और ज़ायोनी शासन को मजबूर किया कि वह पूरी ताक़त से इसका सामना करे।

यह यात्रा एक जागरण का आह्वान थी, एक घोषणा थी कि दुनिया अब चुप नहीं रहेगी और हर वो प्रयास जो मानवता के पक्ष में हो, वह ज़ुल्म के तमाम अवरोधों के बावजूद आगे बढ़ेगा।

“मेडलिन” जहाज़ और उसके यात्रियों के अवैध अपहरण ने एक बार फिर साबित कर दिया कि फ़िलस्तीनियों के अधिकारों की पुनःप्राप्ति का एकमात्र रास्ता प्रतिरोध है। एक ऐसे शासन से संवाद या समझौता, जो इंसानियत की भाषा नहीं समझता, जनता व लोगों के साथ विश्वासघात के सिवा कुछ और नहीं है।

इस जहाज़ ने न केवल ग़ज़ा में जारी मानवीय त्रासदी की ओर वैश्विक जनमत का ध्यान खींचा, बल्कि यह घटना फ़िलस्तीनी प्रतिरोध के लिए फिर एक बार विश्व स्तर पर व्यावहारिक समर्थन की वापसी का माध्यम बनी।

प्रतिरोध की वैधता पर मोहर

ज़ायोनी शासन की यह कार्रवाई, पहले से कहीं अधिक स्पष्ट रूप से, यह साबित करती है कि:प्रतिरोध न केवल वैध है, बल्कि अनिवार्य भी है और यह कि इस्राइली शासन के सामने संघर्ष ही एकमात्र प्रभावी भाषा है।

“मेडलिन” की यात्रा और उस पर हुआ ज़ुल्म अब एक प्रतीक बन चुका है। एक जीवित गवाही कि जब संवाद कुचल दिया जाए, तो आवाज़ प्रतिरोध बन जाती है।

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